नेताजी पूछे तुम कौन हो…?
मैंने बोला, इन्सान हूँ….
क्या तेरे पास गाड़ी है…?
हाँ मेरे पास बैलगाड़ी है …
नेताजी, वैश्वीकरण के इस युग में बैलगाड़ी… ?
हाँ , ये भारत की सवारी है…
नेताजी , अरे! मैंने तो सस्ते दर पर क़र्ज़ की व्यवस्था की है?
हाँ, इसीलिए मोतिया ने आत्महत्या की है…?
नेताजी , आत्महत्या? ये जरूर विपक्षी पार्टी की चाल है…?
नहीं, यह तो आपके कमीशन का कमाल है…?
मैं तो दबा , कुचला एक इन्सान हूँ….
क्योंकि मैं भारत का किसान हूँ …
सत्येंद्र कुमार यादव फिलहाल इंडिया टीवी में कार्यरत हैं और गांव अब भी उनके दिल में धड़कता है। उनसे मोबाइल- 9560206805 पर संपर्क किया जा सकता है।
वाह खूब । इन मात्र बारह पंक्तियों में देश के इन धरापुत्रों की सम्पूर्ण करुण कहानी कह देने के लिए बधाई ।