पंखुरी सिन्हा
चिड़ियों को नहीं भेजने होते
कबूतरों के गुलाबी पैरों में बाँध कर निमंत्रण पत्र
केवल पेड़ लगा देने से वो चली आती हैं
वो सारी आत्मीयता लिए
जो प्राकृतिक है
और सहजकोई राजनीति नहीं
उनकी बुलाहट की
तस्वीरों का सारा सौंदर्य लिए
वो चले आते हैंविदेशी तस्वीरों जैसे हमिंग बर्ड
चमकीले रंगों वाले
अजब रंगों वाले
जिनका पराग का पान करते
हवा में उड़ना
होता है जादू के खेल का देखनापंजे उठाये
या उठाये अपने पैर
डैने फड़फड़ाते
नहीं पसारते
बिन पसरा
उड़ने का
जादू का खेलअकेले
बस में करती
चिड़िया जादूगरनी
चुराती मेरा शहर
मेरा बगीचा
मेरा दिन
आँखें उसकी मोहताज
लगाकर पेड़
इंतज़ार उसका
फूलों का भी
दुहरा इंतज़ार
अकेला इंतज़ार
आएगी वह
जो कभी जोड़े में नहीं आती
गर्वीली, हठीली चिड़ियाआते हैं सतभइये
जो कभी अकेले नहीं आते
कभी अकेले नहीं आता
घुघ्घू पक्षी का झुण्ड
आता है सात की संख्या में
सब जानते हैं।
पंखुरी सिन्हा। दिल्ली विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा। पत्रकारिता में अभिरुचि। हंस, कथादेश, वागर्थ, वसुधा, साक्षात्कार समेत देश की सभी प्रमुख पत्रिकाओं में रचना प्रकाशित। ज्ञानपीठ से आपके दो कहानी संग्रह ‘कोई भी दिन’ और ‘क़िस्सा-ए-कोहिनूर’ प्रकाशित। ‘प्रिजन टॉकीज़’ और ‘डिअर सुज़ाना’ अंग्रेज़ी के कविता संग्रह भी काफी सराहे गए।