‘लास्ट जर्नी’ जैसी अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त तस्वीर के जनक कोलकाता निवासी देश के जाने-माने फोटोग्राफर मधु सरकार हाल ही में जमशेदपुर पधारे थे। फोटोग्राफी की अंतरराष्ट्रीय संस्था एफआइएपी से मास्टर डिग्री प्राप्त मधु सरकार विभिन्न अंतरराष्ट्रीय फोटोग्राफी प्रतियोगिताओं में बतौर जज शिरकत करते रहे हैं। बेजोड़ फोटोग्राफी के लिए कई अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त कर चुके मधु नेशनल एकेडमी ऑफ फोटोग्राफी के संस्थापक भी हैं। फोटोग्राफी व मधु सरकार की जिंदगी के विभिन्न पहलुओं पर उनसे बातचीत की रंजीत प्रसाद सिंह ने। पेश है मुख्य अंश।
रंजीत : फोटोग्राफी की दुनिया से आप कब और कैसे रू-ब-रू हुए?
मधु सरकार : मैं मूल रूप से चित्रकार रहा, आज भी हूं। 14-15 वर्ष की उम्र तक सिर्फ पेंटिंग ही करता रहा। उन दिनाें परिवार की आर्थिक स्थिति बेहतर नहीं थी। पिता सरकारी स्कूल टीचर थे। मैंने अपनी कला को नया आयाम देने और चार पैसे कमाने के लिए फोटोग्राफी को चुना। 1976 में जब फोटोग्राफी शुरू की तो उस समय 15 साल का था। समारोह और वेडिंग फाेटोग्राफी की। फिर 1981 में अपना फोटोग्राफी स्टूडियो खोला। उस समय कोलकाता में हमारा स्टूडियो पहला था, जो कलर मैनुअल इनलार्जर लेकर आया। 1984-85 में मैं फोटोग्राफी के कलात्मक पक्ष की ओर मुड़ा। पेंटिंग से जुड़े होने के कारण मेरा रुझान यथार्थपरक चित्रों (सुरियलिस्टिक इमेजेज) की ओर हुआ। इस दौरान मैंने अपने कलात्मक और व्यावसायिक पक्ष के बीच तारतम्य बनाकर रखा।
यही वह समय था जब मैंने पहली बार किसी कंपनी के साथ जुड़कर एड फोटोग्राफी पर काम करना शुरू किया। मेरे पास इतना वक्त बच जाता कि मैं अपने कलात्मक अभिरुचि को पूरा कर पाता। मैंने अपने चित्रों को विभिन्न देशों के फोटो प्रतियोगिताओं में भेजा। मेरे चित्र पेंटिंग की तरह होते, पूरी दुनिया में इसे बेहद पसंद किया गया। उस समय यह काम कोई दूसरा नहीं कर रहा था। फिल्म में यह इतना आसान भी नहीं था। मैंने अपनी फोटोग्राफी में हमेशा संवेदनाओं को केंद्र में रखा।
रंजीत : कोई ऐसी फोटो, जिसके पीछे की कहानी ने आपके दिल को छू लिया हो, या बहुत प्रसिद्धि दिलायी हो?
मधु सरकार : (भावुक होते हुए) ‘लास्ट जर्नी’. यह तसवीर मैंने अपने पिता के देहांत के तुरंत बाद ली। इसे प्रिंट करने में मुझे 28 घंटे लगे। यह 1990 की बात है। मेरे पिता की बीमारी को लेकर डॉक्टरों ने हाथ खड़े कर दिये थे। उस समय वे 68 साल के थे। एक तरह से हम सब उनकी मौत को आते देख रहे थे। मैंने इस चित्र में यही दिखाने की कोशिश की है। एक डेथ ट्री की ओर लाठी लिए एक बुजुर्ग धीरे-धीरे कैसे आगे बढ़ रहा है। यह तसवीर छह ब्लैक एंड व्हाइट निगेटिव से लिये गये। साथ ही इसमें सूर्य के लिए टॉर्च की रोशनी की मदद ली गयी, जो कलर निगेटिव में था। यह सब मेरे लिए काफी भावुक भी था। इस फोटो को पूरी दुनिया की प्रतियोगिताओं में 200 एसेप्टेंस और 40 अवार्ड मिले।
रंजीत : आपके लिए प्रतियोगिताओं में अवार्ड मिलना कितना मायने रखता है?
मधु सरकार : देखिये, अवार्ड आपके लिए प्रेरणा और हौसला अफजाई का काम जरूर करते हैं, लेकिन इससे ज्यादा कुछ नहीं। मेरे लिए फोटोग्राफी भी एक लेखक की तरह अपनी भावनाएं व्यक्त करने का एक माध्यम है, और मैं यही करता हूं। हां, जब अवार्ड मिलते हैं तो आपको शोहरत भी मिलती है, पर फोटोग्राफी करने के दौरान इस पर कभी नहीं सोचें।
रंजीत : आगे क्या और काम बाकी रह गया, जिसे आप पूरा करना चाहेंगे?
मधु सरकार: एक कलाकार का सफर कभी खत्म नहीं होता। शुरुआती दिनों में मैंने अपनी फोटोग्राफी में रंगों का भरपूर उपयोग किया, खासकर चटक रंगों का, जैसे लाल, पीला आदि। इन दिनों मैं कूलर टोन पर काम कर रहा हूं जैसे नीला। (हंसते हुए) शायद यह उम्र का भी असर हो।
रंजीत : आपने एब्सट्रैक्ट फोटोग्राफी पर अपना ज्यादा फोकस क्यों रखा?
मधु सरकार : मैं पेंटिंग की दुनिया से जुड़ा व्यक्ति हूं। चीजों को वास्तविक दुनिया से परे जाकर देखने की आदत सी रही। इसलिए यह माध्यम अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के ज्यादा करीब लगा। फोटो में मैनुपुलेशन, उसे विभिन्न रंगों से भरना और भी बहुत संभावनाएं।
रंजीत:आपने फोटोग्राफी का एक बेहतरीन संस्थान खड़ा किया है, कैसे आयी यह सोच?
मधु सरकार : मैंने वर्ष 2003 में एनएपी (नेशनल एकेडमी ऑफ फोटोग्राफी) शुरू की। मैंने अपने समय में बेहद संघर्ष किया। कोई बतानेवाला नहीं था। इस दौरान बहुत दिग्भ्रमित भी किया गया, गलत सलाह भी मिली। मैं युवा पीढ़ी को अपने समय के संघर्ष से उबारना चाहता था। इसके लिए मैंने बहुत रिसर्च किया, पूरी दुनिया के फोटोग्राफी संस्थानों का अध्ययन किया और वर्कशॉप बेस्ड एक हैंड्स ऑन ट्रेनिंग शुरू की। इसे भरपूर सफलता मिली।
रंजीत : फोटोग्राफी की चाह रखने वाले युवाओं के लिए आपकी सलाह?
मधु सरकार: पहली बात तो यही कि फोटोग्राफी को लेकर गंभीर रहें। फोटोग्राफी के लिए केवल इतना होना पर्याप्त नहीं है कि आपके हाथों में एक डीएसएलआर हो। आपको अपने माध्यम के प्रति ईमानदार रहना होगा। ठीक से सीखें और फिर ठीक से करें। सोचें पहलें, फिर बाद में उसे करके देखें।
रंजीत प्रसाद सिंह। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र। मेरठ में शुरुआती पत्रकारिता के बाद लंबे वक्त से बिहार-झारखंड में सक्रिय रहे। इन दिनों प्रभात खबर में वरिष्ठ संपादकीय पद पर कार्यरत।