धीरेंद्र पुंडीर
धर्म किसी ओर नहीं है, नैतिकता न इधर है न उधर है, सच का न इधर से कोई वास्ता न उधर से कोई ताल्लुक। लोकतंत्र सिर्फ सिक्कों पर बिकता है यहां, ये रिपब्लिक ऑफ बल्लारी है। यहां खानों से लहूलुहान होकर निकलता है लोकतंत्र। ऐसा ही सपना देखा था क्या महानुभवों? कर्नाटक पर धीरेंद्र पुंडीर की सियासी बातचीत की दूसरी कड़ी।
सड़क बेहद मजबूत, साफ और बेदाग सी दिख रही थी। पूरे रास्ते जिस तरह की सड़कों से होकर आया था, उसको देखकर रात के एक बजे ये सड़क जैसे चांदमी बिखेर रही थी। एक तरफ पूरे रास्ते उबड़-खाबड़ और निर्माण कार्यों के चलते डाईवर्जन और दूसरी तरफ रात में ऐसी सड़क से गुजरना जिस पर कोई धब्बा भी न हो. आपकी उऩींदी आंखों को जगा सकता है।
कुछ सौ मीटर दूर जाने के साथ ही चांदनी को दाग लग चुका था। सड़कें उबड़-खाबड़ हो चुकी थीं। और मैं होटल में रात के साथ सोने जा चुका था। सुनसान बेल्लारी में ये पहला प्रवेश था। सुबह उठते ही बेल्लारी किंग से मिलने के लिए रास्ता पूछा तो लोगों ने जिस तरफ इशारा किया, ये वही रात की सड़क निकली। एसपी सर्किल से पचास मीटर दूर ही किनारे पर एक खूबसूरत ख्वाब की तरह से बना आलीशान मकान दिख रहा था। उस मकान से निगाह हटती कि सामने दूसरा मकान दिखाई दिया। पूछने की जरूरत तो नहीं थी लेकिन फिर भी पूछा पता चला कि सुनसान पड़ा पहला खूबसूरत मकान गॉली जनार्दन रेड्डी का है।
बीजेपी कानून का पालन करती है इसीलिए जर्नादन रेड़्डी से कोई रिश्ता नहीं रखती लेकिन पार्टी के चुनाव प्रचार के लिए बेल्लारी पहुंचे कन्नड़ फिल्म स्टार सुदीप कुमार उसी जिलाबदर नेता के आलीशान बंगले या महल में ठहरते हैं। मीडिया सुदीप की एक झलक पाने के लिए बेकरार था। सुदीप लोकतंत्र की मदद कर रहे थे- कोढ़ में खाज की तरह। पैसे से पार्टी की मदद का भरोसा हुआ होगा।
फिर आगे की ओर जो महल दिख रहा था उसकी बाऊंड्री वॉल से ऊपर दिखता हुआ पॉर्च लगभग 30 मीटर का हो सकता है, ( फ्लैट में रहता हूं सो ऊंचाई का अंदाज नहीं हो पा रहा है) ये श्रीरामालु का घर है। इस वक्त बीजेपी के लिए दलित वोट बैंक की उम्मीद। इस घर में अंदर जाने के बाद आपको हिंदी फिल्मों के घर याद आ सकते हैं, जिनमें एक प्रेस क्रांफ्रेस का हॉल भी मौजूद है, जिसमें करीब 200 लोग आसानी से आ सकते हैं । फिर एक शानदार ऑफिस उसके बाद बीच में एक लंबा गलियारा और फिर मुझ जैसे के लिए मानो एंट्री का बोर्ड।
इसी मकान से आगे की ओर चलते हुए 200 मीटर दूर चलते ही उसी साइड में एक और शानदार मकान और अब तक आप समझ चुके होते हैं कि ये करूणाकर रेड्डी यानि रेडडी ब्रदर के दूसरे भाई का आशियाना है। उनके घर के सामने गली में पहुंच जाते तो बेल्लारी किंग रेड़्डी के तीसरे भाई सोमसशेखर रेड्डी के घर पर फहराता हुआ भाजपा का ध्वज देख कर समझ सकते हैं कि बीजेपी को बेल्लारी में कितने मजबूत हाथों ने थामा हुआ है। सड़क की खूबसूरती का राज समझ में आ गया। ये सड़क बेल्लारी की ताकत की सड़क है। इस सड़क पर रेड़्डी बंधु चलते हैं और इस सड़क पर श्रीरामालु भी चलते हैं। और ये कितनी उदारता है उनकी कि इस पर आम आदमी भी चल सकता है और इस पर चल कर वोट देने जा सकता है।
जनार्दन रेड्डी कोर्ट के आदेश पर जिला बदर हैं। और हाथी के दिखाने वाले दांतों की तरह बीजेपी भी उनसे दिखाने के लिए हाथ झाड़ चुकी है। फिर श्रीरामालु है, जो सांसदी जीत कर भी अब बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। श्रीरामालु को रेड्डी बंधुओं का दिमाग कहा जाता है। हजारों करोड़ रुपये की गैरकानूनी माइनिंग के आरोपों में घिरे रेड्डी का रणनीतिकार। इसके बाद करूणाकर रेड्डी बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। फिर बेल्लारी मेन सीट से ताल ठोक रहे हैं सोमशेखर रेड्डी। यानि खान की लूट पर मुहावरा बन चुके रेड्डी बंधुओं को तीन टिकट दे कर बीजेपी ने लोकतंत्र की रक्षा करने के अपने स्वयंभू अधिकार की रक्षा का जिम्मा इन्हीं पर छोड़ा है।
श्रीरामलु ने कहा कि मैं और जनार्दन रेड्डी मित्र हैं और कुछ भी नहीं, सिर्फ राजनीति ने उनको फंसाया है। खनन बंद हुआ तो हजारों लोग बेरोजगार हो चुके हैं। जब खनन चल रहा था तो ये शहर खुशहाल था। श्रीरामालु ने जनता की मदद के अपने काम गिनवा दिए और मुझे उनकी कोठी के बाहर लगा हुआ आर ओ वाटर प्यूरीफायर याद आया जिसमें लोगों को पानी ले जाने की छूट है।
इसके बाद कांग्रेस के उम्मीदवार की तलाश में पहुंचा तो पता चला कि वो एक बड़े होटल में तीसरी मंजिल पर बैठते हैं। होटल के बाहर अंदर महंगी एसयूवी और कारों के काफिले को पार कर 301 कमरा नंबर में पहुंचा मिलने तो पता चला कि अभी दिल्ली से आए हुए शेखर गुप्ता इंटरव्यू कर रहे हैं। अनिल लाड 2015 में सीबीआई के शिंकजें में फंस चुके थे। ये भी माईनिंग किंग हैं, महज 44 साल की उम्र में बीजेपी और कांग्रेस के बीच का सफर तय कर चुके हैं और इस दौरान हजार करोड़ की माइनिंग के आरोपों से नवाजे जा चुके हैं। कांग्रेस और जनता के समर्थन से ये बेल्लारी किंग्स को मात देने में जुटे हुए हैं। 2013 में कांग्रेस की पताका फहरा चुके हैं और उसके बाद सरकार में छूट की लूट का मजा भी उठा चुके हैं।
खैर इनसे अलग होकर सोचा तीसरे उम्मीदवार से मिला जाए। इकबाल साहब जेडीएस के कैंडीडेट है और माइनिंग से ही ताल्लुक रखते हैं। पिछले चालीस साल से भी ज्यादा उनका परिवार माइनिंग से जुड़ा हुआ है। बेहद सलीके से अपनी बात रखते हुए उन्होंने कहा कि जैसे दूसरे शहरों में दूसरे धंधों से जुड़े हुए लोग ज्यादा होते हैं तो वही जनता का नेतृत्व संभालते हैं। ऐसे ही इस शहर को माईनिंग से जुड़े हुए लोगों को चुनना कोई अजीब नहीं है।
इसके बाद एक और कैंडीडेट से मिला जिसको तापल के नाम से जाना जाता है। अपने घर में खाना खाने आए तापल ने 2006 में कुछ सरकारी कागजों के सहारे बेल्लारी किंग की लूट का राज फाश किया था। सुषमा जी के आशीर्वाद से मानव से महामानव में बदल गए बेल्लारी किंग्स को सलाखों के पीछे ले जाने की पूरी कवायद को जन्म देने वाले तापल गणेश भी माईंनिग से जुड़े हैं। मैंने पूछा कि जनता किसी ऐसे आदमी को चुनने की आजादी रखती है या नहीं जो माईनिंग से न जुड़ा हो, इस पर तापल का जवाब बेहद मासूम था कि वो तो छोटे माईनर है उनको बड़े माईन किंग्स से कैसे जोड़ा जा सकता है।
खैर मैं उसके बाद आम लोगों से मिलने लगा तो देखा कि ज्यादातर लोग पार्टियों के नाम से ज्यादा इन्हीं शख्सियतों के नाम के दीवाने थे। लेकिन ये पार्टियों के नाम पर लड़ रहे हैं तो पार्टियों की तारीफ भी करते हैं। किसी को लगता है कि पानी मिलता है इनके निजी टैंकरों से, किसी को लगता है कि पैसे रूपये से मदद कर देते हैं। किसी को जाति का समीकरण भी दिखता है लेकिन किसी को ये नहीं दिखता कि लगभग 10,000 करोड़ रूपये से भी ज्यादा लूट का साम्राज्य खड़ा करने वाले इन लोगों ने जो पैसा लूटा वो बेल्लारी का था। उसी बेल्लारी का जो इतनी लूट के बाद भी गरीब है, बाकी शहरों की तरह। आखिर ये पैसा कहां चला गया। बेल्लारी की कहानी इसलिए भी दहला देती है क्योंकि हिंदुस्तान के मध्यकालीन इतिहास का सबसे सुंदर पन्ना था-बेल्लारी।
धीरेंद्र पुंडीर। दिल से कवि, पेशे से पत्रकार। टीवी की पत्रकारिता के बीच अख़बारी पत्रकारिता का संयम और धीरज ही आपकी अपनी विशिष्ट पहचान है।