बी डी असनोड़ा
पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर कलाम ने कहा था कुछ बनना है तो बड़े सपने देखा करो। उनकी बातों ने बहुत सारे बच्चों को प्रेरित भी किया। ऐसा ही एक नाम है नितिन रावत। जब उत्तराखंड एक्सप्रेस सुरेन्द्र भंडारी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी दौड़ से धूम मचाये हुए थे तब बागेश्वर के गरुड़ का एक लड़का उनकी तरह बनने का सपना संजो रहा था। अपनी लगन और मेहनत से वो बच्चा आज न सिर्फ अपने आदर्श का सबसे प्रिय शिष्य है, बल्कि ओलंपिक में भी दौड़ने जा रहा है।
बागेश्वर के गरुड़ में पैदा हुए नितिन रावत का बचपन भी पहाड़ के दूसरे बच्चों की तरह सामान्य ही था। पांचवीं तक गरुड़ के सरस्वती शिशु मंदिर में पढ़े नितिन आगे की पढाई के लिए आर्मी स्कूल रानीखेत चले गए। यहाँ अख़बारों में अक्सर वो भारत के शीर्ष धावक सुरेन्द्र भंडारी का नाम पढ़ा करते थे। सुरेन्द्र भंडारी उस समय लम्बी दूरी में देश के नंबर वन धावक थे। वो लगातार पुराने राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ते जा रहे थे। उनके नाम नए रिकॉर्ड लिखे जा रहे थे। इसी से नितिन बहुत प्रभावित थे। चूँकि सुरेन्द्र भंडारी उत्तराखंड के ही थे, तो नितिन के मन में उनके लिए सम्मान बढ़ता ही जा रहा था। नन्हे मन में ये बात गहरे तक बैठ गयी कि उसे भी अपने आदर्श की तरह बनना है। 10वीं तक आर्मी स्कूल में पढ़ने के बाद नितिन ने 12वीं तक गरुड़ के सरकारी स्कूल में पढ़ाई की। उच्च शिक्षा के लिए फिर अल्मोड़ा आ गए। धावक बनने का सपना मन में घर कर गया था। दरअसल, पहाड़ के बच्चे इतना पैदल चलते हैं कि वो नेचुरल एथलीट होते हैं। जब उन्हें सही मंच और मौका मिल जाता है तो उनकी प्रतिभा दुनिया देखती है।
दिलचस्प बात ये थी कि अभी तक नितिन दौड़ की किसी प्रतियोगिता में शामिल नहीं हुए थे। 2005 में नितिन सेना में भर्ती हो गए। बस यहीं से उनके सपनों को पंख लग गए। पहाड़ ने जो मजबूत फेफड़े दिए उस पर सेना की कड़ी ट्रेनिंग और अनुशासन ने सफलता की कहानी लिखनी शुरू कर दी। नितिन ट्रेनिंग के बाद क्रॉस कंट्री टीम में चुन लिए गए। दुर्भाग्य से कैरियर के शुरुआत में ही उन्हें इंजरी आ गयी। टीम से बाहर होना पड़ा। ये समय बहुत हताश करने वाला था। नितिन ने हिम्मत नहीं हारी। 2008 में नितिन ने सेना की टीम में वापसी की।
छोटी-मोटी सफलताओं के साथ खेल का सफर चलता रहा। लेकिन मन में कुछ अधूरा सा लग रहा था। 2012 में ये अधूरापन ख़त्म हुआ और जीवन का सबसे बड़ा सपना भी पूरा हुआ। नितिन की मुलाकात बचपन से उसके हीरो और आदर्श रहे उत्तराखंड एक्सप्रेस सुरेन्द्र सिंह भंडारी से हुई। बस अब अर्जुन को द्रोणाचार्य मिल चुके थे। सुरेन्द्र भंडारी के मार्गदर्शन में बड़ी सफलताओं का सिलसिला शुरू हुआ। राष्ट्रीय स्तर का एथलीट साल भर के अंदर अंतर्राष्ट्रीय एथलीट बन गया।
2013 में फेडरेशन कप में गोल्ड मेडल जीता। इसी साल थाईलैंड में एशियन ग्रैंड प्रिक्स में 5000 मीटर की दौड़ में गोल्ड मेडल जीता। थाईलैंड में ही एशियन ग्रैंड प्रिक्स में 3000 मीटर की दौड़ में गोल्ड मेडल जीता। ये सिलसिला श्रीलंका में भी जारी रहा। इसी स्पर्धा में वहां भी स्वर्णिम जीत हासिल की। 2013 नितिन के करिअर का स्वर्णिम साल था तो घुटने में इंजुरी भी आ गयी। नौबत यहाँ तक आ गयी की सर्जरी करवानी पड़ी। ठीक यही उनके गुरु सुरेन्द्र सिंह भंडारी के साथ भी हुआ था। सुरेन्द्र को सही सलाह और इलाज नहीं मिल सका था, इसलिए उनका चमकदार कैरियर असमय समाप्त हो गया था, वो भी तब जब वो अपनी सफलता के शीर्ष पर थे। यहाँ कोच सुरेन्द्र भंडारी का अनुभव काम आया। उनकी अनुभवी और सही सलाह से नितिन साल भर के अंदर ही ट्रैक पर वापसी करने में सफल हुए। इस दौरान घरवालों और मित्रों ने लगातार उनका हौसला बढ़ाये रखा।
2014 में ट्रैक पर वापसी हुई। दिल्ली ओपन नेशनल में गोल्ड मेडल जीता। 2015 में साउथ कोरिया में वर्ल्ड मिलिट्री गेम्स में 8वां स्थान पाने के साथ ही नितिन ने ओलिंपिक के लिए क़्वालीफाई कर लिया। 2015 में ही एयरटेल दिल्ली हाफ मैराथन में स्वर्ण पदक जीतकर नितिन ने तहलका मचा दिया। देश के लिए ओलिंपिक में दौड़ना हर एथलीट का सपना होता है। मैराथन में ओलिंपिक के लिए क्वालीफाई करने के साथ ही नितिन का सपना भी पूरा हो गया है। अब रिओ-डी-जेनेरो में अच्छे प्रदर्शन के लिए नितिन अपने कोच के साथ खूब पसीना बहा रहे हैं।
अपने परिवार को खूब प्यार करने वाले नितिन की दो बहने हैं। दोनों की शादी हो चुकी है। माँ गृहणी हैं तो पापा कांट्रेक्टर। नितिन कहते हैं पापा खेल के बारे में ज्यादा नहीं जानते लेकिन हमेशा हौसला बढ़ाते रहते हैं। एक घटना का जिक्र करते हुए नितिन की आँखों में आंसू आ जाते हैं। नितिन बताते हैं की 2010 में भू-स्खलन में मकान टूट गया, लेकिन घरवालों ने उन्हें इसलिए नहीं बताया कि उसका ध्यान अपनी ट्रेनिंग से हट जायेगा।
दूसरे खेलों में क्रिकेट को पसंद करने वाले नितिन रोज 50 किलोमीटर दौड़ते हैं। उनका प्रैक्टिस सेशन 8 घंटे का होता है। युवाओं को वो आगे बढ़ने के लिए हमेशा 100 फ़ीसदी मेहनत करने की सलाह देते हैं। उनका कहना है कि 100 फीसदी मेहनत होगी तभी तो सफलता मिलेगी।
उत्तराखंड के गैरसैंण के निवासी बी डी असनोड़ा । लंबे अरसे से वो गांव से जुड़े मुद्दों को अलग-अलग मंचों से उठाते रहे हैं।