भारती द्विवेदी
बेंगलुरु की दोनों घटनाएं किसी भी संवेदनशील इंसान को हिला कर रख देती है। अब दिल्ली की घटना का शर्मनाक सच भी सामने आ रहा है। लड़कियां कितनी डरी हुई है, यह दिल्ली की एक लड़की के फेसबुक पोस्ट से समझिए। लड़कियों का अगर ये सब देखकर खून खौल रहा तो अगली बार से चुप नहीं रहना है। और लड़कों सच में तुमलोग शर्मिंदा हो तो आगे से किसी की भी बेटी-बहन के साथ बदसलूकी के वक्त तमाशबीन मत बने रहना। एक शहर जहां सुकून की सांस ली जा सकती थी। अचानक वहां अपने बचाव में कोई हथियार लेकर घूमने की कल्पना करना भी कितना डरावना है।
ऑफिस आने-जाने के लिए नॉर्मली तो मैं मेट्रो का इस्तेमाल करती हूं। लेकिन जब कभी भी मुझे भागदौड़ करने का मन नहीं होता या थकी होती हूं तो मैं बस में बैठ जाती हूं, क्योंकि बस ऑफिस से डायरेक्ट मुनिरका उतारती है। वैसे मुझे डर-वर कुछ नहीं लगता है लेकिन 10 दिन पहले ऑफिस से निकलने के बाद मैंने बस ले ली थी। मुझे सीट भी मिल गई, आराम से गाने सुनते हुए जा रही थी। ऐसे तो बस में इतनी भीड़ होती है कि आप खड़े नहीं हो सकते हैं और वो सारी भीड़ मुनिरका तक मेरे साथ जाती है। लेकिन उस दिन मुझे धीरे-धीरे एहसास हुआ कि पूरी बस आरके पुरम आने के पहले ही खाली हो चुकी है।


भारती की पोस्ट पर कई लड़कियों ने खुलकर प्रतिक्रया व्यक्त की है। रश्मि लिखती है, पता नहीं कितनी सदियां लगेंगी सारे पुरुषों के सभ्य होने में? मेधा लिखती हैं- कभी-कभी लगता है कि काश समय को घूमाकर पुराने भारत मेंं चली जाऊं। जो आज के मॉर्डन भारत से हजार गुना अच्छा था। क्यों बेहतर, वो हम सबको पता है। पितृसत्ता एक सोशल सिस्टम नहीं रहा बल्कि एक खतरनाक बीमारी बन चुकी है। फर्क इतना है कि इस बीमारी से ग्रसित कोई और होता है, भुगतता कोई और है। मेरे कुछ पुरुष मित्र तो इस टॉपिक पर बात करते ही गुस्सा हो जाते हैं और विरोध करने लगते हैं। जैसे उनका अपमान कर दिया हो। ये समझने की जरुरत है कि ये बातें किसी एक के लिए नहीं हैं, उनके लिए है जो माहौल खराब करने की कोशिश कर रहे हैं। बदलाव लाने के लिए सबसे पहले ये स्वीकार करना होगा कि दिक्कतें हैं।
यह डर अकेले भारती का ही नही है ।नगरों ,महानगरों ,गांवों और कस्बों तक यह डर फैला हुआ है। आज विभिन्न कारणों से स्त्री को केवल भोग्या बना दिया गया है । केवल कानून बना देने और सख्त सजा का प्रावधान कर देने से इस पर रोक नही लगायी जा सकती।और न महिलाओं के मान सम्मान , इज्जत की लडाई पुरुष वर्ग लड सकता है ।इसके लिए महिलाओं को ही आगे आना होगा , डर भय त्याग कर ।