श्याम सुंदर ज्याणी
फेसबुक पोस्ट, 11 जुलाई 2017। जाट को धरतीपुत्र इसलिए कहा जाता है क्योंकि जाट-जाटनी कंधे से कंधा मिलाकर धरती माँ से अन्न उपजाते हैं। पेड़ और पर्यावरण की बात में आज चर्चा करना चाहूंगा जाट महिलाओं की और इसकी शुरुआत कर रहा हूँ खुद के परिवार से। मैं और मेरे विद्यार्थी कॉलेज में पारिवारिक वानिकी पौधशाला विकसित कर रहे हैं। इस हेतु कुछ दिन पहले निम्बू के बीज बोए थे, परसों जामुन के बीज बोए हैं।
कल शाम को जब मैं परिवार सहित जामुन की क्यारियों का निरीक्षण कर रहा था तब मुझे लगा कि कुछ क्यारियों में और मिट्टी डालने की जरूरत है। कुछ दिन पहले पांव फिसलने के कारण कमर में खिंचाव आ गया लिहाज़ा डॉक्टर ने दो हफ्ते तक फावड़े से कम करने की मनाही कर रखी है। मैंने जैसे ही मेरी पत्नी कविता से यह जिक्र किया कि कुछ विद्यार्थियों को बुलाते हैं मिट्टी डालने के लिए तो उन्होंने फावड़ा उठाते हुए कहा कि मैं खोद लूँगी मिटटी। इतने से काम के लिए क्यों स्टूडेंट को डिस्टर्ब करें।
कविता को फावड़े से मिट्टी खोदते देख मुझे बचपन के वो दिन याद आ गए, जब हम खेत में टाली पर चढ़कर कुलां -डंडा खेलते थे और मेरी माँ, चाची, पिताजी, चाचा काम करते थे। हालाँकि कविता एम ए , बी एड , एम फिल है और एम ए- एम फिल में विश्वविद्यालय में चतुर्थ, तृतीय स्थान प्राप्त कर चुकी है। पर्यावरण संरक्षण की मेरी मुहिम पत्नी के साथ के बिना सम्भव ही नहीं थी। खेत के कठिन से कठिन काम में परुषों से होड़ लेती जाटनी देखकर मन गर्व से भर जाता है। भारत की सबसे बड़ी किसान कौम का अनुसरण अन्य किसान जातियों ने भी किया और पूरे देश में महिलाओं ने खेती में बखूबी मोर्चा संभाला हुआ हैं। हालाँकि यह बात अलग है कि किसान हमारी सामाजिक, राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था की परिधि पर है, इस कारण वह संकट और दुःख में है।
हमें काम करता देखकर दोनों बेटियां भी रोज पेड़ पौधों की देखभाल की कोशिश करती है। रविवार को दोनों बहनों ने मिलकर अनार की पौधशाला विकसित की। इससे पहले अपनी दादी के साथ मिलकर जामुन के पौधे तैयार किए, जो अब सौ से अधिक घरों में रोपित हो चुके हैं।
Jai DhartiPutra