आशीष सागर
कहते हैं लाठी बुढ़ापे का सहारा होती है लेकिन अगर जवानी के शुरुआती पलों में थामनी पड़े तो जरा सोचिए पूरा जीवन कितना मुश्किल भरा होगा । काम करना तो दूर ठीक से चल पाने के लिए भी कितनी जद्दोजहद करनी पड़ती है, वही समझ सकता है जिसपर बीतती होगी । कुछ लोग कृतिम पैर लगाकर रोज मर्रा का काम निपटा लेते हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जो एक पैर से ही अपना मुकाम हासिल कर लेते हैं । ऐसे ही लोगों में एक नाम शुमार है देवराज यादव का । उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड के रहने वाले देवराज की ये तस्वीरें देख ये समझना मुश्किल नहीं कि देवराज का जीवन कितना कष्टकारी होगा । कुछ महीने पहले जब ये तस्वीर सूबे के सीएम अखिलेश यादव ने देखी तो उन्होंने फौरन देवराज को कृतिम पैर लगाने के लिए मदद भेजी । देवराज ने सीएम साहब की मदद स्वीकार भी कर ली और पैर भी लगवा लिया ।देवराज ने सूबे के सीएम का शुक्रिया भी अदा किया ।
देवराज ने काफी दिनों तक कृतिम पैर लगाकर अपना कामकाज निपटाने की कोशिश की, लेकिन उनको रास नहीं आया । सबने सोचा कि देवराज को पैर लग गए हैं तो उनका जीवन थोड़ा सुकून भरा हो जाएगा । हालांकि पिछले दिनों जब बुंदेलखंड की धरती पर बारिश की बूंदे पड़ीं तो एक बार फिर वही पूराना देवराज नज़र आने लगा । कृतिम पैर की जगह पैर में लाठी बांधे देवराज खेत की जुताई में लग गए । किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि देवराज को क्या हो गया, सरकार ने कृतिम पैर लगवाएं हैं फिर भी देवराज अपने पुराने तरीके से ही क्यों जीने की कोशिश कर रहे हैं । लिहाजा हमने देवराज से मिलने का फैसला किया । देवराज से बातें कि तो उन्होंने जो कुछ कहा उसे सुन मैं हैरान और परेशान था और सोचने पर मजबूर कि क्या यही जीवन का फलसफा है । मजबूरी इंसान की आदत बन जाती है और फिर छूटे नहीं छूटती । देवराज ने आखिर कृतिम पैर छोड़ दोबारा लाठी क्यों उठाई? इस बारे में देवराज ने क्या कुछ बयां किया ये सारी बातें की जाएं उससे पहले आपके लिए ये जानना जरूरी है कि आखिर लाठी देवराज का सहारा कब और कैसे बनी ।
देवराज के मुताबिक करीब 40-42 साल पहले जब वो 21 साल के हुए तभी खेत की जुताई के दौरान बैल ने उनपर हमला कर दिया जिसमें उनके दाहिने पैर में काफी चोट आई । गरीबी की वजह से ठीक से इलाज नहीं हो सका और आखिर में मेरा जीवन बचाने के लिए डॉक्टरों को पैर काटना पड़ा । काफी दिनों तक वो बिस्तर पर पड़े रहे लेकिन ऐसा कब तक चलता । परिवार का पेट भी पालना था लिहाजा उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और लाठी को अपना सहारा बना लिया । 40 साल पहले कमर में लाठी बांधकर जमीन का सीना चीरना शुरू किया जो आज तक चलता रहा । पिछले 4 दशक से लाठी और देवराज का रिश्ता इतना गहरा बन गया कि उन्हें कभी ऐहसास नहीं होता कि उनके पास एक पैर नहीं है, वो बिना थके, बिना रुके पूरे खेत की जुताई धड़ल्ले से करते लेकिन जब उन्हें कृतिम पैर लगाया गया तो उनको ऐसा लगा जैसे उन्हें अपंग बना दिया गया हो । देवराज कहते हैं कि उन्होंने 40 बरस से कमर में लाठी बांधकर हल चलाया ऐसे में कृतिम पैर लगने से काफी परेशानी हो रही थी इसलिए उसे निकाल दिया ।
देवराज के पास 3 बीघा जमीन है, लेकिन सूखे की वजह से बदहाल हुआ। देवराज ने मुश्किल हालात में बेटी की शादी और बेटे को पढ़ाया-लिखाया। हिम्मत नहीं हारी और खेती से कमाई कर हर महीने 12 हज़ार रुपये ब्याज चुकाते।कृतिम पैर के साथ सरकार ने 5 लाख की मदद दी तो कर्ज से मुक्ति मिली।
उत्तर प्रदेश सरकार से सम्मानित यह किसान बुंदेलखंड की शान है, यह आत्महत्या भी नही करता और ऐसा करने वालों को कायर भी कहता है ।फिर भी प्रायोजित प्रगतिशील किसानों ने इसको अपने बीच कभी बैठाना भी स्वीकार नही किया क्योकि इसके पास बेचने को किसानी नहीं है । ऐसे में देवराज के जज्बे और हौसले को हम सलाम करते हैं । इसलिए कृतिम पैर निकालने पर किसी को ऐतराज नहीं होना चाहिए और हमें ये समझना चाहिए कि जो 40 बरस पैर में लाठी बाँध के हल चलाया हो वो अपने कम्फर्ट जोन में ही किसानी कर सकता है ।
‘ फंदों पर लटक जाते हैं कुछ किसान कर्ज से ,
सरकारी नीतियों के शोषण और सूदखोरी के मर्ज से !
जहाँ हजारों किसान का रक्त इस धरा पर लाल है ,
वही ये लाठी देवराज का कमाल है ! ‘
बाँदा से आरटीआई एक्टिविस्ट आशीष सागर की रिपोर्ट। फेसबुक पर ‘एकला चलो रे‘ के नारे के साथ आशीष अपने तरह की यायावरी रिपोर्टिंग कर रहे हैं। चित्रकूट ग्रामोदय यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र। आप आशीष से [email protected] इस पते पर संवाद कर सकते हैं।
प्रेरणादायक स्टोरी है… ।
Very nice report