जूली जयश्री
हाई स्कूल में हमारे एक टीचर थे , पाठक जी पढाते तो अंग्रेजी थे लेकिन अंग्रेजी से ज्यादा उनपर बेटियों में संस्कार बोने का दायित्व था ! उनका फेवरेट डॉयलाग था ससुराल में ऐसा करेगी तो सास से हमें गाली सुनवायेगी या सास के डंडे खाएगी …. कम से कम मेरे जैसी आजाद ख्याल लड़कियां तो उनकी ये प्यार भरी घुड़की रोज ही खाती थीं।
कुल मिलाकर स्कूल से लेकर समाज तक का अनुभव यही कहता है कि शादीशुदा जीवन का सबसे अहम (नेगेटिव) केरेक्टर होती हैं सासू मां ! मां बेटी को भावी जीवन की खुशियों को सेलिब्रेट करने से ज्यादा सासू मां के खौफ से बचकर रहने की हिदायत देती हैं। सहेलियों की चुहलबाजियों का अहम किरदार होती हैं सासू मां, और तो और मायके से विदा हो रही बेटी की आजादी का रिमोट कंट्रोल होती हैं सासू मां ! सासू के सामने ये कर के देखना ..सासू से ये बोलकर देखना …
ताज्जुब ये कि इस तरह के समाजिक माहौल में बड़े होने के बावजूद मेरे मन में कभी भी सासू के लिए एक विलन वाली छवि न बन सकी। मेरा विश्वास है कि मां सिर्फ मां होती है फिर चाहे वो आपकी हो या आपके पति की। यदि आप सासू को मां की जगह देंगे तो बदले में मां का स्नेह ही मिलेगा। किस्मत देखिए मेरा ये यकीन विश्वास में भी बदल गया !
लगभग 11 साल हो गए मेरे शादी को इस दौरान कब हमारे बीच की औपचारिकताएं गायब होती गई और हम दोनों बेहद सहज होते चले गए पता ही नहीं चला . मेरी लव मैरिज थी ,एक दूसरे पर भरोसा इतना ज्यादा था कि किसी और रिश्ते के साथ तालमेल जानने समझने की जरुरत ही महसूस नहीं हुई . मैं अपनी सासू मां के बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानती थी . बस इतना पता था कि मेरी सासू मां पढी लिखी नहीं है और ग्रामीण परिवेश में ही रही हैं . ऐसे में मैं उनके साथ कैसे निभा पाउंगी इसे लेकर ज्यादा सोचा तक नहीं।
पहली बार उनके साथ गुजारे पांच दिनों में उन्होंने कभी अपने उपर असहजता का भाव नहीं आने दिया .रस्मों -रिवाजों के बीच इससे अधिक जानने समझने का मौका नहीं मिला . अगली बार जब वो मेरे पास दिल्ली आयी तो हमारा संबंध बहुत औपचारिक सा रहा . जॉब की वजह से मेरे पास उनके साथ बिताने के लिए ज्यादा वक्त नहीं होता था . इस दरम्यान मैं अपने मूल स्वभाव में ही रही उन्होंने पहनने या रहने सहने के ढंग को लेकर कभी टोका नहीं . मुझे थोड़ी हैरानी होती थी ,आहिस्ता आहिस्ता मैंने ही उन्हें टटोलने की कोशिश की तो पता चला कि वो भी बहुत स्वाभिमानी और आजाद ख्याल महिला हैं, उन्हें किसी के भी तौर-तरीके में बेवजह की दखलअंदाजी पसंद नहीं .
वो मुझसे बहुत कम बात करती थी, मैंने ध्यान दिया कि वैसे तो वो बहुत ज्यादा बोलती हैं लेकिन मेरे सामने कम ही बोलती हैं . जाहिर था कुछ तो उनके मन में भी डर होगा ही, जब मुझे इस बात का एहसास हुआ तो मैंने आगे बढकर उनके साथ बातचीत शुरू की, फिर क्या था वो खुलती गई और हमारा नानस्टॉप बातचीत का सिलसिला चलने लगा.
बिंदास बातचीत से एक तरफ जहां मैंने ये जान लिया था कि वो मन की बहुत ही साफ और खुले विचार की हैं वहीं उनको भी ये यकीन हो गया कि चाहे हमारे बीच जितना भी बड़ा व्यावहारिक फासला हो स्वभाव से मैं उन से अलग नहीं . मेरे साथ रहकर जब वो पहली बार गांव गई तो मेरी तारीफ कर-कर के लोगों को खूब बोर किया . यहां तक कि वो मेरे बनाए खाने की भी तारीफ करती हैं जबकि खाना बनाना मेरे लिए सिर्फ मजबूरी भर है, और वो बेहद अच्छी कुक हैं .
ईमानदारी से कहूं तो न तो उनकी वजह से मैंने अपना कोई रंग ढंग बदला था और नहीं उनको बदलने का प्रयास किया था . मेरा लापरवाह और बिंदास अंदाज उनके सामने भी जारी रहा, मेरे हिस्से का भी काम पतिदेव ही करते थे लेकिन उन्होंने कभी इस बात को लेकर भी शिकायत नहीं की . इन सबके बावजूद उनके साफ मन ने ये भांप लिया था कि मैं काबिल हूं या नहीं हूं लेकिन मैं रिश्तों को दिल से ही निभाती हूं.
उस दिन मैं अलपक उन्हें देखती रह गई जब उन्होंने कहा कि ‘मुझे लोगों ने बहुत डराया था कि दिल्ली में पढी हुई बहु ला रही हैं ,कभी उसके हाथ की चाय नसीब नहीं होगी। वो ऐसी होगी ..वो वैसी होगी’ …. इतना सब सुनने के बाद भी उन्होंने अपना डर कभी मेरे ऊपर जाहिर नहीं होने दिया . पूरे सब्र के साथ मुझे अपनी नजरों से परखा .और अंततः आज वो लोगों के सामने बड़े फक्र से मेरी बात करती हैं .
आज हमारा रिश्ता इतना गहरा हो गया है कि एक बार को वो अपना कोई डर या सीक्रेट अपनी बेटी या बेटे को बताए न बताए, मुझसे जरुर शेयर करती हैं . एक बार तो हद ही हो गई जब वो मेरे मायके आयी और मेरी बहनों ने मजाक मजाक में उनसे कहा कि हम सबमें सबसे आलसी आपके हिस्से आयी है, ये तो कोई काम नहीं करती होगी, इस पर मेरी सासू मां ने तपाक से जबाव दिया कि आप लोग की तुलना में ये भले ही कम निपुण हैं लेकिन मेरी तुलना में तो ये भी परफेक्ट ही हैं . उनके इस जबाव को सुनकर मेरे घर में ठहाके गूंज गए थे .
आज मुझे इस बात की बेहद खुशी है कि मेरी सासू मां के मन में मेरी वो जगह बन गई है कि वो मेरी हर सोच और निर्णय को आंख बंदकर स्वीकार करती हैं . उस दिन तो मैं धन्य हो गई जब मेरी सासू मां ने हम बहनों को आपस में राखी बांधता देखकर कहा कि ‘देखो लड़की लड़का में कोई फर्क नहीं होता है ,लेकिन अपना कोई सगा होना जरुरी है .तुम भी मेरी पोती का कोई सगा ला दो , आप सभी बहनों का प्यार देखकर मुझे अपनी पोती के जीवन में कोई कमी लग रही है’ .
ऐसी कई बातें हैं जिनकी वजह से उनके प्रति मेरे मन में प्रेम और इज्जत दिन प्रतिदिन और गहराती जा रही है . मुझ पर मां जगदम्बा की असीम कृपा है जो मेरे जीवन में जनमदात्री मां और सासू मां दोनों का प्यार मिला.
आप दोनों स्वस्थ रहें और आपका प्यार हम पर यूं ही बरसता रहे ….
Bahut hi achha juli,very true and honesty we can make such relationship with little bit understanding between two