टीम बदलाव
1977 का लोकसभा चुनाव आजादी के बाद कांग्रेस के लिए एक बुरे दौर की शुरुआत थी. जनता पार्टी की अगुवाई में विपक्ष की एFकजुटता और जय प्रकाश नारायण की रणनीति के आगे कांग्रेस की आयरन लेडी की कोई तरकीब काम नहीं आई. इमरजेंसी की काली छाया कांग्रेस पर कहर बनकर टूटी और छठे लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को पहली बार सत्ता से बेदखल कर दिया. ये वो दौर था जब कई राज्यों में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया. इंदिरा गांधी रायबरेली से 52 हजार वोटों से चुनाव हार गईं जबकि उनके बेटे संजय गांधी को अपने पहले लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा. संजय गांधी अमेठी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहे थे और उन्हें जनता पार्टी के टिकट पर रवींद्र प्रताप सिंह ने धूल चटाई . अमेठी लोकसभा का गठन 1967 में हुआ था और 1977 से पहले दोनों चुनावों में कांग्रेस को जीत मिली थी. लिहाजा अमेठी जैसे गढ़ में भी कांग्रेस अपनी साख नहीं बचा सकी. संजय गांधी को महज 34 फीसदी वोट मिले, जबकि जनता पार्टी उम्मीदवार को 60 फीसदी मत मिले.
इंदिरा और संजय गांधी तो चुनाव हारे ही यूपी में कांग्रेस का पूरी तरह सूपड़ा साफ हो गया. जनता पार्टी कांग्रेस के लिए सुनामी बनकर आई. पांच राज्यों में कांग्रेस अपना खाता तक नहीं खोल पाई.
उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली, हरियाणा और पंजाब में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली. कांग्रेस पार्टी को करीब 200 सीटों का नुकसान हुआ और 352 सांसदों वाली कांग्रेस 153 सीटों पर सिमट गई. जनता पार्टी ने 295 सीटों पर जीत हासिल की और गठबंधन को 340 से ज्यादा सीटें मिली. इस तरह देश में पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनी. बदलाव पर राजनीति के ये क़िस्से अगर पसंद आए तो लाइक और सब्सक्राइब बटन ज़रूर दबाएँ…