अरुण यादव
गांव की हरियाली और शुद्ध दाना-पानी छोड़कर युवा बड़ी उम्मीद लेकर शहरों की तरफ भागे चले आते हैं। हर किसी को एक उम्मीद रहती है कि शहर उनको रोजगार देगा, जिससे वो कुछ पैसे कमाकर परिवार का खर्च चलाएंगे और अपने शौक पूरे करेंगे। होता भी कुछ ऐसा ही है, लेकिन वक्त बीतने के साथ-साथ गांव की गलियां शहर की बनावटी शान-ओ-शौकत में कहीं खो सी जाती हैं, लेकिन जब शहर में कोई संकट आता है तो हमें सबसे पहले याद गांव की ही आती है, उसी गांव की जो बरसों पहले हम छोड़ आए थे। सपनों की इसी भागमभाग के बीच कुछ ऐसे युवा भी हैं जिनको शहर रास नहीं आया, अच्छी खासी नौकरी छोड़ अपनी मिट्टी की ओर लौट गए। ऐसे ही जिंदादिल इंसान हैं सुधीर सुंदरियाल।
सुधीर सुंदरियाल का बचपन उत्तराखंड की पहाड़ियों में बीता, पढ़ाई देहरादून से की और नौकरी करने के लिए देश की राजधानी दिल्ली चले आए। करीब 18 साल दिल्ली में मीडिया की नौकरी की। 2004 से 2014 तक देश के जाने-माने न्यूज चैनल इंडिया टीवी में ग्राफिक डिजाइनर के तौर पर काम किया। सुधीर जी के साथ काम करने वाले मुकेश भाटी बताते हैं कि ”सुधीर एक बेहतरीन ग्राफिक डिजाइनर हैं और उनके साथ काम करने का काफी अच्छा अनुभव रहा। अपने काम के प्रति वो हमेशा समर्पित रहे हैं। वो जितने अच्छे प्रोफेशनल हैं उतने ही संजीदा इंसान भी।”
सुधीर सुंदरियाल पौड़ी गढ़वाल जिले के पोखरा ब्लॉक के मूल निवासी हैं। शहर में नौकरी के दौरान भी सुधीर अक्सर अपने गांव डबरा जाना नहीं भूलते थे। जब कभी वो गांव जाते पास पड़ोस में गांव के गांव खाली नजर आते। खुद उनके गांव में कई ऐसे घर हैं जिसका ताला बरसों से नहीं खुला है। गांव का ये मंजर देख सुधीर का कोमल मन व्याकुल हो उठता। वो शहर में जरूर रहते थे, लेकिन मन तो जैसे गांव में ही रचा-बसा हो, लिहाजा करीब साल 2014 के आखिर में सुधीर सुंदरियाल ने राजधानी दिल्ली में करीब 18 साल की भागदौड़ पर ब्रेक लगा दिया और घर वापस लौटने का फैसला किया।
सुधीर ने जिस वक्त इंडिया टीवी छोड़ कर घर वापसी का फैसला लिया, तो उनकी पत्नी हेमलता ने पूरा साथ दिया। खास बात ये कि सुधीर की पत्नी कभी पहाड़ों में नहीं रहीं। पहाड़ों की खूबसूरती उन्हें आकर्षित तो करती थी, लेकिन उसकी चुनौतियों का एहसास भी उन्हें था। उन्होंने दिल्ली की महानगरीय सहूलियतों को छोड़कर सुधीर के साथ गांव की चुनौतियों को कबूल कर लिया। दोनों मियां-बीबी दिल्ली से अपना बोरिया बिस्तर बांधकर उत्तराखंड की पहाड़ियों के डबरा गांव में आ बसे।
सुधीर सुंदरियाल ने गांव लौटने से पहले ही इस बात की प्लानिंग कर ली थी कि गांव जाकर उन्हें करना क्या है। सुधीर जी की कोई संतान नहीं है, लेकिन उन्होंने बच्चा गोद लेने की बजाय गांव को ही गोद लेने का फैसला किया और गांव में गरीब बच्चों को पढ़ाने की तैयारी शुरू की। गांव में रहना है तो आजीविका का बेहतर विकल्प तलाशने की चुनौती थी। उन्होंने पंत नगर विश्वविद्यालय से कृषि क्षेत्र को लेकर कुछ दिन अध्ययन किया और ट्रेनिंग ली। इसके बाद गांव में भलु लगद (फील गुड) नाम से छोटा संगठन बनाकर कृषि और शिक्षा पर काम करना शुरू किया।
सुधीर सुंदरियाल को गांव लौटे करीब 5 साल हो गए हैं। उन्होंने गवाणी गांव में फीलगुड नॉलेज एंड इंफॉर्मेशन सेंटर नाम से जिस क्लास रूम से अपने सफर की शुरुआत की थी वो अत्याधुनिक सुविधाओं से परिपूर्ण है । यहां बच्चों के लिए लैपटॉप और प्रोजेक्टर है तो बैठने के लिए कुर्सी और टेबल का भी इंतजाम है। इस सेंटर पर बच्चों और गांव वालों को शिक्षा के साथ-साथ देश-दुनिया में हो रही घटनाओं से भी रूबरू कराया जा रहा है । एक गांव से शुरू हुआ सुधीरजी का प्रयोग अब करीब 30 गांवों में शिक्षा की अलख जगाई। करीब 400-500 बच्चों को शिक्षित और प्रशिक्षित करने का काम किया । करीब 30-40 बच्चों की पढ़ाई का पूरा खर्च खुद भलु लगद की टीम उठा रही है ।
सुधीर सुंदरियाल ने शिक्षा के साथ-साथ गांव के लोगों को खेती के प्रति जागरुक किया और आज उनके गांव के अलावा आसपास के करीब 30 गांव में बंजर जमीन पर भी फसलें लहलहा रही हैं। यही नहीं फील गुड संस्था जल संचय का काम भी कर रही है इसके लिए गांवों में जगह जगह छोटे-छोटे तालाब बनाए गए हैं, जिसमें बारिश का पानी जमा होता है और फिर जमीन के भीतर चला जाता है, जिससे जलस्तर को बढ़ाने में मदद मिली है। इसके अलावा किसानों के लिए पशुपालन, साग सब्जी और लंबी अवधि की फसलों पर भी ध्यान दिया जा रहा है, जिससे किसानों को मुनाफा मिल सके। उनके गांव में उगाई गई फल सब्जियां और मसाले के सामान दिल्ली तक जाने लगे हैं। उनके पढ़ाए बच्चे आज नौकरी भी करने लगे हैं। फील गुड ने स्थानीय स्तर पर कई सामाजिक बदलाव भी किए जिसके बारे में कभी कोई सोच भी नहीं सकता था । सांस्कृतिक आयोजनों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ने लगी।
इस तरीके से फील गुड ने शिक्षा, कृषि और समाज में कई बड़े बदलाव लाने में अहम भूमिका निभाई है । सुधीरजी ने गांव में उम्मीद नाम से समन्वित कृषि भागवानी केंद्र की भी स्थापनाा की है । जिससे किसानों को काफी सहूलियत मिल रही है और किसान जीरा, इलाइजी, नींबू समेत तमाम पैदावार की जानकारी ले रहे हैं । सुधीर जी के इस काम के लिए आज उनको राज्य और देश के कई अवार्ड भी मिल चुके हैं। कुछ अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं भी सुधीर के काम से प्रभावित होकर उनकी मदद करने के लिए आगे आ रही हैं।
सुधीर भाई जी आप हम सभी के लिए प्रेरणास्रोत हैं आपको बहुत बहुत शुभकामनाएं और बधाइयाँ।
मैं निरंतर आपके प्रयासों के बारे में पढ़ता और सुनता रहता हूँ और मन मे गाँव में और गांव के लिए कुछ करने की जिग्यासा उत्पन्न होती रहती है।
शानदार अति उत्तम प्रस्तुति, समाज मैं सुधीर जी के उल्लेखनीय योगदान के लिए, सुधीर जी व उनकी समर्पित टीम को हमारा बारंबार नमस्कार.. आज उत्तराखंड में बदलाव के लिए ऐसे ही सफल और निष्ठावान प्रयासों की अति आवश्यकता है. और ऐसे प्रयासों को एक सम्मानित मंच देने के लिए बदलाव संस्था को बहुत बहुत धन्यावाद.. जय उत्तराखंड, जय भारत, हर हर महादेव ?
Great man.
हम सरीखे मनुष्यों को समय अपने अनुसार लेकर चलता है,मगर कुछ मनुष्य होते हैं जो समय को अपने अनुसार चलाते है।सुधीरजी आप वही व्यक्ति हैं,जो समय से आगे चलते हैं।
I have the privilege of interacting and working with him.He is rarest of rare and his sincerity to address the issues is worth emulating.
In Uttarakhand we need more Sudhir Sundrayalji to make a paradigm shift
Jai Badri
Shailesh Bhatt
उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में खण्डहर हो चुके भवनों – बंजर हो चुके खेतों को पुनः अपने गौरवशाली अतीत की ओर ले जाने की इच्छा रखने वाले प्रवासी जनौं और गांव में ही बेहतर जीवन यापन करने वाले लोगों के लिए फीलगुड एक उत्कृष्ट मंच बन चुका है। कठिन परिस्थितियों से धैर्य पूर्वक प्रगति के पथ पर आगे बढ़ते रहने के लिए सुधीर जी एवं उनके कर्मठ कार्यकर्ताओं का मैं आभार व्यक्त करता हूं।
अब हम सभी को मिलकर हर क्षेत्र,हर वर्ग, और जन- जन तक फीलगुड के बदलाव की पहल को पहुंचाने का प्रयास करना चाहिए।
बहुत सुंदर कार्य हम सबकी सुभकामनाएँ सेडिया गाँव में भी probability देखें। planting की जा सकती है ? soil-testing facility सारे छेत्र के लिए उपलब्ध हो सकती है क्या ?
Sudhir sundriyalji and her wife are great Inspirer for Uttrakhandis and citizens of India who motivate the society to work for Nation selflessly and with feelings of sacrifice.
We wish both Husband and wife blessings of Ishwar and good health.
Wish you all the best
Very inspiring. I am looking forward to meet and interact with Sudhir Sundriyal ji in the near future.
Very impressive, sundryalji you are great inspiration for us