पशुपति शर्मा के फेसबुक वॉल से साभार
कोरोना काल- एक
वो मौत हथेलियों पर
लेकर निकले हैं
अपनों को मौत बांटने नहीं
अपनों के बीच
जीने-मरने के लिये
कोरोना काल -2
मां भूख लगी है
मुन्ना थोड़ा रुक जा
सरकार ने रोटी भेजी है
भूख को क्या मालूम
ये कैसा वक़्त है
मुन्ने को भी क्या मालूम
अभी कितने दिन
भूख का वक़्त तय रखना होगा
बन्द कमरों से झांक कर देखना
भूख का लॉकडाउन
मुन्ने और माँ दोनों के लिए
कितना मुश्किल है!
कोरोना काल -तीन
विस्थापन तन का हो
या हमारे तुम्हारे मन का
बेचैनी
एक सी होती है शायद!
शापित हैं हम
उखड़ने, उजड़ने को
फिर भी पोटली में
समेट लेने को आतुर हैं
जो कुछ
साथ लेकर चल सकें!
बंद मुट्ठी की तरह
लाख की ही निकले
ये बन्द पोटली।
कोरोना काल-4
तुम मत निकालना
अपने छोटे-छोटे ‘ठेले’
उन्हें तुम्हारी ‘जान’ की फिक्र है!
तुम जाकर खड़े हो जाना
लंबी-लंबी कतारों में ‘ठेके’ पर
उन्हें तुम्हारे ‘जाम’ की फिक्र है!
तुम मत पूछना उनसे
उनके तर्कों में हम सब ‘ठेंगे’ पर हैं?
‘जान’ से ‘जाम’ तक सारी फिक्र उनकी है!
‘ठेले’ से ‘ठेके’ तक
उनके ‘ठेंगे’ पर है कोरोना!
पशुपति, 5 मई 2020