मार्कण्डेय प्रवासी
गणतंत्र भूख की दवा ढूंढ कर लाओ
बीमार देश है , धन्वन्तर कहलाओ।
रह रहे शारदा के बेटे अधपेटे
कवि कलम बेच कर पुस्तक छपवाता है
अन्याय ,घूस , तस्करी , लूट सह कर भी
दिन रात तुम्हारा विजय गीत गाता है।बरदान -प्राप्त पशु जड़ी -बूटियां चरते
डंडे से मारो उन्हें , खदेड़ भगाओ।
काम के लिए उंगलियां तड़पती रहतीं
पानी के बिना खेत जलते रहते हैंश्रद्धा-विश्वास निगलने वाले अजगर
हर जगह कुर्सियों के नीचे पलते हैं।
अवसर के लिए तरसती हैं प्रतिभाएं
चमचों की सेना में भगदड़ मचवाओ।मूकों को वाणी देना जुल्म नहीं है
अक्षर -साधना उपेक्षा अब न सहेगी
लेखनी अगर हथकड़ी पहन लेगी तो
सड़कों पर मचल-मचल तलवार लिखेगी।
नेताओं ने पा लिया बहुत कुछ है , अब
जनता को जनता का गौरव दिलवाओ।