मशरूम की खेती बंद कमरे और झोपडियों में भी सफलता पूर्वक की जा सकती है। पौष्टिक तत्वों एवं औषधीय गुणों से भरपूर खाद्य पदार्थ होने के कारण आम लोगों मे इसकी लोकप्रियता लगातार बढती जा रही है। मशरूम उत्पादन में स्वरोजगार की असीम सम्भावना को देखते हुए किसानों, भूमिहीनों समेत शिक्षित युवा वर्ग भी इसके व्यासायिक उत्पादन में अपना भविष्य तलाश रहा है। ये बातें डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्व विद्यालय के आधार विज्ञान सह मानविकी संकाय के अध्यक्ष डाक्टर एस पी सिंह ने कही। वे मानविकी संकाय विभाग के सभागार में मशरूम उत्पादन सह विपणन प्रशिक्षण कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता कर रहे थे। इस 7 दिवसीय प्रशिक्षण में पूर्वी चम्पारण जिले के एम एस कॉलेज के 29 छात्र और 25छात्राएं भाग ले रहीं हैं।
डाक्टर दयाराम सिंह ने कहा कि बदलते मौसम में मशरूम के नवीनतम प्रभेदों की खेती सफतापूर्वक की जा सकती है। बिहार में चूंकि खाद्यान्न का उत्पादन पर्याप्त मात्रा में होता है, इसलिए मशरूम उत्पादन में आवश्यक पुआल, भूसा और अन्य फसल अवशेषों की बहुतायत है। इसके सहारे आसानी से मशरूम का बेहतर उत्पादन सम्भव है। उत्पादकों को गुणवत्तापूर्ण तकनीकी प्रशिक्षण विश्व विद्यालय के वैज्ञानिक डाक्टर दयाराम दे रहे हैं, जो एक क्रांतिकारी कदम है। आयस्टर प्रजाति के मशरूम की खेती 20से 35 डिग्री और बटन मशरूम की 15 से 22 डिग्री तापमान पर सालों भर सम्भव है। बिहार सरकार मशरूम उत्पादकों को प्रोत्साहित करने के लिए उत्पादकों को 90फीसदी तक अनुदान दे रही है। प्रशिक्षण के उद्घाटन सत्र का संचालन और धन्यवाद ज्ञापन मशरूम वैग्यानिक डॉक्टर दयाराम ने किया।
डाक्टर दयाराम एक ऐसे समर्पित कृषि वैग्यानिक हैं, जिन्होंने अपने अनवरत प्रयास से बिहार में मशरूम का कुल सालाना उत्पादन 3500 टन तक पहुंंचा दिया है। हो गया है। बिहार के सभी 38 जिलों में 32 हजार परिवार मशरूम उत्पादन मे लगे हुए हैं। डाक्टर दयाराम का मुख्य फोकस आदिवासी, भूमिहीन परिवार और बेरोजगार युवा और युवतियां हैं जिन्हें मशरूम उत्पादन और विपणन का प्रशिक्षण देकर उन्हें आर्थिक रूप से आत्म निर्भर बनाने की दिशा में लगातार काम कर रहे हैं। डाक्टर दयाराम बताते हैं कि उन्होंने 1991 में इस विश्वविद्यालय के मधेपुर कृषि विज्ञान केन्द्र में योगदान किया और मशरूम पर काम करने लगे। सन् 2000 में उन्हें एक वैज्ञानिक के रूप में मशरूम की जिम्मेवारी मिली और वे आज तक इस दिशा में पूरी मुस्तैदी से काम कर रहे हैं। अब तक राज्य के लगभग सभी क्षेत्रों मे 20 हजार मशरूम उत्पादकों को प्रशिक्षित किया जा चुका है और प्रशिक्षण कार्यक्रम लगातार चलाया जा रहा है।
डाक्टर दयाराम कहते हैं कि मधुबनी जिले के मधेपुर ब्लाक के पचमनिया गांव में संथाल आदिवासियों, सीतामढी जिले के रून्नीसैदपुर में धांगर आदिवासियों को मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण देकर उनसे उत्पादन कराया जा रहा है। आदिवासी बहुल आठ जिलों के 15 गांवों का चयन मशरूम उत्पादन हेतु प्रशिक्षण के लिए किया गया था।सहरसा , सुपौल , बांका और जमुई जिलों में प्रशिक्षण दिया जा चुका है। वहां लोग उत्पादन भी कर रहे हैं। सिर्फ पश्चिम चम्पारण और पूर्णिया जिला बचा हुआ है। निकट भविष्य में वहां भी प्रशिक्षण देने की योजना है। वे कहते हैं कि शिक्षित युवाओं को भी इसमें रुचि जगी है, जिसे देखते हुए विश्वविद्यालय में पूर्वी चम्पारण जिले के एम एस कालेज के छात्र छात्राओं को मशरूम उत्पादन और विपणन का प्रशिक्षण शुरु किया गया है।
ब्रह्मानंद ठाकुर/ BADALAV.COM के अप्रैल 2017 के अतिथि संपादक। बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर के निवासी। पेशे से शिक्षक। मई 2012 के बाद से नौकरी की बंदिशें खत्म। फिलहाल समाज, संस्कृति और साहित्य की सेवा में जुटे हैं। गांव में बदलाव को लेकर गहरी दिलचस्पी रखते हैं और युवा पीढ़ी के साथ निरंतर संवाद की जरूरत को महसूस करते हैं, उसकी संभावनाएं तलाशते हैं।