जयंत कुमार सिन्हा
लखनऊ का नाम आते ही नजर में कौध जाती है गोमती पर बिखरी गुलाबी शामें, लखौड़ियों से बनी बड़ी-बड़ी आलीशान इमारतें, दरवाजों पर सजी लचकीली मछलियाँ, कुछ हसीन सूरतें और फिर जेहन से दिल में उतरती मीठी जुबान। सम्राट हर्षवर्धन के साम्राज्य के बिखर जाने के बाद लगभग 13वीं शताब्दी से नबावों का शहर बन गया लखनऊ। सआदत खाँ बुरहानुल्मुल्क से लेकर वाजिद अली शाह तक, अंग्रेजी हुकूमत से आज तक का लंबा राजनीतिक सफर तय किया है इस नगरी ने। लखनऊ माशूकों की गुस्ताखियों, मुसाहिबीन की चालाकियों के गिरफ्त में आकर आज देश का सबसे बड़ा लोकसभा अखाड़ा बन गया। रसूखदार नेताओ का पसंदीदा लोकसभा क्षेत्र होने का तमगा इसको मिलता रहा। पूर्व प्रधानमंत्री से लेकर देश के वर्तमान गृहमंत्री राजनाथ सिंह का संसदीय क्षेत्र बनने सौभाग्य मिले इसे।
आदर्श गांव पर आपकी रपट-6
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चयनित गाँव की बदली सूरत
मुख्यालय लखनऊ से लगभग 28 किलोमीटर दूर बेती गाँव। लखनऊ-कानपुर मुख्य मार्ग से महज 5 किलोमीटर दूर। गाँव से सटा हाईवे और अच्छी परिवहन व्यवस्था होने से बेती को लखनऊ का निकटवर्ती गाँव कहने में कोई गुरेज नहीं है।यहां के लोगों का सामान्यतः जीवन खेती-बारी पर निर्भर। छोटे से लेकर 20 बीघे तक के किसान परिवार हैं। कुछ ऐसे भी परिवार हैं, जो मजदूरी करके ही पेट भरने की जुगत करते हैं। वैसे आज की वस्तुस्थिति कुछ भिन्न है। शहर से निकटता के कारण जमीन की कीमत बेतहाशा बढ़ी है। अब खेती से दूर लोग बिजनेस की ओर बढ़ रहे हैं। पहली पसंद खुद का व्यापार, अगर नहीं कर पाये तो लखनऊ के किसी शो रुम में नौकरी कर ली।
चाय वाला पंत प्रधान तो पानी वाला बना गांव प्रधान
बदलाव टीम को गांव में दाखिल होने के बाद थोड़ी सी मशक्कत के बाद ही मिल गए गांव प्रधान विकास साहू। साहू बताते हैं कि प्रधान से पहले वो पुष्पा बजाज की एजेन्सी में पानी पिलाने का काम करते थे। परिवार की माली स्थिति ठीक नहीं थी, फिर भी अपनी पढ़ाई को जारी रखते हुए बीए किया। गाँव के एक मात्र तेली परिवार से आते हैं विकास साहू। अपने प्रधान बनने के वाक्ये पर विकास बताते हैं कि “2015 में प्रधान की सीट आरक्षित हो गई। तब लोगों ने मुझे चुनाव लड़ने को कहा, चूंकि ब्राह्मण परिवार गाँव में लगभग 85 प्रतिशत हैं, ऐसे में सभी के सहयोग से मुझे प्रधान बनने का अवसर मिला।”
गांव में पढ़ाई लिखाई का क्या है आलम
बदलाव की टीम पहले गाँव के प्राथमिक स्कूल गयी। शनिवार का दिन था और दोपहर का समय, स्कूल की छुट्टी होने वाली थी। नये रंग-रोगन किये भवन, फर्श पर टाइल्स, पीने के लिए पानी टंकी के साथ नल की सुविधा, लड़के और लड़कियों के लिए अलग-अलग शौचालय की व्यवस्था। स्कूल के चारों तरफ बाउण्ड्री। इतनी सुसज्जित व्यवस्था सरकारी विधालय की हो ऐसा यकीन कर पाना, पहली नज़र में मुश्किल हो रहा था। खैर इस गाँव प्राथमिक, मध्य और राजकीय हाई स्कूल सासंद के गोद लेने के बाद संवर गए हैं, इसमें संदेह की गुंजाइश नहीं रह गई थी।
बातचीत के दौरान पता चला कि लड़कियों के अनुपात में लड़कों की इस वर्ष ज्यादा उपस्थिति है। प्राथमिक स्कूल की शिक्षिका ने बताया कि 116 लड़के और 96 लड़की इस साल विद्यालय मे पढ़ने आ रहे हैं। विद्यालय के दिन फिरने पर कहती हैं कि पुराने भवन में पढ़ाना तो हमलोगों ने छोड़ दिया था। एक कमरा था बाकी पूरी बिल्डिंग जर्जर हालत में थी। माननीय राजनाथ सिंह के गोद लेने से ही कायाकल्प हो गया, तीनों विद्यालय का।
पगडंडी बनी सड़क, खम्बों पर टिमटिमाती रोशनी
गाँव के अन्दर की सड़कें ईंट और कहीं-कहीं सीमेन्ट की बनी हुई हैं। ग्रामीणों की माने तो पहले से गाँव में कहीं- कहीं ईंट वाली सड़क थी। सासंद निधि से बाकी बची कच्ची सड़क को ईंट और जहां गढ्ढा था वहाँ सीमेन्ट का बनवाया गया है। गाँव मे बिजली आयी मायावती के शासन में। आदर्श ग्राम बनने के साथ खम्बों पर लाइट लगीं। सोलर लाइट लगीं, बिजली पूरे दिन के 22-23 घंटे रहती है। खेती के लिए सरकारी ट्यूब बेल बनवाया गया है। पानी टंकी बन रही है, जल्द ही घर-घर पीने के पानी आना चालू हो जाएगा। वैसे गाँव मे दस हैन्ड पम्प भी लगे हैं।
आर्दश ग्राम से पहले सरोजनी नगर या लखनऊ के किसी बैंक मे दौर भाग करनी पड़ती थी। बृजमोहन बताते हैं कि जब स्कूल के मरम्मत का काम चल रहा था तभी सासंद महोदय गाँव घूमने आये थे। सबने उनसे कहा कि एक बैंक खुल जाता तो लखनऊ का चक्कर काटने से हमलोग बच जाते। कुछ ही दिन बाद ओरिएन्टल बैंक की शाखा खुल गयी। बैंक से केवल बेती गाँव ही नहीं आस-पास के आठ-दस गाँवों को फायदा मिला।
शौचालय बना कंडा घर
शौचालय के मामले में सोच ज्यादा नहीं बदली। सरकारी शौचालय ज्यादातर घर के बाहर बने मिले। चूंकि मैं स्वयं घर के अन्दर नहीं गया, इस कारण यह बताना मुश्किल है कि घर के अन्दर शौचालय है भी या नहीं। लेकिन लोगों के जन-जीवन की सम्पन्नता, मोटर-गाड़ी और बुलेट की रौब ने तो बता दिया की शौचालय तो जरुर होगा। फिर भी दरवाजे के बाहर सरकारी शौचालय अपनी उपस्थिति बयां कर रहे थे। कहीं-कहीं तो उसे चालू हालत में रखा है लोगों ने तो कहीं उसे कंडा घर बना दिया है।
ग्राम प्रधान विकास साहू के अनुसार बेती को एक योग केन्द्र जल्द ही मिलेगा। साथ ही तीनों विद्यालय के लिए भविष्य को देखते हुए माननीय सासंद ने सौर उर्जा पावर प्लाट की नींव रख दी है। इस पर तेजी से काम चल रहा है, इससे प्राथमिक, मध्य और राजकीय हाई स्कूल को बिजली सप्लाई होगी। इण्टर कालेज के लिए दिल्ली से पत्र आ गया है। अब अपने गाँव के लड़के-लड़कियों के लिए यही इण्टरकालेज की सुविधा मिलेगी। साहू बताते हैं कि पूरी योजना को समय के अन्दर पूरा करने की जिम्मेदारी विधायक स्वाति सिंह को सौंपी गई है। वो अक्सर खुद आती हैं और योजना का निरीक्षण करती हैं। वैसे राजनाथ सिंह भी अभी तक 5-6 बार बेती आ चुके हैं।
बदलाव ने देखा कि शहर के पास होने से गाँव की मूलभूत जरुरतों के लिए यहां के बाशिंदों को ज्यादा जूझना नहीं पड़ता। जमीन पर बिल्डरों से लेकर छोटे दलालों तक की नजर है। 85% ब्राह्मण परिवार वाले गाँव में खेती से लगभग मोह भंग हो चुका है। व्यापार, नौकरी और शहरी जीवन का रौब सिर पर सवार है। वही आर्दश ग्राम के सपनों को संवारा है माननीय ने, काश इतनी शिद्दत से दूसरे सासंद भी गाँव को सवाँरने में दिलचस्पी लेते।
जयंत कुमार सिन्हा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल के पूर्व छात्र। छपरा, बिहार के मूल निवासी। इन दिनों लखनऊ में नौकरी। भारतीय रेल के पुल एवं संरचना प्रयोगशाला में कार्यरत।
आदर्श गांव पर आपकी रपट
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सुंदर प्रस्तुति ।
बहुत ही उम्दा