गुजरात से पलायन और सियासत का मकड़जाल

गुजरात से पलायन और सियासत का मकड़जाल

राकेश कायस्थ

गुजरात में भड़की हिंसा और यूपी-बिहार के मजदूरों के पलायन के पीछे की असली वजह क्या है? सरसरी तौर पर देखने पर एक बड़ी वजह कांग्रेस विधायक अल्पेश ठाकोर का भड़काऊ भाषण नज़र आता है। फिर गुजरात की बीजेपी सरकार अल्पेश ठाकोर को गिरफ्तार क्यों नहीं कर रही है?
गुजरात सरकार अल्पेश ठाकुर को गिरफ्तार नहीं करेगी। इसके बदले यूपी-बिहार के उन नेताओं से आक्रमक बयान दिलवाये जाएंगे जो खुद अपने राज्यों में मिशन 2019 के तहत मुसलमानों के खिलाफ ऐसी ही भीड़ तैयार करने में जुटे हैं।
कांग्रेस का नाम आते ही बीजेपी की लॉटरी खुल गई है। आक्रमक जातीय और सांप्रादायिक लामबंदी की दूसरी ऐसी पचास घटनाओं को अल्पेश ठाकोर के एक बयान के आधार पर वैध ठहराया जा सकेगा। यही वैधता बीजेपी की संजीवनी है। मौजूदा हालात ज्यादातर न्यूज़ चैनलों के लिए भी माकूल हैं, जो 2019 के कांट्रैक्ट के तहत कांग्रेस के खिलाफ कैंपेन चला पाएंगे और ऐसे दूसरे मामलों में चिर-परिचित चुप्पी ओढ़े रहेंगे।

आखिर वह कौन सी भीड़ है, जो आधार कार्ड देखकर यूपी-बिहार के लोगो को पीट रही है और उन्हें गुजरात से भागने को मजबूर कर रही है? यह वही भीड़ है, जिसने 2002 में गर्भवती औरतों के पेट तलवार से चीर दिये थे। यह भीड़ एक दिन में तैयार नहीं हुई है। इसे ‘परिवार’ की लैबोरेट्री में आहिस्ता-आहिस्ता बनाया गया है। सांप्रादायिकता, क्षेत्रीयतावाद या ऐसे तमाम बहुसंख्यवादी विचार कांबो ऑफर में आते हैं, अकेले नहीं। जो भीड़ मुसलमानों से नफरत करेगी, वह यूपी-बिहार वालों से प्यार करे ऐसा संभव नहीं है। गुजरात की बीजेपी सरकार जानती है कि अल्पेश ठाकोर की गिरफ्तारी का मतलब उन्हें गुजरात में हीरो बनाना है, ऐसे में बिना किसी बड़ी मजबूरी के वह यह खतरा हर्गिज नहीं उठाना चाहेगी।
राहुल गांधी गुजरात में अल्पेश ठाकुर की अहमियत जानते हैं। इसलिए उन्होंने गुजरात की घटना की समाजशास्त्रीय और अर्थशास्त्रीय विवेचना करने के बाद पलायन करने वाले मजदूरों से हमदर्दी जताई है, मगर यह नहीं कहा कि हमारा कोई नेता जिम्मेदार हुआ तो कार्रवाई करेंगे। अल्पेश ठाकोर बीजेपी की राजनीति के शातिरपने को पहचाने हैं। उससे बहुत कुछ सीख चुके हैं। इसलिए एक तरफ उन्होंने भड़काऊ भाषण दिया, दूसरी तरफ बिलख-बिलख कर रो रहे हैं। यह पैंतरा वैसा ही है, जैसा `मुझे मार डालों लेकिन दलितों पर अत्याचार बंद करो’ वाला था। राजनीतिक पार्टियां सिर्फ इस बात से डरती हैं कि विरोधी उनके हथकंडे ना चुरा लें।

कांग्रेस पिछले कुछ समय से यही कर रही है और खासी कामयाब हो रही है। राहुल गांधी जब तक सेक्यूलर राजनीति की बात करते थे, बीजेपी खुश होती थी। लेकिन जनेऊ दिखाने और कैलाश मानसरोवर जाने के पैंतरों से घिग्घी बंद गई है। बीजेपी का हर बड़ा नेता चीख-चीखकर राहुल गांधी की आस्था पर सवाल उठा रहा है। राजनेताओं को पता होता है कि वोट के बाज़ार में क्या बिकता है और क्या नहीं।  यह बहुत साफ है कि जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आएगा चारों तरफ सिर्फ बेशर्म हथकंडों का बोलबाला होगा। राजनीति जिस जनविरोधी प्रतिगामी अंधी सुरंग में दाखिल हो चुकी है, उससे इसका बाहर निकल पाना लगभग नामुमकिन दिखाई दे रहा है।


राकेश कायस्थ।  झारखंड की राजधानी रांची के मूल निवासी। दो दशक से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय। खेल पत्रकारिता पर गहरी पैठ। टीवी टुडे,  बीएजी, न्यूज़ 24 समेत देश के कई मीडिया संस्थानों में काम करते हुए आपने अपनी अलग पहचान बनाई। इन दिनों एक बहुराष्ट्रीय मीडिया समूह से जुड़े हैं। ‘कोस-कोस शब्दकोश’ और ‘प्रजातंत्र के पकौड़े’ नाम से आपकी किताब भी चर्चा में रही।