अखिलेश्वर पांडेय यह समय एक ठूंठ समय है एक झूठ समय है एक ढीठ समय है जिसके पास सत्ता है
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गणतंत्र, तुझसे कुछ शिकवे हैं!
मार्कण्डेय प्रवासी गणतंत्र भूख की दवा ढूंढ कर लाओ बीमार देश है , धन्वन्तर कहलाओ। रह रहे शारदा के बेटे
मीना खलको!
शिरीष खरे खबर लिखते समय कई चरित्र ऐसे होते हैं जो हमारे दिल और दिमाग में बैठ जाते हैं। कई
चिड़ियों के लिए निमंत्रण पत्र
पंखुरी सिन्हा चिड़ियों को नहीं भेजने होते कबूतरों के गुलाबी पैरों में बाँध कर निमंत्रण पत्र केवल पेड़ लगा देने
अंग-अंग में बोल गया फागुन
संजय पंकज बोल गया फागुन अंग अंग में जाने कैसा रस घोल गया फागुन ! रंग नयन में गंध सांस
दोस्ती का धागा
रेणु ओहरी रेशम की डोरी है प्रेम का है धागा बड़ा ही नरम गरम ये दोस्ती का नाता रिश्तों की
कितना आसान है…
नूतन डिमरी गैरोला दूसरों के चेहरों की मुस्कानों से उल्लसित हो जाना तृप्त हो जाना मुस्कानों के सिलसिलों का खुद
वसंत, फाग और प्रेम कविताओं का चक्रव्यूह
‘पेड़ों की छांव तले रचना पाठ के अंतर्गत 29वीं साहित्यिक गोष्ठी वैशाली गाजियाबाद स्थित हरे भरे मनोरम सेंट्रल पार्क में
जीवन पथ
रेणु ओहरी जीवन इक राह है, चलने का नाम है सपनों के पंख लिए,ऊंची
अखाड़ेबाज शब्द
उमेश जोशी अखाड़ेबाज़ शब्द आसपास मंडराते हैं ये हर पल रिश्तों की नींव हिलाते हैं ख्वाबों की चादर ओढ़ कर