अरुण प्रकाश/
रवीश कुमार भारतीय मीडिया जगत का एक ऐसा नाम है जिसका आप भले ही विरोध करते हों, लेकिन उसकी अनदेखी नहीं कर सकते । रवीश कुमार को रेमन मैग्सेसे अवॉर्ड के लिए चुना गया है, ये अवॉर्ड एशिया का नोबल कहा था है, ऐसे में समझा जा सकता है कि रवीश कुमार की अहमियत हमारे समाज के लिए क्या है। रवीश कुमार हमारे आप जैसे ही हैं, हमारे आपके बारे में सोचते हैं और हमारी आपकी बात करते हैं, ये अलग बात है कि वो सरकार की तारीफ की बजाय जनता के दर्द की बात करना पसंद करते हैं ।जिस दौर में मीडिया और ज्यादातर पत्रकार साथी हर पल सरकार की खामियों की बजाय सरकार की तारीफ का कोई ना कोई रास्ता निकालने में तल्लीन रहे उस वक्त रवीश कुमार जनता की पीड़ा सुनाने में जुटे रहे, ये अलग बात है कि सरकार के लिए शोर करने वालों की आवाज के बीच जनता के लिए आवाज बुलंद करने वाले रवीश कुमार की आवाज मंद जरूर पड़ गई लेकिन ना कभी दबी और ना ही शांत हुई । रेमन मैग्सेस अवॉर्ड उसी का परिणाम है ।
पत्रकार का काम एक जिम्मेदार विपक्ष की तरह होता है यानी सरकार की उन नीतियों की आचोलना करना जो जनता के लिए हितकर ना हों, रवीश कुमार भी एक जिम्मेदार पत्रकार की तरह हमेशा अपनी आवाज जनता के लिए उठाते रहे, हालांकि इसका खामियाजा भी उन्हें उठाना पड़ा। सरकार की भजन मंडली आए दिन ट्रोल भी करती रही लेकिन रवीश कुमार कभी जन सरोकार के अपने लक्ष्य से ना तो भटके और ना ही अटके, बल्कि निरंतर बढ़ते रहे । रेमन मैग्सेस के लिए रवीश कुमार का चुनाव मौजूदा दौर की जरूरत थी । उम्मीद है रवीश कुमार की आवाज और लेखनी दोनों इसी तरह बेबाक चलती रहेगी । मैग्सेसे मिलने के ऐलान से पहले फेसबुक पर लिखा रवीश कुमार का एक लेख पाठकों के लिए साझा कर रहा हूं ।
रवीश कुमार के फेसबुक से साभार
नौकरियां जा रही हैं तो कोई बता क्यों नहीं रहा, मंदी है तो कहां है मंदी
अर्थव्यवस्था के आकार के मामले में भारत का स्थान फिसल गया है। 2018 में भारत पांचवे नंबर पर आ गया था अब फिर से सातवें नंबर पर आ गया है। 31 जुलाई के बिजनेस स्टैंडर्ड में ख़बर छपी है कि 2018 में भारत ने ब्रिटेन और फ्रांस को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था होने का स्थान प्राप्त किया था। 2017 में भारत की अर्थव्यवस्था का आकार 2.65 ट्रिलियन डॉलर का था। ब्रिटेन का 2.64 ट्रिलियन डॉलर का था और फ्रांस का 2.59 ट्रिलियन डॉलर का। अब ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था का आकार 2.82 ट्रिलियन डॉलर है और फ्रांस का 2.78 ट्रिलियन डॉलर का हो गया है। भारत की अर्थव्यवस्था का आकार 2.73 ट्रिलियन डॉलर का हो गया है। भारत अब सातवें नंबर पर आ गया है।आटोमोटिव कंपोनेंट मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन ने कहा है कि अगर ऑटो सेक्टर में मंदी जारी रही तो जल्दी ही दस लाख लोगों की नौकरियां जा सकती हैं। इस सेक्टर में 50 लाख लोगों को रोज़गार मिला है। इस सेक्टर में गाड़ियों के कल पुर्ज़े बनाने का काम होता है। जब यह प्रश्न पूछा गया कि क्या छंटनी शुरू हो गई है तब एसोसिएशन ने जवाब दिया कि इस सेक्टर में 70 फीसदी लोग कांट्रैक्ट पर काम करते हैं। जब मांग होती है तो काम मिलता है। इस जवाब से आपको इशारा साफ साफ मिल जाता है।
जुलाई में मारुति कंपनी की बिक्री 33.5 प्रतिशत घट गई है। जून महीने में कोर सेक्टर का ग्रोथ चार साल में सबसे कम रहा है। 0.2 प्रतिशत। मई में इस सेक्टर का ग्रोथ रेट 4.3 प्रतिशत था। एक महीने में 4.3 प्रतिशत से 0.2 प्रतिशत आने का मतलब है बिजली की गति से फैक्ट्रियां ठंडी पड़ गई होंगी। 50 महीने में यह सबसे अधिक गिरावट है। कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी उत्पाद, खाद, स्टील, सीमेंट और बिजली उद्योग को कोर सेक्टर कहा जाता है। इंडियन ऑयल का सकल मुनाफा 47 प्रतिशत घट गया है। विदेशी निवेशकों ने जुलाई महीने में भारतीय शेयर बाज़ार स 12,000 करोड़ निकाल लिए हैं। पिछले 9 महीने में यह सबसे अधिक है। अक्टूबर 2018 में 28,921 करोड़ निकाल लिया गया था। टैक्स के अलावा यह भी कारण है कि इन निवेशकों को लगता है कि भारत की अर्थव्यवस्था की रफ्तार थम रही है। कारपोरेट की कमाई घट गई है। उपभोक्ता कम ख़रीदारी कर रहा है।
मनी कंट्रोल वेबसाइट पर क्षितिज आनंद की रिपोर्ट है। जुलाई महीने में शेयर बाज़ार का प्रदर्शन 2002 के बाद पहली बार इतना ख़राब रहा है। 17 साल में पहली बार हुआ है जब जुलाई महीने में सेंसेक्स में 5.68 प्रतिशत की गिरावट आई है। सेंसेक्स में 500 कंपनियां दर्ज हैं। 50 फीसदी कंपनियों के शेयर दो अंकों में गिरे हैं।BSNL जुलाई महीने की सैलरी नहीं दे सका। अगस्त में देगा। 31 जुलाई को सैलरी आनी थी। नहीं आई। चेयरमैन ने कहा है कि 4-5 अगस्त को आएगी। BSNL ने 1.76 लाख कर्मचारी काम करते हैं।अर्थव्यवस्थाएं ठीक भी हो जाती हैं मगर मोदी सरकार के दौर में अर्थव्यवस्था ख़्वाब ही दिखाते रह गई। भारत में अरबपतियों की संख्या कम हो गई है। शेयर बाज़ार में गिरावट के कारण अरबपतियों की संपत्ति घट गई है। 2018 में ऐसे प्रमोटर की संख्या 90 हो गई थी जो अब तक की सबसे अधिक संख्या थी। लेकिन अब घट कर 71 हो गई है। इनकी भी कुल संपत्ति घट गई है। पिछले मार्च में 353 बिलियन डॉलर थी, जो 326 बिलियन डॉलर हो गई है।
एसोसिएशन आफ डेमोक्रेटिक रिफार्म ने बताया है कि 2018 में बीजेपी की चल अचल संपत्ति में 22 प्रतिशत का इज़ाफ़ा हुआ है। कांग्रेस का 15 प्रतिशत घट गया है। अर्थव्यवस्था में ऊपर नीचे होता रहता है। बिल्कुल चिंता न करें। कल फिर ठीक हो जाएगा।न्यूज़ चैनलों के प्रोपेगैंडा में खो जाएं। मस्त रहें। हिन्दू मुस्लिम के और भी टॉपिक आएंगे। हमारी आंखों के सामने पीढ़ियां बर्बाद हो रही हैं लेकिन उसका फायदा है कि लोग नौकरी के सवाल पर नहीं सोच रहे हैं। कई लोग लिख रहे हैं कि अर्थव्यवस्था का हाल इसलिए है कि प्रधानमंत्री डिस्कवरी चैनल के किसी शो में व्यस्त हैं। यह आरोप ठीक नहीं है। प्रधानमंत्री नोटबंदी के समय तो डिस्कवरी चैनल के लिए शूटिंग नहीं कर रहे थे। वे दिन रात काम कर रहे हैं तभी यह हाल है। 5 साल में अर्थव्यवस्था को लेकर कहानी ही बनती रही। उनके काम का नतीजा दिखाई नहीं देता है। प्रधानमंत्री ने शूटिंग के लिए हाँ बोलकर ठीक किया। डिस्कवरी चैनल के बहाने कम से कम कुछ काम तो किया। शो की रेटिंग आएगी। उनकी लोकप्रियता पर बहस होगी।
भारत के नौजवान दुनिया के पहले नौजवान हैं जिन्होंने रोज़गार के सवाल को ही ख़त्म कर दिया है। उन्होंने जिस पुलवामा के नाम पर वोट दिया था उसके होने के दिन तो प्रधानमंत्री शूटिंग कर रहे थे। अच्छा हुआ कि राहुल गांधी ने यह ग़लती नहीं की वरना न्यूज़ चैनल उन जगहों पर जाकर आज तक रिपोर्ट कर रहे होते। मीडिया से भी आग्रह है कि वह ज़्यादा से ज़्यादा विपक्ष को लेकर सवाल करे। ताकि सरकार को कोई तकलीफ न हो। जो लोग सरकारी परीक्षाओं के भरोसे बैठे हैं वे रेलवे में 3 लाख कर्मचारियों की छंटनी की ख़बर मुझ तक फार्वर्ड न करें। इन कर्मचारियों से भी हिन्दू मुस्लिम के सवाल पूछ दें, गारंटी है कि ये अपना दर्द भूल जाएंगे। लाखों लोगों की नौकरियां दांव पर हैं, लाखों लोग शांत हैं। 10 लाख लोगों का काम छिन रहा है। पता भी नहीं है कि कितने लोगों का काम ठप्प पड़ रहा है। इन लोगों ने भी हमारी टाइम लाइन पर आकर अपनी व्यथा नहीं बताई है। क्या पता बिजनेस ठंडा होते ही ये लोग फेसबुक बंद कर देते होंगे। नौकरी जाते ही लोग टीवी नहीं देखते होंगे।
जो भी है कि चिन्ता न करें। फिर से बहार आएगी। नौकरी का जाना देश के लिए अच्छा है। घर बैठकर टीवी पर और बहस देखने का मौका मिलेगा। आप पोज़िटिव फील करेंगे। ज़्यादा कोई सवाल करे कि घर क्यों बैठे हो, क्यों मोदी मोदी करते हो तो उल्टा सवाल दाग दीजिए कि राहुल गांधी के बारे में क्या राय है। कांग्रेस क्या ठीक है। पक्का उसकी बोलती बंद हो जाएगी।