सियासी ‘महाभारत’ के बाद शालीनता का शांतिपर्व

सियासी ‘महाभारत’ के बाद शालीनता का शांतिपर्व

पीयूष बबेले के फेसबुक वॉल से साभार
एक महीने के शोर शराबे और हद दर्जे के आक्रामकप्रचार अभियान के बाद पांच राज्यों की चुनावी महाभारत अपनी परिणिति को पहुंच गई। यहअब तक का सबसे आक्रामक रण था। इस रण में महाभारत के युद्ध की तरह तमाम मर्यादाएंटूट गईं। ‘करोया मरो’की लड़ाई लड़ रहे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी नेप्रचार अभियान को बेहद निजी बना दिया था। प्रधानमंत्री को निशाने पर लेकर उन्होंनेजो नारे लगवाए,वैसे नारे तो कभी उनके पिता राजीव गांधी के खिलाफभाजपा ने ही लगवाए थे। राहुल गांधी उस अर्जुन की तरह आरोपों के तीर बरसा रहे थे, जिसकेलिए विजय का लक्ष्य पारंपरिक मर्यादा से कहीं ऊपर हो गया था और जिसके पास अपनी हरचाल के लिए ‘शठेशाठ्यम समाचरेत’की दलील थी।

दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्रमोदी थे जो कामदार बनाम नामदार के नारे के साथ रणभूमि में खड़े थे। वे अपनीरैलियों में कभी विदुर की तरह चतुर, तोकभी दुर्वासा की तरह कुपित नजर आए। आवेश में आकर उन्होंने भी उस तरह की बातें कहींजिन्हें न दोहराना ही श्रेयस्कर होगा।

जब दोनों शीर्ष नेता ही वीर रससे रौद्र रस में प्रवेश कर गए  तोनीचे वाले नेताओं और कार्यकर्ताओं को वीभत्स रस में जाने से कौन रोक सकता था।उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भीम की धर्मध्वजा में विराजमानरहने वाले पवनपुत्र हनुमान की जाति पर शोध कर डाला। वे यहीं नहीं रुके, उन्होंनेबली और अली की फूहड़ तुकबंदी भी कर डाली। जब वे इस विचित्र पौराणिक शोध में जूझरहे थेतब उनके गृहराज्य उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर मेंशासन के सामने ‘दु:शासन’ नेसिर उठाया और उन्मादी भीड़ ने एक थानेदार की हत्या कर डाली। राजस्थान में कांग्रेस केवरिष्ठ नेता सीपी जोशी चुनाव प्रचार करते-करते जाति के उस आख्यान तक चले गए, जिससेपिंड छुड़ाने के लिए यह देश पिछले ढाई सौ साल से संघर्ष कर रहा था। जोशीब्राह्मणों की उस द्रोणाचार्य परंपरा के साथ खड़े थे जो शिष्य बनाने से पहलेयोग्यता की जगह जाति देखा करती थी।

भाजपा के तीन मुख्यमंत्रीशिवराज सिंह चौहान,वसुंधरा राजे और रमन सिंह महाभारत के उन तपे हुएयोद्धाओं की तरह थे,जिनके नाम के आगे बड़ी विजयों की पूरी श्रृंखला थी, लेकिनउन्हें पता था कि आज इस धर्मयुद्ध में वे पिछले पांव पर हैं। किसी को पता था किकर्ण की तरह उनका रथ का पहिया जमीन में धंसने वाला है, तोकोई द्रोणाचार्य की तरह जानता था कि ‘नरो व, कुंजरोव’ कानारा उन्हें कभी भी भ्रमित करते गर्दिश में डाल देगा। उनके कई रणनीतिकार मामा शल्यकी भूमिका में चले गए थे,जो रथ तो हांक रहे थे, लेकिनउनका मन विरोधी के साथ मिला हुआ था। जैसे-जैसे चुनाव आगे बढ़ता गया, महाभारतऔर खूंखार होती चली गई। शरद यादव, नवजोत सिंह सिद्धू और कुछ दूसरे नेता तकरीबन उसफूहड़ भाषा का इस्तेमाल करने लगे, जैसी भाषा महाभारत काल में शिशुपाल बोला करता था।शिशुपाल आखिर क्या है,वह अभद्रता और गाली-गलौज की सारी सीमाएं तोड़ने केबाद दंडित किया जाने वाला पात्र ही तो है।

जब दोनों पार्टियों ने टिकटवितरण किया तो भाई-भाई को निपटाने की कोशिश करने लगा। दोनों तरफ से लाक्षागृह बनाएगए ताकि विरोधी को रण में उतरने से पहले ही घर में खाक कर दिया जाए। मोतीलाल वोराजैसे बुजुर्ग नेता महाभारत के बुजुर्गों की तरह घर पर बैठकर ही संजय के मुख सेयुद्ध का हाल सुनते रहे। यहीं उन्हें पता चला कि कई बड़े दिग्गज नेता चुनाव मेंअपने बागियों के कारण उसी तरह फंस गए हैं, जिसतरह इच्छामृत्यु का वरदान हासिल होने के बावजूद पितामह भीष्म फंस गए थे। कई नेताओंकी दशा धृतराष्ट्र की तरह हुई, जहां वे पुत्रमोह में अपने जन्मभर की कमाई गंवाबैठे। जब वोटिंग का दिन आया और लोगबड़ी संख्या में वोट डालने उतरे तो लगा कि अब दोनों सेनाएं आमने-सामने आ गई हैं।बस फर्क इतना था कि इन सेनाओं को जीत के लिए तीर नहीं, तर्जनीचलानी थी। वोटिंग शांतिपूर्ण हुई और वोटिंग के बाद ईवीएम को लेकर बहुतआरोप-प्रात्यारोप सामने नहीं आए। कुछ जगह ईवीएम देर से पहुंचने या किसी नेता के नजदीकबने रहने की खबरें जरूर आईं, लेकिन दृश्य इतना भयानक कभी नहीं होने पाया किअभिमन्यु वध जैसी नृशंष घटना हो पाती।

बहरहाल जब नतीजे सामने आए तोकांग्रेस को राजस्थान,मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में शानदार जीत मिल गई।जीत इसलिए और बड़ी हो गई कि ये तीनों राज्य बीजेपी के हाथ से कांग्रेस की झोली मेंआए। कांग्रेस ने मिजोरम का अपना गढ़ गंवा दिया और तेलंगाना में वापसी की उम्मीद भीजाती रह।. लेकिन कांग्रेस को इस बात की तसल्ली रही कि सभी पांच राज्यों में से हरराज्य में उसे बीजेपी से ज्यादा सीटें मिलीं। यानी हर राज्य में वह बीजेपी पर भारीपड़ी। रोमांचक चुनाव परिणाम के बादजल्द ही मुख्यमंत्रियों का राजतिलक हो जाएगा। इस तरह सत्ता का राजसूय यज्ञ पूराहोगा।लेकिन सबसे बड़ी बात यह है किबहुत ही कर्कश और आक्रामक भाषा में लड़ा गया चुनाव अंतत: बहुत शालीन भाषा मेंसमाप्त हुआ।जीत के बाद पहली बार मीडिया के सामने आए राहुल गांधी ने जिन लोगों सेहार खाई उनको जीत की बधाई दी और जिन लोगों को उन्होंने परास्त किया उनके कामकाज कीतारीफ की। राहुल इतने विनम्र नजर आए जितना कि जवाहरलाल के किसी वंशज को होना चाहिए।

उनके घंटे भर बाद प्रधानमंत्रीनरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर कांग्रेस और दूसरे विजेताओं को जीत की बधाई दी। उनकीभाषा पूरी तरह संयत,शालीन और गरिमापूर्ण थी। एक कदम आगे बढ़कर मोदी नेकहा कि चुनाव में हार-जीत चलती रहती है। दोनों नेताओं के इस बयान के साथ हीमहाभारत का युद्ध अपने शांति पर्व में पहुंच गया। शांति पर्व यानी महाभारत का वहसमय जब युद्ध समाप्त होने के बाद बचे हुए लोग मनुष्य और रिश्तेदार की तरह एक-दूसरेसे मिलते हैं और भविष्य की नींव रखने की तैयारी करते हैं। जब राहुल और मोदी विनम्र हो गएतो रमन,राजे और चौहान भी नब गए। उन्होंने गरिमापूर्ण ढंगसे इस्तीफा दिया। दोनों पक्षों ने एक-दूसरे से अच्छे लहजे में बातें कीं। हां, आखिरीमें जब भाजपा नेता नरोत्तम मिश्रा ने बहुमत न मिलने के बाद मध्य प्रदेश में सरकारबनाने का दावा किया तो लगा कि क्या वे महाभारत के अंत में अश्वत्थामा जैसी भूमिकानिभाने वाले हैं, लेकिन जल्द ही शिवराज ने घोषणा कर दी कि वे संख्याबल के सामनेसिर झुकाते हैं। इस तरह उत्तरा के गर्भस्थ शिशु की तहर मध्य प्रदेश की भावी सरकारकी भ्रूण हत्या का खतरा टल गया।

अंतत:पांच राज्यों की महाभारत शालीनता के शांतिपर्व के साथ समापन की ओर बढ़ गई है। तीनमहीने बाद लोकसभा चुनाव की तैयारी में यह फिर शुरू से शुरू होगी। कौन जाने उस समयकृष्ण को रणछोड़ बनना पड़े या फिर अभिमन्यु को चक्रव्यूह भेदते हुए वीरगति कोप्राप्त होना पड़े

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piyush bawele

पीयूष बवेले। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र। इंडिया टुडे  और दैनिक भाष्कर में वरिष्ठ संपादकीय सहयोगी रह चुके हैं। संप्रति जी ऑनलाइन मीडिया में संपादक की भूमिका निभा रहे हैं