दुनिया में अपनी अलग पहचान बना चुका है कोल्हापुर का वालवे खुर्द गांव

दुनिया में अपनी अलग पहचान बना चुका है कोल्हापुर का वालवे खुर्द गांव

शिरीष खरे

कोल्हापुर के बाकी गांवों की तरह दिखने में यह एक साधारण गांव है। यहां के लोगों को यह बात भी अब साधारण ही लगने लगी है कि कुश्ती और कबड्डी के लिए यह गांव राज्य भर में पहचाना जाता है । वैसे तो ये दोनों खेल मूलत: गांव के खेल हैं इसलिए इस तरह खेलों के लिए गांव में ही अच्छे खिलाड़ी तैयार होना स्वाभाविक है, फिर भी उपलब्धियां बताती हैं कि ये खेल और इनके खिलाड़ी वालवे गांव की मिट्टी से गहरे जुड़े हुए हैं। लेकिन, करीब चार हजार की आबादी वाले इस गांव में लोगों को एक और बात इन दिनों साधारण लगने लगी है। बात यह है कि यहां के कुछ खिलाड़ी अब फुटबाल जैसे खेल में राज्य और राष्ट्रीय टीम का हिस्सा बनने की राह पर हैं। इस ट्रेंड के पीछे की कहानी में यूं तो एक-एक करके कुछ नाम जुड़ते जा रहे हैं। लेकिन, कहानी शुरू होती है विकास कुंभार के संघर्ष से जो आज फुटबाल के अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी हैं।

इसी के सामानांतर नीचे एक दूसरी तस्वीर है। यह तस्वीर इसी गांव के प्राथमिक स्कूल के बाहर थोड़ी दूर से खींची गई है। यह स्कूल अनुशासन की मिसाल माना जाता है। इसका एक कारण गांव में खेल-भावना का होना भी कहा जा सकता है। वर्ष 1926 में स्थापित इस स्कूल के नए भवन के बाहर खेल का बहुत बड़ा मैदान है। यह मैदान नए भवन के मुकाबले कहीं ज्यादा ध्यान खींचता है। इतना आकर्षक मैदान यहां इसलिए भी है कि विशेष तौर पर कुश्ती और कबड्डी जैसे देसी खेल खेलना यहां की परंपरा में शामिल है, लेकिन स्कूल के ठीक सामने थोड़ा कम ध्यान खींचने वाला एक छोटा और सुंदर बगीचा भी है। इसे छोटे बच्चों ने शिक्षकों के मार्गदर्शन से साल भर पहले तैयार किया है।

दरअसल, बच्चों का यह बगीचा उनके सहयोगी खेल की शुरुआत है। शिक्षा के क्षेत्र में यह खेल एक ट्रेंड साबित हो सकता है जो इन दिनों इस पूरे इलाके की नई पीढ़ी के जीवन पर धीरे-धीरे लेकिन सकारात्मक प्रभाव छोड़ रहा है। इसका एक मॉडल इस गांव का यह स्कूल है। इसे दूसरी तस्वीर में एक संकेत से समझें तो हेडमास्टर रमेश कोली बताते हैं कि पहले बच्चे अपने जूते स्कूल के बाहर बगीचे में इधर-उधर फेंक देते थे, लेकिन, अब वे अपने जूते बगीचे के बाहर एक स्टैंड पर व्यवस्थित तरीके से रखते हैं। बच्चे बगीचे को बढ़ाने और साफ-सुथरा रखने में लगातार उनकी मदद कर रहे हैं।


shirish khare

शिरीष खरे। स्वभाव में सामाजिक बदलाव की चेतना लिए शिरीष लंबे समय से पत्रकारिता में सक्रिय हैं। दैनिक भास्कर , राजस्थान पत्रिका और तहलका जैसे बैनरों के तले कई शानदार रिपोर्ट के लिए आपको सम्मानित भी किया जा चुका है। संप्रति पुणे में शोध कार्य में जुटे हैं। उनसे [email protected] पर संपर्क किया जा सकता है।