रूपेश कुमार
18 अगस्त ! इस दिन को याद करते ही कोसीवासियों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। आठ साल पहले इसी दिन तटबंधों के बीच कैद कोसी नदी ने नेपाल में कुसहा के पास तटबंध को तोड़ कर कोसी क्षेत्र के लाखों लोगों को पलायन के लिए मजबूर कर दिया था। हजारों लोग बेघर हो गये और सैंकड़ों लोगों की जानें गयी। इस घटना ने राज्य को हिला दिया था। प्रशासकीय नाकामी के कारण आयी इस आपदा के जख़्म इतने गहरे हैं कि क्षेत्र में अब भी हजारों किसानों की जमीन खेती लायक नहीं रह गयी है।
बिहार में 412 पंचायतों के 993 गांव इसकी चपेट में आये। 362 राहत शिविरो में 4 लाख 40 हजार लोगों ने शरण लिया। इस त्रासदी में 2,36632 घर ध्वस्त हो गये। 1100 पुल एवं कलवर्ट टूट गये और 1800 किमी सड़क क्षतिग्रस्त हो गई। 38 हजार एकड़ धान की, 15 हजार 500 एकड़ मक्के की और 6 हजार 950 एकड़ अन्य फसलें बर्बाद हो गयीं। 10 हजार दुधारू पशु, तीन हजार अन्य पशु व 2 हजार 500 छोटे जानवरों की मृत्यु हुई। इस दौरान 362 लोग की मृत्यु हो गयी और 3500 लोग लापता हो गये, जिनका पता अब तक नहीं लग सका है। ये सरकारी आकड़े हैं।
कोसी की इस राष्ट्रीय आपदा के लिए केन्द्र सरकार और राज्य सरकार के बीच चले तकरार के कारण केन्द्र सरकार ने पुनर्वास के लिए कोई राशि नहीं दी। राज्य सरकार ने विश्व बैंक से कर्ज लिया। इस कार्य के लिए बिहार सरकार ने बिहार आपदा पुनर्वास एवं पुनर्निर्माण सोसाइटी नाम से एक अलग संस्था बनायी। इसके अध्यक्ष सरकार के विकास आयुक्त बनाये गये। 220 मिलियन डॉलर का कर्ज मिला।
सरकारी रिपोर्ट के अनुसार बाढ़ में 2,36632 घर ध्वस्त हो गये थे। 31 जनवरी 2010 से काम शुरू किया गया। इस काम को चार चरण में पूरा करना था। प्रत्येक चरण छह माह का था। योजना विकास विभाग ने सभी प्रभावित इलाकों में पहले तो चारों चरण में केवल 1,57,428 घर बनाने का निर्णय लिया। बाद में इसे घटा कर केवल एक लाख घर पर सीमित कर दिया गया, लेकिन हद तो तब हो गयी जब वर्ष 2014 आते -आते यह संख्या केवल 66 हजार 203 ही रह गयी।
बाढ़ के दौरान कोसी पुनर्वास एवं पुननिर्माण योजना के तहत अंचलवार क्षति की ब्योरा फार्म- 9 में भरा गया। इसी आधार पर सरकार क्षति का आकलन करती है। केवल मधेपुरा जिले में 568 पक्का मकान की क्षति दिखायी गयी। वहीं क्षतिग्रस्त कच्चे मकान की संख्या 38 हजार 207 दिखायी गयी। 53 हजार 568 झोपड़ियां ध्वस्त हो गयी। इस तरह पूर्णत: कुल 92 हजार 343 मकानों की क्षति हुई थी। पक्के मकान के लिए 25 हजार की दर से, कच्चा मकान के लिए दस हजार की दर से और झोपड़ी के लिए दो हजार की दर से मुआवजा दिया जाना था। लेकिन गृह क्षति अनुदान वितरण के समय 568 पक्का मकान में से केवल 101 को, 38 हजार 207 कच्चे घर में से केवल 913 को और 53 हजार 568 झोपड़ियों में से केवल 35 हजार 637 लाभुकों को मुआवजा दिया गया था।
मुआवजा का गणित इतना उलझा रहा कि तंत्र के साथ मिल कर तेज तर्रारों ने अपनी जेबें भर ली, जिन्हें मिल सका वे खुशनसीब रहे। बाढ़ग्रस्त रहे इलाकों में अब भी आवागमन दुरूह है। हद तो यह है कि कोसी के नाम पर राज्य ने विश्व बैंक से फिर से कर्ज लिया है। इस परियोजना को ‘कोसी बेसिन डेवलपमेंट प्रोजेक्ट’ का नाम दिया गया है। इस प्रोजेक्ट के लिए 250 मिलियन अमेरिकी डॉलर कर्ज मिला है। लेकिन विडंबना यह है कि इस राशि को सरकार विभिन्न मद के जरिये कोसी इलाके में खर्च की योजना तो बना चुकी है लेकिन 2008 में आयी बाढ़ से पीड़ित लोगों की जो जरूरतें थी, इस योजना में इनका कोई जिक्र नहीं है। सामान्य तौर पर इसमें खेतों से बालू निकालने का कोई जिक्र नहीं है।
‘कोसी बेसिन डेवलपमेंट प्रोजेक्ट’ में मुख्य मद
1. बाढ़ प्रबधंन में सुधार करना – इस मद के लिए एक सौ मिलियन डॉलर आवंटित किये गये हैं। इसमें 66.7 मिलियन डॉलर विश्व बैंक की तरफ से है। शेष राज्य की भी सहभागिता से है। मोटे तौर पर सीधे यह मानें कि इस मद से तटबंध को मजबूत करने सहित अन्य आधारभूत संरचना विकसित करना है। विभाग को संसाधनों से लैस करना, आपदा न्यूनीकरण जैसे कार्यों में खर्च किया जाना है।2. कृषि उत्पादों को बढ़ावा देना – इस मद के लिए 75 मिलियन डॉलर आवंटित हैं। इसमें 50 मिलियन डॉलर विश्व बैंक एवं शेष राज्य की सहभागिता से पूरा करना है। इसके अंतर्गत कृषि तथा उद्यान उत्पादन को बढ़ावा देना, किसानों का ग्रुप बनाना, उन्हें प्रशिक्षण देना, कृषि उत्पादों के लिये बाजार विकसित किया जाने जैसे कार्य शामिल हैं।3. ज्यादा से ज्यादा ग्रामीण क्षेत्रों को जोड़ना – इस मद के लिये 177.5 मिलियन डॉलर हैं, जिसमें 118 मिलियन डॉलर विश्व बैंक और शेष राज्य की सहभागिता है। इसके अंतर्गत गांवों की सड़कों को मुख्य सड़क से जोड़ना है। पुल पुलियों का निर्माण करना है।4. क्रियान्वयन में सहयोग – इस मद के लिए 22. 5 मिलियन डॉलर आवंटित है, जिसमें 15 मिलियन विश्व बैंक तथा शेष राज्य सरकार वहन करेगी।
कोसी इलाके के पुननिर्माण की योजना किसी मरीचिका की तरह लगती है। भारी भरकम योजना का नाम और राशि दिखायी तो देती है लेकिन इस योजना से लाभान्वित होने वाले असल लाभुक बस भौचक हो कर इस तमाशे को देख रहे हैं। उसके खेतों में अब भी रेत है। कोसी बाढ़ आने के बाद से ही इस इलाके में नवनिर्माण के नाम पर चल रही हर गतिविधि पर नजर रखने एवं वंचितों के लिये आवाज बुलंद करने वाले महेंद्र यादव कहते हैं कि ‘कोसी बेसिन डेवलपमेंट प्रोजेक्ट’ के आने के बाद आस जगी थी कि पुनर्वास के बाकी काम होंगे लेकिन इसमें क्षेत्र को लोगों की आंखों में धूल झोंका गया है।
कोसी बाढ़ के बाद हजारों हेक्टेयर जमीन पर बालू भर गई थी जो अब भी है। सरकार की ओर से खेतों से बालू हटाने के लिए करीब पांच हजार रूपये प्रति एकड़ की राशि दी गयी थी, मगर बालू हटाने का खर्च प्रति एकड़ करीब पचास हजार रूपये आ रहा था। इसके कारण छोटे और गरीब किसानों को बालू निकालने के बदले पंजाब जा कर कमाना आसान लगा।
मधेपुरा के सिंहेश्वर के निवासी रुपेश कुमार की रिपोर्टिंग का गांवों से गहरा ताल्लुक रहा है। माखनलाल चतुर्वेदी से पत्रकारिता की पढ़ाई के बाद शुरुआती दौर में दिल्ली-मेरठ तक की दौड़ को विराम अपने गांव आकर मिला। उनसे आप 9631818888 पर संपर्क कर सकते हैं।
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