शिरीष खरे क्या मीडिया से गांव गायब हो गए हैं? जवाब है- हां। यदि कोई एक जगह से एक जगह
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सियासी शिकंजे से किसान छूटें तो बदलेगी ज़िंदगी
केदार सिरोही आदिकाल से कृषि हमारे देश की अर्थव्यवथा की रीढ़ की हड्डी रही है। आज वही खुद को बचाने
विकास की अंधी दौड़ में बिगड़ रहा गांव का ताना-बाना
ब्रह्मानंद ठाकुर हमारा गांव अब पूरी तरह से वैश्विक बाजार के हवाले हो गया है। खाने-खाने-पीने की चीजों से लेकर
आखिर अहिंसा के पुजारी का घर अशांत क्यों ?
प्रिय बापू, “हैप्पी बर्थ डे!” हम जब से स्कूल जाना शुरू किये तभी से आपका जन्मदिन मना रहे,ये अलग बात
सहरसा के आरण गांव में नाचे मन ‘मोर’
पुष्य मित्र आपके घर के बाहर अगर मोर नज़र आ जाए तो बरबस ही मन नाच उठेगा और बचपन की
गांव की कब्र पर बनेंगे स्मार्ट शहर, पढ़ लो मर्सिया
नरेंद्र अनिकेत संघ के सर्वेसर्वा मोहन भागवत ने इंदौर के तथाकथित आध्यात्मिक नेता (जैसा कि संघ और भाजपा अपने आपको
‘लिक्विड ऑक्सीजन’ में ‘डार्लिंग विलेज’
शंभु झा मैं अभी हाल में अपने गांव से लौटा हूं। गांव की फितरत साठ के दशक की फिल्मी नायिकाओं
बिना बिजली के चुनावी ‘करंट’ दौड़ रहा है!
अरविंद पांडेय बाहर लालटेन जल रही है…जो छज्जे पर लगे हुक के सहारे टांग दी गई है। रोशनी इतनी ही
मुझे दुलराता है, मेरे गांव का स्टेशन
शंभु झा मेरा गांव रेलवे लाइन के किनारे है। गांव की ज़मीन पर ही रेलवे स्टेशन बसा है। स्टेशन बसा