राकेश कायस्थ
बीजेपी के आप कितने बड़े आलोचक क्यों ना हो राजनीतिक जीवन में पारदर्शिता स्थापित करने का क्रेडिट उसे देना ही पडे़गा। कर्नाटक का ड्रामा जिस दिन से शुरू हुआ उसी दिन से तमाम बीजेपी नेता दावा कर रहे थे कि हम कांग्रेसी विधायकों को तोड़ लेंगे। क्या किसी पार्टी ने कभी इतनी साफगोई से इस तरह के इरादे जताये हैं?
कर्नाटक में एक नैतिक और ईमानदार सरकार बनाने की बीजेपी की कोशिशें दुर्भाग्य से नाकाम हो गईं। उसके बाद बीजेपी प्रवक्ता ने कहा कि कांग्रेस ने अलोकतांत्रिक तरीके से अपने विधायकों को कहीं छिपा दिया था, इसलिए हम नाकाम हो गये। तब लोगो को प्रवक्ता गौरव भाटिया के बयान को मजाक में लिया। आज बीजेपी के वरिष्ठ नेता सुधांशु त्रिवेदी ने यही बात दोहराई और साथ ही यह भी कहा कि उस समय से तो छिपा दिया था, लेकिन आखिर कांग्रेस अपने विधायक कब तक छिपाएगी?
पारदर्शिता सनातन भारतीय दर्शन है, पुराने जमाने में डाका डालने वाले भी पहले चिट्ठी भेजते थे। परंपरा लुप्त हो गई थी। अच्छी बात है कि अब कोई इसे फिर से स्थापित करने के लिए आगे आ रहा है। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने भी पारदर्शिता के नये प्रतिमान कायम करते हुए दावा किया है कि फाइव स्टार होटल में बंद विधायक थोड़ी देर के लिए भी बाहर आ गये होते तो उनका वोट बीजेपी को ही जाता।
थोड़ा पीछे लौटें तो स्वयं प्रधानमंत्री ने उत्तर प्रदेश की चुनावी रैलियों में विपक्षी नेताओं को ज्यादा ना फड़फड़ाने की सलाह दी थी, क्योंकि सबकी कुंडली सरकार के पास है। कर्नाटक में भी प्रधानमंत्री ने भी ऐसी ही चेतावनी दी। जनता के दरबार में जाकर ब्लैकमेलिंग की ऐसी अनोखी मिसाल भारत क्या पूरी दुनिया में कही नहीं मिलेगी। पारदर्शिता और नैतिकता इसी रफ्तार से आगे बढ़ी तो क्या होगा? हो सकता है अगले चुनाव में यह कहा जाये कि हम इनकी कारगुजारियों का कच्चा-चिट्ठा शराफत से दबाये बैठे हैं, अभी तक ना मुकदमा किया है और ना जेल भिजवाया है, लेकिन ये कमबख्त इतने बेशर्म हैं कि ब्लैकमेल होने तक को तैयार नहीं हो रहे हैं। जनता सब देखती है, वह ब्लैकमेल ना होनेवालों को सबक ज़रूर सिखाएगी।
राकेश कायस्थ। झारखंड की राजधानी रांची के मूल निवासी। दो दशक से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय। खेल पत्रकारिता पर गहरी पैठ। टीवी टुडे, बीएजी, न्यूज़ 24 समेत देश के कई मीडिया संस्थानों में काम करते हुए आपने अपनी अलग पहचान बनाई। इन दिनों स्टार स्पोर्ट्स से जुड़े हैं। ‘कोस-कोस शब्दकोश’ और ‘प्रजातंत्र के पकौड़े’ नाम से आपकी किताब भी चर्चा में रही।
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