शिवेंद्र कुमार
अभी कल ही की बात है. एक गौरैया अपने ब्यॉयफ्रेंड के साथ मेरे फ्लैट में आई- लैंड इंस्पेक्शन के लिए (जहाँ तक मुझे पता है पक्षियाँ आजाद होती हैं और शादी नहीं करतीं) उसे अपना घर बनाना था. मुंबई में यह सोचना भी बड़ी बात है- अपना घर. उसका ब्यॉयफ्रेंड उससे बहस करता रहा लेकिन आलमारी के ऊपर दो अटैचियों के बीच में उसने वह जगह तलाश ली और मुझे बिना कोई टोकन दिए ही घर बनाना शुरू भी कर दिया. वह जब-तब बाहर जाती और एक तिनका चोंच में दबाये खिड़की से अन्दर आ जाती. मैंने खिड़की बंद कर दी. अबकी वह चोंच में तिनका दबाये बाहर इंतज़ार करती रही. मैं कमरे के भीतर से उसे देखता रहा. वह खिड़की से बिल्कुल सटी हुई उस रस्सी पर टंगी रही जिस पर मैं कपड़े टाँगता हूँ. वह मेरी ही चीजों का इस्तेमाल मेरे खिलाफ कर रही थी. मैंने भी जिद कर ली- जिद नापने की. उसे पता होना चाहिए कि यह घर किसका है! आखिर वह थक गई और लौट गई. मैं मुस्कुराया- मुझसे जिद में सिर्फ मेरा भाई ही जीत पाता था. मैंने खिड़की खोल दी और अगले ही पल वह चीं चीं करती कमरे के अन्दर थी. मैं समझ गया. दो कदम आगे और एक कदम पीछे वाली रणनीति से उसने मुझे मात दी थी. लेकिन मैं भी कोई कम नहीं अबकी मैंने उसे अन्दर ही बंद कर दिया- सारा दिन वह कभी पंखे के डैने पर बैठकर झूला झूलती रही तो कभी रसोई में बरतनों से खेलती रही. खेलने से उबकर वह दूसरे कमरे में जाकर किताब पढ़ने लगी. तब मैंने खिड़की खोल दी और वह झट खिड़की से कूदकर अपनी आज़ाद दुनिया में चली गई.
मैं निश्चिंत था कि कल की कैद से उसे सबक मिल गई होगी और आज वह यहाँ आने की जुर्रत नहीं करेगी. लेकिन उसने कल ही तय कर लिया था कि उसे घर यही बनाना है मेरे घर के भीतर. आँख खुलते ही मैंने उसे कमरे के भीतर पाया. लेकिन आज वह सतर्क है और मुझपर नज़र रखे हुए है. जब भी मैं खिड़की के पास आता हूँ वह बाहर फुर्र हो जाती है और वापस तभी आती है जब मैं लिख रहा होता हूँ. (उसने एक ही दिन में पता कर लिया कि लिखते समय मैं जल्दी नहीं उठता)
उसे मेरा ऐतबार नहीं! फिर भी उसने मेरे साथ ही रहना तय किया है. सोचता हूँ इतना साहस कितने लोगों में होता है? अब हम साथ रहने वाले हैं-
वह मेरा पानी नहीं पीती, वह मेरा खाना नहीं खाती, वह सिर्फ मेरे साथ रहती है । “मुझे सुबह जगा देना” रात मैंने उससे कहा था. उसने मेरी बात नहीं सुनी. वह सो चुकी थी. उसकी रात मेरी रात से अलग है और उसकी सुबह मेरी सुबह से जुदा. (मेरी सुबह दोपहर में होती है) वह मेरे लिए गीत नहीं गाती और न ही नाश्ते पर मेरा इंतज़ार करती है. उसे जब आना होता है तब आती है और बिना मुझसे पूछे चली भी जाती है. वह इतनी आज़ाद है कि उसे मेरी परवाह नहीं. मैंने कटोरे में भरकर पानी जंगले के बाहर रख दिया, उसने पानी नहीं पिया ! मैंने चावल के कुछ दाने उसे खाने को दिए, वे कमरे में सूखते रहे! वह जानती है आदमी की नीयत, उसे पता है कि अन्न की कीमत अदा करनी होती है. उसके पंख अनमोल हैं. उसे अपनी आज़ादी गिरवी नहीं रखनी, वह सिर्फ मेरे साथ रहती है…।
खिड़की के दरवाजे से आती जाती वह…
अब मुझे इस बात का सबसे अधिक ख्याल रखना होता है कि मेरी खिड़की खुली रहे. जब भी मैं बाहर होता हूँ खिड़की के ख्याल से घिरा रहता हूँ. पार्टी में, मीटिंग में, नरेशन में एक गौरैया मेरे सामने आकर बैठ जाती है और मैं अपने आप से ही पूछता रहता हूँ कि भईया बाकि सब तो ठीक है लेकिन खिड़की खुली तो है न ? ‘खिड़की खुली है’ बस में लौटते वक़्त मैंने अपने आप से कहा. साथ बैठे आदमी ने मुझे आश्चर्य से देखा- ‘तो क्या बंद कर दूँ?’
मेरे लिखने के रास्ते में भी यह खिड़की आ गई है. अक्सर मुड़-मुड़ कर देखता हूँ कि खिड़की खुली है या नहीं ! मैं नहीं चाहता कि तुम खिड़की से बाहर बैठकर मेरा इंतजार करो- जैसा की चाबी भूल जाने पर हम अक्सर करते हैं या यह कि अन्दर आने के लिए तुम्हें खिड़की खटखटानी पड़े. मैं अपनी खिड़की सारी रात खुला रखता हूँ ताकि तुम निस्फिकिर रहो और बेखटके किसी भी वक़्त वहाँ लौट सको जहाँ तुम रहती हो. मैंने खिड़की से सारे परदे भी उतार लियें हैं ताकि तुम्हारे घोसले तक भरपूर धूप जा सके. वैसे भी अब हमारे बीच कोई पर्दा नहीं होना चाहिए. जब हमें साथ रहना ही है तो क्यों न हम दोस्त की तरह रहें- कि जब हम साथ बैठें तो एक-दूसरे से अपना सच कह सकें और अपने बहाने किसी और के लिए बचा कर रख लें.
गौरैया,मैं जानता हूँ की तुम मुझपर यकीन नहीं करती- तुम्हें लगता है कि मेरी और बहेलिये की जात एक ही है! मेरा देखना तुम्हें लग्गी के लासे सा लगता है और मेरा इंतज़ार बाज़ सा. इसलिए अगर तुम चाहो तो, बेशक अपने घोंसले का दरवाजा बंद रख सकती हो लेकिन अभी जबकि मैं जानता हूँ कि तुम अपना घोसला बुन रही हो, उसमें कुछ हरे तिनके रखना और एक खिड़की बुनना, ताकि मैं भी तुम तक आ सकूँ- वैसे ही जैसे तुम मेरी खिड़की से आती-जाती रहती हो…
‘गर्ल्स आर नॉट एलाऊड हीयर’ मैंने पहले ही कहा था
मैं अभी सो ही रहा था कि घंटी बजी- एक बार…दो बार…बार-बार. मेरी हर करवट पर वह और भी क्रुद्ध होती रही. दरवाजे पर कुछ फुसफुसाहटें बोल रही थीं- ‘इसीलिए मैंने पहले ही कहा था इस सोसाईटी में बैचलर्स को मत एलाऊ कीजिये.’
“नहीं-नहीं बात बैचलर्स की नहीं है, ये इंडस्ट्री (फिल्म) वाले जहाँ भी रहते हैं माहौल ख़राब करते हैं”
“देखना वह अभी भी कमरे में ही होगी!” घंटी ने अबकी मुझपरआक्रमण कर दिया. जैसे बंद कमरे से एकदम निकल भागना चाहती हो. आख़िरकार मैंने दरवाजा खोला. बाहर कुल पाँच लोग खड़े थे- मेरा फ्लैट ऑनर, ब्रोकर, अड़ोसी-पड़ोसी और चौकीदार. मेरी नींद ने उन्हें देखा और फिर से आकर सो गई. दरवाजा खुला था और उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें, आखिर में यह सोचकर कि यह फ्लैट तो मेरा ही है- फ्लैट ऑनर अन्दर आ गया. बाकी लोगों की हिम्मत नहीं हुई.
ऑनर कुछ देर खड़ा, मुझे सोता देखता रहा. फिर कुर्सी पर बैठकर पैर हिलाने लगा.अड़ोसी और पड़ोसी उसे बाहर से ही मोटिवेट करते रहे. मेरी नींद भी अब अँगड़ाई लेकर बैठ गई थी.
“कहाँ है वह?” फ्लैट ऑनर ने पूछा.
मैंने आलमारी की और देखा. घोसला खाली था- “वह अभी बाहर गई है”मैंने कहा.
फ्लैट ऑनर को चढ़ाकर भेजा गया था. आगे उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे, उसने ब्रोकर की ओर देखा. फ्लैट ऑनर की आड़ में वह भी अन्दर आ गया- “मैंने इनसे फ्लैट दिखाते वक़्त ही कहा था, कहा था की नहीं ?” उसने मुझसे पूछा.
मुझे याद नहीं आ रहा था कि उसने मुझसे क्या कहा था. मैं चुप रहा. मेरी चुप्पी को पराजय समझा गया .
“सुधर जाइये” फ्लैट ओनर ने गुस्से में कहा- “या यह फ्लैट खाली कर दीजिये”
“और अगर आप फ्लैट खाली करते हैं तो कॉन्ट्रैक्ट के हिसाब से आपका डिपॉजिट भी वापस नहीं होगा” ब्रोकर ने जोड़ा.
“कब तक आएगी वह?” बाहर खड़ा अड़ोसी अपने पड़ोसी के साथ चुपके से कमरे में आ गया था. अब सिर्फ चौकीदार बाहर खड़ा था और उसके पैर भी अन्दर आने को कुलबुला रहे थे.“अक्सर वह शाम तक आती है ” मैंने कहा.‘अब क्या वह भी यहीं रहेगी?”पड़ोसी ने पूछा.
“मैंने बहुत कोशिश की कि वह यहाँ ना रहे लेकिन उसने यही तय किया है” मैंने उन्हें अपनी मजबूरी बताई.
“आप किसी को फ्लैट सबलेट नहीं कर सकते, कॉन्ट्रैक्ट में साफ साफ लिखा है!” ब्रोकर फ्लैट ऑनर की ओर से बोला.
“लेकिन मैं उससे किराया नहीं लेता” मैंने कहा.
“जो भी हो वह यहाँ नहीं रह सकती- रूल इज रूल” फ्लैट ऑनर ने अपने दोनों पैर मोड़कर कुर्सी पर रख लिए और ना में ऐसे सिर हिलाने लगा कि अब मेरे कुछ भी कहने का कोई फायदा नहीं. मैंने चौकीदार को देखा. वह शायद इसी इंतज़ार में था कि कब उसे कुछ कहने का मौका मिले. वह कमरे में आ गया और झल्लाहट से बोला- “सर, ये लोग मेरी बातें ही नहीं सुन रहे… मैंने इनसे बस इतना ही कहा था कि रात आप उसे कहानी सुना रहे थे और वह सारी रात हुंकारी भरती रही थी”
“हाँ, तो उसके हुंकारी से इन्हें क्या तकलीफ है?” मैंने पूछा.
अबकी फ्लैट ऑनर को गुस्सा आ गया- “गर्ल्स आर नॉट एलोउड हियर” वह गुस्से से बोला-“मैंने आपको पहले ही क्लियर कर दिया था !”
“लेकिन वह एक गौरैया है” चौकीदार चीखा,अबकी वह भी अपना आपा खो बैठा था – “मैं सुबह से आप लोगों को यही समझाने की कोशिश कर रहा हूँ,लेकिन मेरी कोई सुन ही नहीं रहा है!” “गौरैया?” सभी ने आश्चर्य से मुझे देखा.“आपके साथ कोई लड़की नहीं रहती?”फ्लैट ऑनर ने पूछा.
“मेरे साथ एक गौरैया रहती है” मैंने कहा.
कितना मुश्किल है एक कमरे में दो आज़ाद लोगों का रहना !
बाहर धूप थी और बारिश हो रही थी. भीतर बहुत दिनों से ठहरे हुए कुछ भाव थे जो शब्द बन रहे थे. “देखो, धूप वाली बारिश!” गौरैया चहकी.
कभी उसकी इस चहक में मैं भी शामिल हो सकता था, लेकिन अभी मैं लिख रहा था.
“जरूर आज किसी सियार का बियाह होगा”वह फिर बोली. उसके बोलने से मुझे डिस्टर्ब हो रहा था. सोचा मना कर दूं. फिर चुप रहा. मेरे मना करने से कौन सा कि वह मानने वाली है. वह वही करती है जो उसका मन होता है.
“क्या आज मैं अपने कुछ दोस्तों को घर बुला लूं?”उसने पूछा. वह शायद पहली बार पूछ रही थी. उसकी आवाज में किसी को भी दीवाना कर देने की हद तक अदा थी. मेरा लिखना भटक रहा था.
“आज नहीं” मैं लिखने की कोशिश करते हुए बोला.
“हाँ! ये घर तो तुम्हारा है ना… यहाँ मेरे दोस्त क्यों आयेंगे!” वह गहरी नाराजगी से बोली.
अब मुझे लिखना रोकना पड़ा. मैं उसकी ओर पलटा- “क्या हो गया है तुम्हें? कैसी बात कर रही हो? ये घर तुम्हारा भी उतना ही है जितना की मेरा”
“ये तो कहने की बात है, एग्रीमेंट पर तो सिर्फ तुम्हारा ही नाम है!”
“वो इसलिए क्योंकि एग्रीमेंट आदमियों के नाम से बनताहै”
“यहीतो दिक्कत है कि आदमी हर चीज अपने नाम करते जा रहा हैं और अब हमें पेड़ पर भी घोसला बनाने के लिए तुम लोगों से इज़ाज़त लेनी पड़ती है!”
“यार अब तुम खामखा का बहस कर रही हो… चुप करो, मैं एक कहानी ख़त्म कर रहा हूँ”
“मेरे दोस्त आयेंगे” उसने अपना निर्णय सुनाया.
“उनके आने से मुझे डिस्टर्बेंस होगा” मैंने रिक्वेस्ट सी की.
“और तुम जो रात रात भर फ़िल्में देखते रहते हो तो क्या मैं डिस्टर्व नहीं होती?”
बित्ते से भी छोटी चिड़िया और झट से पलटकर जवाब देती है. मन कर रहा था उसका अंडा फेंक कर उसके सर पर मारू. पर मन मसोसकर लिखने बैठ गया. ऐसी बत्तमीज गौरैया किसी लेखक के साथ न रहे.
मैं लिख रहा था और वह कुछ गुनगुनाने लगी. वह चाहती थी कि मैं उसे सुनु. मैं चाहता था कि वो अपने घोसले में जाकर चुम-मारके बैठे और ज्यादा से ज्यादा अलमारी के ऊपर से अपनी छोटी सी गर्दन उचकाकर चुप-चाप मेरा लिखना देखे.
लेकिन मेरे चाहने से क्या होता है! वह सुर मिलाती रही. मैं मन ही मन भुनता रहा. फिर जब एकदम नहीं रहा गया तो गुस्से को जब्त करके, आराम से बोला- “तुम थोड़ी देर बाद गा लोगी प्लीज?”
“तुम थोड़ी देर बाद लिख लोगे प्लीज?” उसने जवाब दिया.
दो आज़ादियाँ एक कमरे में टकरा रही थीं. मुझे गुस्सा रोकना मुश्किल पड़ रहा था-
“मेरे मन में बहुत सारी बातें घुमड़ रही है… अभी मेरा लिखना बहुत जरूरी है” मैंने आवाज नीची रखने की कोशिश की.
“मेरे पास भी एक कहानी है… सुनाती हूँ, तुम पहले वह कहानी लिखो”
“नहीं! चुप रहो प्लीज…” मैं चीखा.
लेकिन इसका भी उसपर कोई असर नहीं हुआ. वह कहानी सुनाने लगी- “एक थी बिल्ली…”
“मुझे नहीं सुनना किसी बिल्ली-विल्ली की कहानी…” मैं बोला और मैंने अपने कान में रुई डाल ली और चादर ओढ़कर झूठ-मूठ का सो गया- “जब ये बोल-बोल के थक जाएगी तब उठूँगा और लिखूंगा” मैंने सोचा.
वह कहानी जरूर कहती रही होगी. उसे इससे फर्क नहीं पड़ता कि मैं सुन रहा हूँ या नहीं. उसे सुनने वाले मेरे अलावा और भी बहुत से लोग हैं.
जब मैं सोकर उठा. तो मेरे सामने एक लुहार खड़ा था. उसके हाथ में एक बड़ा सा हथौड़ा था. मैं एक पल को सिमटकर कोने में दुबक गया. फिर डरते हुए पूछा- “भाई! कौन हो तुम?”
वह कुछ नहीं बोला. बस एक बार उसने अलमारी की ओर देखा. अलमारी पर गौरैया बैठी थी. वह शायद मुझे सोते हुए देखती रही थी. मुझे जागता देखकर मुस्कुराकर बोली- “वो एक बिल्ली थी न…”
“कौन बिल्ली?”
“अरे! मैंने तुम्हें अभी एक कहानी नहीं सुनाई… कि एक बिल्ली थी और वह हर वो चीज खा जाती जो उसके रास्ते में आती… खाते-खाते उसने सारा संसार खा लिया… जब उसने सबकुछ खा लिया तो बेचैन हो उठी कि अब पृथ्वी उसके भीतर ही घूमती थी और उसके पेट में ही आदमी खटिया बिछाकर सोने लगा था… तब एक लुहार आया और जब बिल्ली उसे भी खाने आगे बढ़ी तो लुहार ने एक हथौड़ा मारकर बिल्ली का पेट फाड़ दिया और सारी दुनिया बिल्ली के पेट से निकलकर बाहर आ गई और बिल्ली को राहत मिली”
“ये वही बिल्ली है?” मैंने पूछा.
“नहीं ये वही लुहार है”
“लेकिन ये यहाँ क्या कर रहा है?”
“तुम्हारा मन भी तो बहुत भरा हुआ है न इसका एक हथौड़ा खा लो सब बाहर आ जायेगा…”
“गौरैईईयाआआअऽऽ…!!!” मैं जोर से चिल्लाया और उसके पीछे पागलों की तरह भागा- “आज मैं तुम्हें जान से मार दूंगा”
गौरैया हंसते हुए खिड़की से बाहर कूद गई. मेरे भागने की सीमाएं थीं. मैं उड़ नहीं सकता था. गौरैया सामने लिप्टस के पेड़ पर बैठी जोर-जोर से हंसने लगी. मैंने चिढ़कर खिड़की पर जोर से मुक्का मारा- “कितना मुश्किल है एक कमरे में रहना मेरा और तुम्हारा” और धड़ाम से खिड़की बंद कर दी. वह लुहार अब भी कमरे में खड़ा मुझे ताक रहा था- “ऐसे क्या ताक रहे हो बिना हथौड़ा मारे नहीं जाओगे क्या?”
“नहीं, तुम्हें हथौड़े की नहीं सिगरेट की जरूरत है” वह मुस्कुराया.
अचानक से उसकी बात सच लगी.
“तुम्हारे पास है क्या?” मैंने प्यार से पूछा.
“मेरे पास है” गौरैया बोली.
“यार एक दो न प्लीज!” मुझे सचमुच इस समय एक सिगरेट की बहुत जरूरत थी.
“पहले खिड़की तो खोलो” वह मुस्कुराकर बोली.
मैंने अपने दिल की खिड़की खोल दी. वह भीतर आ गई. हमने एक सिगरेट जलाई और बारी बारी से पीने लगे. सिगरेट पीते हुए वह फिर से बहुत अच्छी लग रही थी. मेरे मन के भाव बिना किसी एफर्ट के शब्द लेने लगे- “मुझे अच्छी लगने लगी हैं; सिगरते पीती और कार चलाती लड़कियाँ” लगा ज़िन्दगी में और कुछ हो न हो साथ सिगरेट पीने वाली एक गौरैया जरूर होनी चाहिए.
तुम्हारे साथ रहना तो बहुत मुश्किल है गौरैया लेकिन तुम्हारे साथ एक सिगरेट शेयर करने के इस सुख के लिए मैं दुनिया की तमाम दुश्वारियां सहने को तैयार हूँ…
तुम हमरे घोसला उजाड़ हो !
पतझड़ के कुछ यही दिन थे जब गौरैया ने मेरे साथ रहना शुरू किया था. मुझे तारीख याद नहीं रहती और उसे कैलेण्डर से कोई मतलब नहीं, मगर हम दोनों ही मौसम पहचानते हैं. टूटते मौसम के इन्हीं शुरुआती दिनों में मैंने अपनी खिड़की उसके लिए खोल दी थी और उसने अपनी ज़िन्दगी में कुछ हरे तिनके रखे थे और मेरे लिए एक खिड़की बुनी थी. इस एक साल में मेरे दोस्त यहाँ आते रहे और उन्हें आश्चर्य होता रहा कि मेरे साथ एक गौरैया रहती है. उनका कहना था कि गौरैया तो अब गांवों में नहीं बचीं लेकिन तुम्हारे साथ इस छोटे से घर में यह ऐसे रह रही है जैसे किसी बरगद की शाख पर हो.
घर वाले कहते हैं कि मुझमें बाबा के लच्छन हैं. वे भी आदमियों से अधिक गौरैया, गिलहरी, मैंना और नीलकंठ का ख्याल रखते हैं. दादी के बरबराने के बावजूद वे ज्यादा जूठन गिराते हैं ताकि आस-पास रहने वाले जीव-जंतु भर पेट खा सकें और सबके लाख कहने के बाद भी उन्होंने घर में ऐसे रोशनदान और बिलुक्के खुले छोड़ रखे हैं जिसकी आदमियों को कोई जरूरत नहीं मगर जहाँ कबूतर और मैं ना अपनी ज़िन्दगी बसा सकते हैं और मैंने खुद देखा है कि जब एक नीलकंठ ने हमारे घर में एक अपेक्षाकृत नीची खोढड़ में घोसला लगा लिया था तो वे उसके बच्चों को अपने बच्चों की तरह अगोरते थे. इसलिए लोग कहते हैं कि बाबा ने अपने मलिकाना में बनाया कुछ नहीं और जीयान बहुत किया मगर लोग ये भी कहते हैं कि आज हमारे परिवार में जो कुछ भी बन रहा है सब उन्हीं के पुन्न का परताप है.
मैं कभी कभी सोचता हूँ कि अगर एक आदमी का पुण्य उसके परिवार को जाता है तो फिर सभी आदमियों का पुण्य हर इंसान को जरूर जाता होगा. (आखिर हम सब एक परिवार ही तो हैं) तो अगर हर आदमी एक चिड़िया को अपने घर में घोसला बनाने जितनी जगह दे या पार्किंग घटाकर वहां कार के बदले एक पेड़ रखे तो दुनिया में इतना पुन्न इकट्ठा हो जायेगा कि आदमियों का सिर्फ बनेगा और बिगड़ेगा कुछ नहीं. इसलिए मैं गौरैया की बहुत फिक्र करता रहा हूँ.
आज बहुत दिनों बाद गौरैया का बॉयफ्रेंड लौटा. हमने एक दूसरे से बातचीत की और उसने मुस्कुराकर मुझे वह अंगूठी दिखाई जिसे कमाने के लिए वह घर से इतने दिनों तक दूर रहा था. आज मेरी गौरैया के जीवन का सबसे बड़ा दिन था. इसलिए उन दोनों को अकेला छोड़कर मैं घर से बाहर चला आया. मगर मुझसे एक भूल हो गई; निकलते वक़्त मैंने पंखा बंद नहीं किया.
गौरैया ने इसके लिए मुझे एक बार डांटा भी था- “तुम्हें पता है कि तुम्हारी इस लापरवाही के कारण कितने लोगो के घर टूट जाते हैं?”
“आखिर मेरे पंखे का किसी के घर टूटने से क्या सम्बन्ध है?” मैंनेपूछा था.
“तुम लोग ये जो बेवजह बिजली खपत करते हो इसके लिए नर्मदा की दीवार तीन फीट और ऊँची करनी पड़ती है और गांव के गांव विस्थापित हो जाते हैं… मालूम?” उस दिन की डांट के बाद मुझसे ये गलती फिर कभी नहीं हुई. मगर आज…
मैंने घर में कदम रखा तो जी सन्न से हो गया. मेरी छोटी सी गलती किसी की ज़िन्दगी लील चुकी थी. फर्श पर गौरैया का बॉयफ्रेंड मरा पड़ा था. गौरैया सदमे में बैठी थी. उसकी चोंच में बॉयफ्रेंड द्वारा दी गई अंगूठी थी. वक़्त ठहर चुका था मगर पंखा अब भी चक्र की तरह घूम रहा था. उसने एक ज़िन्दगी उजाड़ दी थी लेकिन उसकी नसों में जो बिजली थी उसे ऐसी बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता था.
“तुम हमरे घोसला उजाड़ हो” गौरैया रोते हुए बोली- “तुम आदमी इस लायक ही नहीं कि हम तुम्हारे साथ रह सकें. देखना एक दिन सभी पक्षी तुम्हारा साथ छोड़ देंगे. वे जंगलों को लौट जायेंगे और तुम्हारे घरों की ओर मुड़कर भी नहीं देखेंगे” वह रोते हुए कमरे से बाहर उड़ गई. मैं पंखे को घूरता खड़ा रहा- “अब कोई चिड़िया किसी आदमी के लिए अपने घोसले में हरे तिनके नहीं रखेगी और खिड़की नहीं बुनेगी. अब कोई गौरैया किसी आदमी के साथ नहीं रहेगी.
गौरैया मेरी ज़िन्दगी से इस तरह अचानक से चली जाएगी मैंने कभी सोचा नहीं था, लेकिन अब मुझे अपने बाबा आ याद रहे हैंजिनकी ज़िन्दगी में यह समय धीरे धीरे आया था. प्रेम, रिश्ते और पंक्षी धीरे धीरे अलौपित हुए थे. अब मुझे बाबा समझ आ रहे हैं. अब मुझे समझ आ रहा है कि क्यों वह कौवों को रोटी खिलाते हैं और क्यों नीलकंठ के बच्चों को अपने बच्चों की तरह अगोरते हैं. अब मुझे समझ आ रहा कि क्यों वह सिर्फ अपने नाती पोतों के लिए नहीं बल्कि मुहल्ले भर के बच्चों के लिए बरफ और समपपड़ी खरीदते हैं. कोई समझे या ना समझे मगर मैं समझ पा रहा हूँ कि बाबा अपनी संपत्ति, समय और ज़िन्दगी जीयान करके जीवन भर आखिर क्या बचाने की कोशिश करते रहे हैं. गौरैया के जाने के बाद मैं समझ पा रहा हूँ कि मैंने क्या खो दिया है !
“लौट आओ गौरैया… लौट आओ” मैं रोता रहा- रात भर. मगर गौरैया नहीं आई. रोते-रोते मुझे नींद आ गई. नींद में सपना और सपने में गौरैया- वह खिड़की के बाहर कपड़े टांगने की रस्सी पर बैठी हुई है और कमरे में चलते पंखे को घूर रही है- “अगर तुम्हें मेरी जरा भी परवाह होती तो तुम अपना यह पंखा उतार देते,वह मुझसे बोली.
सपने में मुझे कोई दुःख नहीं है. मैं गौरैया की बात सुनकर मुस्कुरा रहा हूँ- “अगर मेरे बाबा होते तो यही करते, मगर मैं अपना बाबा नहीं हूँ और न ही ये बाबा वाला समय है.”
“तुम लोग उन चीजों के आदी हो चुके हो जो सृष्टि को धीरे-धीरे मार रही हैं. आदमी अब उन चीजों के बिना जी भी नहीं सकता जिनकी एक समय में कोई जरूरत ही नहीं थी” वह बोली.
सपने में अब मैं एक ऐसे पेड़ के नीचे बैठा हूँ जिस पर एक पंखा बंधा हुआ है और मुझे पेड़ की नहीं बल्कि पंखे की हवा लग रही है. मेरे होठों पर एक क्रूर हंसी है- “हम अपनी मृत्यु की ओर बढ़ रहे हैं, गौरैया” मैंने कहा “और हमें यह याद दिलाने की जरूरत नहीं और न ही मुझे तुम्हारी कोई जरूरत है… जाओ चली जाओ यहाँ से”
गौरैया कुछ पल मुझे देखती रही- कुछ प्रेम, कुछ पीड़ा और कुछ कठोरता से- “तुममें और इस पंखे में कोई फर्क नहीं. तुम्हारी नसों में भी अब वही बिजली दौड़ने लगी है” वह बोली और मेरे सपने से भी फुर्र हो गई.
अचानक से मेरी नींद खुली और मैंने पाया अपने सामने एक कड़वा सवाल- “क्या सचमुच मुझमें और पंखे में कोई फर्क नहीं?” मैंने पंखे को देखा. वह अब भी चल रहा है- “नहीं,मैं पंखा नहीं” मैंने खुद से कहा- “मुझे फर्क पड़ता है” और मैंने पंखे की नसों में दौड़ती बिजली को बंद कर दिया और उसे उतारकर नीचे रख दिया. “गौरैया! मैं जानता हूँ कि मैं इस लायक नहीं कि तुम्हारी संगत पा सकूँ, तुम्हारे गीत सुन सकूं, तुमसे झगड़ सकूं,तुम्हारे साथ बैठकर चाय पी सकूँ, हर सुबह तुम्हारे चले जाने के बाद कमरे में रह गई तुम्हारे रहने को महसूस कर सकूँ, हर शाम तुम्हारे लौटने का इंतज़ार कर सकूँ, लेकिन फिर भी यदि संभव हो तो मुझे माफ़ कर देना और मेरे पास लौट आना” मेरी आंखों से आंसू बह रहे हैं. मैं जानता हूँ कि अब इन आँसुओं का कोई अर्थ नहीं. अब गौरैया कभी भी नहीं लौटेगी…
मगर तभी मुझे एक जानी पहचानी ऊष्मा महसूस हुई. मैंने पलटकर देखा तो वह कपड़े टांगने की रस्सी पर बैठी हुई थी. मेरे होठों पर जान बच जाने जितनी ख़ुशी आ गई. मैंने अपने आंसू पोंछे –
“फिर कभी मुझे छोड़कर मत जाना गौरैया” मैंने कहा.
“फिर कभी मुझे जाने की वज़ह मत देना आदमी” गौरैया बोली.
क्या तुम उठा लाओगे एक ही बार में एक स्त्री की तमाम रातें?
क्या तुम्हें दाम्पत्य दे दिया गया?
क्या तुम उसे उठा लाए
अपनी हैसियत अपनी ताकत से?
तुम उठा लाए एक ही बार में
एक स्त्री की तमाम रातें
उसके निधन के बाद की भी रातें !
-आलोक धन्वा
“यह व्यक्ति स्त्री विरोधी है” गौरैया बोली. मुझे आश्चर्य हुआ. वह आलोक धन्वा के बारे में कुछ नहीं जानती. न तो यह कि ‘अहा यह आदमी कितना संवेदनशील है’ और न ही ये कि ‘अरे! यह तो बस कविताओं में संवेदनशील है और ज़िन्दगी में नहीं.’ उसे मैं ‘भागी हुई लड़कियाँ’ भी पहली ही बार सुना रहा हूँ और इस पर भी एकदम से यह कमेन्ट.
“और ऐसा क्यों?” मैंने पूछा.
“क्या एक स्त्री के पास सिर्फ उसकी रातें होती हैं और उसका दिन नहीं?” गौरैया गुस्से से बोली.
“हूँ”मैंने सर हिलाया और यह जाना कि बाल का खाल कैसे निकाला जाता है.
“जब तुम किसी लड़की से शादी करना तो उसके दिन के बारे में पूछना” वह मुस्कुराई.
“तुम नहीं करोगी मुझसे शादी?” मैंने पूछा.
“पागल हो” वह हंसी- “मैं गौरैया हूँ कोई लड़की नहीं”
“ओह हाँ! मैं कभी-कभी भूल जाता हूँ कि…”
“कोई बात नहीं, मैं तुम्हें याद दिलाती रहूंगी” वह बोली और मुझे अकेला छोड़कर उड़ गई; मेरी पहुँच से बहुत दूर. जब वह लौटेगी तो उसके पास हजारों किस्से होंगे, नए पेड़ों और फूलों से जोड़े गए नाते होंगे, कुछ बीघे आकाश होगा, धूप की कड़वाहट होगी, जाड़े का गुलाबीपन होगा, उसकी खुद की बहुत सी सुबहें होंगी, न जाने कितनों की चुरा ली गई शामें होंगी, थकान होगी, थकने का सुकून होगा. असल में वह चीज होगी जिसे हम झूठ मूठ में ज़िन्दगी कहते हैं.
तीन बसंत बीत गए और वह नहीं आई. (समय को मौसमों से नापना मैंने उसी से सीखा है). कभी-कभी मैं उसके घोसले में झांकता. वहां सिर्फ तिनके हैं. उसे जीने के लिए और कोई आराम नहीं चाहिए. वैसे भी वह अपनी ज़िन्दगी बाहर जीती है और घर में सिर्फ सुस्ताने आती है. “वह अब तक भी नहीं थकी?” मैं उसके बारे में सोचता और निराश होता. उसके बिना दुनिया मुझे अपने चंगुल में फांसती चली जा रही है. घर में सामान, देह में आलस,बैंक में लोन और आत्मा में तनाव बढ़ता जा रहा है और घर का दबाव अलग से- “अब नहीं तो आखिर कब करोगे शादी?”
टरकाने की भी एक सीमा होती है. एक समय के बाद लड़ने की इच्छा तक मर जाती है. तब हम अपने गिटार, तलवार,सपने और प्रेम को एक सुन्दर पिटारी में बंद करते हैं और उसे समुन्दर की लहरों को सौंप आते हैं. मैंने शादी के लिए हाँ कर दी.
और उसी दिन गौरैया अपनी लम्बी उड़ान से थकीहारी, खुश, बिलकुल मगन वापस लौटी.
“तुम?”मैं उसे इतने लम्बे समय बाद देखकर हैरान था.
“तुम्हें पता था कि मैं आज आने वाली हूँ” वह हंस रही है, शायद मुझे देखकर- “क्या बात है मेरे स्वागत में बिलकुल तैयार बैठे हो… सूट-बूट-टाई,हैं?”
“मैं शादी के लिए लड़की देखने जा रहा हूँ” मैंने कहा.
उसकी चोंच खुली की खुली रह गई. वह आँखों में प्रश्न लिए मुझे देखती रही- एकटक.
“मुझे लगा था कि अब तुम कभी भी नहीं आओगी” मैंने सफाई दी.
“और मैंने सोचा था कि तुम ज़िन्दगी भर मेरा इंतजार कर सकते हो” उसकी आँखें भर आई. गौरैया के बाहर आते ही कुछ भौरें मंडराने लगे थे. अब भी इस देश में आज़ादी के दीवाने हजारों हैं.
“अब जाओ या खिड़की बंद करने के लिए रुके हो” गौरैया गुस्से में बोली. मैं क्यों रुका था- क्या पता! वह क्यों गुस्सा थी- कौन जाने! पिछले तीन साल की चुप्पी हमारे बीच थी. मैं उसे तोड़ सकता हूँ मगर हर बार मैं ही अपना अहम क्यों तोडूं. अगर गौरैया को गुस्सा होने का हक़ है तो आदमियों को भी नाराज़ रहने की आज़ादी मिलनी चाहिए. मैं दरवाजे से बाहर आ गया. लेकिन लगा कि कुछ भूल आया हूँ और इसी बहाने भीतर जाकर एक बार देखना चाहिए कि क्या सचमुच गौरैया को कोई फर्क नहीं पड़ता?
न जाने क्यों मेरी इतनी हिम्मत नहीं हुई कि मैं अपने ही कमरे में दाखिल हो सकूँ !
मेरे सामने रसगुल्ले, गुलाबजामुन और समोसे सजा दिए गए हैं और मैं सोच रहा हूँ कि किसी की ज़िन्दगी की सारी मिठास और सारा नमक क्या मैं एक ही बार में उठा लूं? क्या मुझमें इतनी ताकत है? क्या मेरी इतनी हैसियत है?
दो बहुत जहीन हाथ इन्हें बारी-बारी से मेरे लिए परोस रहे हैं. वे हाथ भी मुझे परोसे गए हैं ! आखिर ऐसा क्या हुआ है कि अचानक से मेरी हैसियत इतनी बढ़ गई है? जो हुआ है क्या एक ही दिन में हुआ है या उसे होने में सदियों लगे हैं? क्या ये अपने आप हुआ है या इसके पीछे बरसों की साजिशें हैं?
“लगता है आपको मेरा बनाया कुछ पसंद नहीं आया?” लड़की इस बहाने से शायद अपने बारे में पूछ रही थी. मैंने देखा कि अब हम कमरे में अकेले रह गए हैं.
“ऐसी बात नहीं. बस मैं निर्णय नहीं ले पा रहा” मैंने कहा.
“आपको यह शादी नहीं करनी?” आवाज में घबराहट थी. लेकिन इससे लड़की का मन नहीं जाना जा सकता था. यह नहीं समझा जा सकता था कि उसे मेरी ‘ना’ से घबराहट है या “हाँ” से.
“नहीं” मैंने एक प्लेट में उसके लिए मिठाई परोसी- “दरअसल, यह तय करने की मेरी हैसियत नहीं है”
यह बात उस पहले आदमी को कहनी चाहिए थी जिसे पहले पहल एक ही बार में किसी लड़की के सातों जनम परोस दिए गए थे. जो एक ही बार में एक स्त्री की तमाम रातें उठा लाया था और दिन भी. मगर यह कहने के लिए अब भी देर नहीं हुई थी.
“यह शादी सिर्फ मुझे नहीं करनी. हमें करनी है. और हमें अपनी ज़िन्दगी इन मिठाइयों और समोसों के साथ नहीं काटनी. प्यार के साथ चलानी है. और उसके लिए हम लोग बिलकुल अनजान है” मैंने समझाने की शुरुआत की. उसे लगा मैं इनकार की भूमिका बाँध रहा हूँ.
“लेकिन जिन दो लोगों को प्यार होता है वे कभी न कभी तो एक दूसरे के लिए अनजान ही होते हैं न?” उसने मुझे टोका. फिर यह सोचकर कि उसके टोकने का मैं बुरा न मान जाऊं वह जरा सी मुस्कुराई. और पहली बार हमारी नज़रें मिलीं.
“मैं अपनी बात नहीं कह रहा था मेरे पास हाँ कहने के लिए प्यार के अलावा भी और लालच हो सकते हैं. लेकिन आपके पास किसी अनजान के हाँ में हाँ कहने की कोई मजबूरी नहीं होनी चाहिए. इसलिए मैं कह रहा था कि मेरी कोई हैसियत नहीं. किसी की इतनी हैसियत नहीं कि सिर्फ अपनी एक हाँ पर आपको व्याह ले. शादी आपकी आज़ादी है और चुनना आपका भी अधिकार है.”
लड़की हंसी.
“क्या हुआ?” मैंने पूछा.
“नहीं! आप मुझे जो आज़ादी दे रहे है यह बहुत अच्छा लग रहा है. अगर ऐसी आज़ादी हर लड़का दे तो उन्हें समोसे खिलाने में हमें बुरा नहीं लगेगा.”
बाहर हंसी-मजाक किये जा रहे हैं. बारी-बारी से छोटे बच्चों को हमारे कमरे में भेजा जा रहा है. लोगों को समझ नहीं आ रहा था कि मुझे इतनी देर क्यों लग रही है. लेकिन देर वह कर रही थी अपना निर्णय लेने में-
“मैंने ज्यादा दुनिया नहीं देखी है” बहुत सोच विचार के बाद उसने कहना शुरू किया- “और आपको देख-सुन कर लगता है कि आप भी दुनिया में कम और कल्पनाओं में ज्यादा रहे हैं. ऐसे में हमारी गृहस्थी कैसे चलेगी ?” एक पल मौन रहकर उसने सोचा कि उसे यह बात कहनी चाहिए या नहीं. फिर अपनी सारी हिम्मत बटोरकर वह बोली- “देखिये आप प्लीज बुरा मत मानियेगा. आपने मुझे चुनने की आज़ादी दी इसके लिए थैंक्यू लेकिन मुझे लगता है अभी मुझे कुछ और लोगों को गुलाबजामुन और समोसे खिलाना चाहिए”.
आदमी कितना भी उदार हो जाय अपना नकार बर्दाश्त नहीं कर सकता. मुझे बहुत बुरा लगा और लगा कि जिसने भी स्त्रियों से उनके अधिकार छीने थे, दुनिया के लिए पता नहीं लेकिन हमारे लिए बिलकुल ठीक किया था और मन हुआ कि मैं शादी के लिए हाँ कर दूं. फिर देखता हूँ कि यह क्या कर लेतीं हैं.
“आप और समोसा लेंगे?”उसने पूछा.
“हाँ” लेकिन मुझसे सिर्फ समोसे के लिए ही हाँ हो पाई.
मैं दुखी मन से घर लौटा तो पाया कि पूरे कमरे में पक्षियों के खाने की चीजें बिखरी हुई हैं- “ब्रेड के टुकड़े, मरे हुए फतींगे, चावल के दाने”
“तुम लोगों ने आज पार्टी की?” मैंने गौरैया से पूछा.
“बैचलर पार्टी” गौरैया चहकी.
“तो जिसकी शादी हो रही है उसके घर में जाकर करनी थी न पार्टी?” मैंने उसे डांटा.
“मेरी ही शादी हो रही है” गौरैया बोली.
“तुम शादी कर रही हो?” मैंने आश्चर्य से पूछा.
“तुम भी तो कर रहे हो!” उसने पलटकर जवाब दिया.
“आदमियों की तो मजबूरी होती है. मगर मैं सोचता था कि पक्षियाँ आज़ाद होती हैं वे लड़कियों की तरह शादी-ब्याह का बंधन नहीं पालतीं”
“आदमी हमेशा गलत सोचते हैं. कभी-कभी बहुत आज़ाद होना भी थोड़ा बोझिल हो जाता है” वह कुछ दुखी लगी.
“मतलब?”मैंबात को ठीक से समझने के लिए एक कदम आगे बढ़ा.
“तुम नहीं समझोगे, जाओ जाकर अपनी शादी करो”
“किससे?”
“क्यों, जिसे देखने गए थे वह पसंद नहीं आई”
मैं चुप रहा. बुद्धि कह रही थी कि इसे मत बताओ ये सुनेगी तो हँसेगी. मगर मन मान नहीं रहा था. गौरैया की यही खासियत है, मैं उससे कुछ छुपा नहीं पाता- “मुझे तो लड़की बहुत पसंद थी मगर उसी ने मना कर दिया”
गौरैया झट घोसले से बाहर आ गई- “क्या?”
“हाँ” मैं बिस्तर पर पड़ गया. गौरैया की हंसी पूरे कमरे में फुदकने लगी. वह कभी आलमारी पर बैठकर हंसती तो कभी अपनी हंसी के साथ पंखे पर झूला झूलने लगती. वह कभी ख़ुशी में बावली हो किताबों पर कूद रही थी तो कभी बर्तनों पर ठोर मारते हुए अपनी सुरीली हंसी को संगीत का साथ भी दे लेती. किसी ने इतनी खुश गौरैया नहीं देखी होगी. वह मुझ पर हंस रही थी और फिर भी मुझे अच्छा लग रहा था. मगर हँसते-हँसते अचानक से वह चुप हो गई. मैंने आश्चर्य से चारों ओर देखा. वह कमरे में कहीं नहीं थी. न तो कपड़े टांगने की रस्सी पर और न ही सामने पेड़ की डाल पर. दूसरे कमरे में भी नहीं. मैं किचन में आया. वह प्लेटफार्म पर उल्टी पड़ी हुई थी- “गौरैया !” मैंने उसे पुकारा. कोई जवाब नहीं. “गौरैया” मैंने उसे फिर से पुकारा. अब भी कोई शब्द नहीं. कोई हंसी नहीं. मैंने उसे हथेली में उठा लिया- “गौरैया !” मैंने उसकी पीठ सहलाई. कोई हरकत नहीं. मैं जानता हूँ कि गौरैया की उम्र बहुत कम होती है मगर इस तरह अचानक- हँसते हँसते ! मेरे गरम आंसू उसकी देह पर गिरने लगे. अचानक से वह उठ बैठी और फिर से हंसने लगी-
“तुम ज़िंदा हो?” मैंने आश्चर्य से पूछा.
“हाँ बुद्धू मैं तो बस लोट-पोट के हंस रही थी” वह मुस्कुराई- “मगर तुम इतना तो रोते हो! कौन करेगा तुमसे शादी?
मैंने अपने आँसूं पोछें और मुस्कुराया- “गौरैया?” मैं अपने घुटनों पर झुक गया- “तुम करोगी मुझसे शादी?”
अचानक से उसकी मुस्कराहट गायब हो गई और वह मुझे टुकुर टुकुर ताकने लगी.
मैं हाथ बांधे उसके सामने खड़ा रहा- ‘प्लीज.. प्लीज… प्लीज”
“अपने घुटनों पर झुके हुए पुरुष बहुत अच्छे लगते हैं” आख़िरकार वह मुस्कुरा दी- “उन्हें कोई ना नहीं बोल सकता. कम से कम उस समय तो नहीं. मगर मुझे एक अर्जेंट फोन करना है”
“पहले मेरा जवाब तो दे दो?” मैंने विनती की.
“विश्वास करो यह ज्यादा जरूरी है” वह बोली और मेरा फ़ोन लेकर कोई नंबर डायल करने लगी.
“हलो” दूसरी तरफ से एक लड़के की आवाज सुनाई पड़ी.
“ध्यान से सुनो” गौरैया बोली- “चुपचाप अपने घरवालों से शादी के लिए ना कह दो. नहीं तो मैं ना करुँगी तो तुम्हें ज्यादा बुरा लग जायेगा”
‘हलो ! मगर अचानक से हुआ क्या?”
“जितना कहा बस उतना करो” और गौरैया ने फ़ोन काट दिया. मैं अब भी अपने घुटनों पर झुका हुआ हूँ- “कौन था ?” मैंने पूछा.
“अरेंज मैरिज वाला, अभी-अभी रिश्ता पक्का करके गया था. हाँ अब तुम अपना सवाल जरा एक बार फिर से पूछोगे ?
“स्योर” मैंने अपना गला साफ़ किया- “गौरैया! विल यू प्लीज मैरी मी ?”
वह मुझे गर्दन हिला- हिलाकर बहुत देर तक देखती रही. मेरे दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी. गौरैया के मूड का कोई ठिकाना नहीं. मेरी आँखों में आंसू आ गए. उसकी कोरें भी गीली हो गईं. मुझे लगा कि फिर से ‘नो’ होने वाला है-
मगर नहीं. यह ख़ुशी के आंसू थे.
“यसस्स्स्स” अबकी वह चहकी.
“यस्स्स्सस” मैंने एक गहरी सांस ली.
दुनिया के शोरगुल में हम एक दूसरे के एकांत हैं
हम रोज जागते हैं मगर कभी-कभी ही ऐसा होता है कि सुबह होती है. आज सुबह हुई है. आज मैं जागा हूँ और गौरैया सो रही है. मुझसे छुपकर अपने घोसले में नहीं; मेरे पेट पर. जैसे कोई बहुत छोटा बच्चा अपने पिता के पेट पर निश्चिन्त सोता है. जैसे आकाश के सीने पर कोई उड़ता हुआ हवाई जहाज ठहर गया हो और सुस्ता रहा हो. मेरा इतिहास आदमियों का इतिहास है. उसका भविष्य एक गौरैया का भविष्य है. हमारे बीच एक वर्तमान भी है. लेकिन यह वर्तमान अपने इतिहास से लड़ता रहता है. यह वर्तमान अपने भविष्य के लिए लड़ता रहता है.
इस वर्तमान में अविश्वास है,डर है, संदेह है, बची हुई नफरत है, कुछ बनाये गए बखेड़े हैं, थोड़े वास्तविक बैर हैं.
वह पहली बार इस वर्तमान से बेखबर; बेपरवाह सो रही है. पहली बार वह इतनी देर तक सो रही है. पहली बार वह इतनी निश्चिन्त है.
मैं जग चुका हूँ मगर उसकी निश्चिंतता न जागे इसलिए सो रहा हूँ.
उसने अपने नाखून मेरी शर्ट की फांक में फंसा दिए हैं. जैसे किसी जहाज ने लंगर डाल दिया हो. जैसे कोई नाव किनारे से जुड़ गई हो. ऐसे जुड़ते हुए नाते के बीच जाग जाना या किसी को जगा देना सबसे बड़ा गुनाह है. मैं इसलिए सो रहा हूँ.
हम जागते ही लड़ते हैं; एक दूसरे के माथे दोष मढ़ते हैं. हम जागते ही अपने सुकून को शोर से भर देते हैं. जागना बुरा नहीं है अगर हम जागकर एक दूसरे को सुनें और एक दूसरे के लिए चुप रहें. मगर हम जागते ही अपना एकांत तोड़ देते हैं. जागने का मतलब नींद का पूरा हो जाना भी है मगर जागना हमारे समय में नींद का टूटना है, सपने का अधूरा रह जाना है. वह इसलिए सो रही है.
“तुम जाग गई गौरैया?”मैंने दोपहर में पूछा.
“ऊँ हूँ” उसने ना में सर हिलाया- “और तुम?”
“मैं भी नहीं”मैंने उत्तर दिया.
हम इसलिए सो रहे हैं !
हम दो अलग-अलग दुनिया से आये हैं. हम दो अलग-अलग प्रजातियाँ हैं. आज तो आदमी-आदमी से दूर है फिर आदमी और गौरैया साथ-साथ कैसे रह सकते हैं? हमारे बीच यह सवाल है,यह दुनिया है,दुनिया का सबसे बुरा दौर है, प्रेम प्रेम नहीं होता, वह लव जेहाद होता है ऐसी अफवाह है. हमारे चाहने वालों का शोर है. पड़ोसियों का यह प्रश्न है कि आखिर कब तक सोते रहोगे तुम लोग? कभी तो तुम्हारी आँख खुलेगी? कभी तो जागोगे? कभी तो बीतेगा ये प्रेम? तब तुमलोग मानोगे कि तुम सच नहीं थे. सच सिर्फ यह दुनिया है.यहाँ कोई रुक नहीं सकता. किसी के लिए ठहर नहीं सकता. यह मर्त्यलोक है यहाँ हर कुछ मर जाता है और उस मरने तक भी आदमी खुद ही चल कर जाता है. इंतजार करो तुम्हारा यह प्रेम भी कोई अनोखा नहीं है, अमर नहीं है. इंतजार करो तुम्हें भी अकल आएगी. इंतजार करो तुम भी जागोगे.
इतने शोर में एक दूसरे को सुनना मुश्किल है, पलटकर ये पूछना भी कि अब्दुल्ला की शादी में बेगाने क्यों इतना उधम कर रहे हैं ?
हम इसलिए सो रहे हैं.
हमारे लिए सब दरवाजे बंद कर दिए गए हैं और अपनी खिड़की हमने खुद ही बंद कर ली है कि कौए हमारी खिड़की पर दिन भर ताक लगाए बैठे रहते हैं. गौरैया कमरे से बाहर नहीं निकल सकती. मेरी कहानियाँ प्रतिबंधित कर दी गई हैं.
मैं उसके लिए खाना नहीं खरीद सकता. वह मेरे लिए पानी नहीं खोज सकती. हमारे हिस्से में अब रोशनी की एक किरण भी नहीं. हम अपने कमरे की हवा तक नहीं बदल सकते. हम इसलिए सो रहे हैं.
एक दूसरे को पाकर हमने सबकुछ खो दिया है. अब हमारे पास कुछ भी नहीं. पर हमारे पास एक दूसरे के साथ होने का सुकून है. हमारे पास एक दूसरे का एकांत हैं ।
शिवेंद्र कुमार। युवा लेखक, फ़िलहाल मुंबई में टीवी सीरियल के लिए लेखन कार्य कर रहे हैं। कई कहानियां देश की मुख्य साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित।