पेरुमल मोरुगन की अंग्रेजी में पढ़ी एक कविता का हिन्दी अनुवाद देविंदर कौर उप्पल ने किया है। यह कविता अपने आपको ‘मृत’ घोषित करने के तीन माह बाद उन्होंने चुपचाप फिर से कलम उठाते हुए लिखी थी।
जहर देकर मार डाले गये
एक चूहे की देह में मैं घुस रहा हूं ओह !!!
वो चूहा एक झटका सा खाकर जी उठा
डर से कांपता हुआ
जैसे कोई बुरा सपना देख कर जागा हो
आस-पास से डरा हुआ
वह घबराकर यहां-वहां भागता है
फिर बाढ़ से उफनाती नदी के किनारे बने
किसी बिल में घुस जाता है
बाहर निकलने की कोशिश में
बिल की मिट्टी बाहर फेंकता है
पर सूरज की हल्की गरमी और सहलाती बयार
उसे सिहरा देती है,
पता नंही कितने बिल और कितने रोड़े हैं
क्या मैं ऐसे ही
किसी अन्धे बिल में फंस गया हूँ?
मूल कवि
पेरुमल मुरुगन। तमिल भाषा के लेखक। आपके 6 उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। इसके अलावा कहानियों के 6 संग्रह भी आ चुके हैं। पेशे से प्राध्यापक।
अनुवाद
देविंदर कौर उप्पल। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय की पूर्व प्रोफेसर। ग्रामीण क्षेत्रों में विकास के मायने समझने की सतत कोशिश करती हैं देविंदर कौर उप्पल। रिसर्च के जरिए पूरी तार्किकता के साथ अपनी बात रखने में यकीन है।