सत्येंद्र कुमार यादव
कुछ पत्रकार साथियों के साथ 25 अक्टूबर 2016 को इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र जाना हुआ । IGNCA के सदस्य सचिव सच्चिदानंद जोशी से मिलने का कार्यक्रम था। उनसे बातचीत में बहुत सी चीजों को जानने का मौका मिला। मीडिया में आए दस साल हो गए लेकिन कभी लाला दीनदयाल के बारे में न जाना, न सुना। ऐसे में जब उनके बारे में पता चला तो इच्छा हुई कि चलो देखा जाए कि 19वीं सदी के महान फोटोग्राफर राजा लाला दीनदयाल हमें क्या देकर गए? मधेपुरा से आए रुपेश कुमार, डीडी न्यूज के पत्रकार सुधाकर और लेखिका कीर्ति दीक्षित के साथ हम सभी साथी लाला दीनदयाल गैलरी पहुंच गए। मन में ये जानने की उत्सुकता थी कि आखिर में 19वीं सदी में इस्तेमाल होने वाला कैमरा कैसे था ? फोटो कैसे खींची जाती थी ? फोटो कैसे बनाई जाती थी ?
गैलरी में घुसते ही राजाओं और उनके परिवार की शानदार तस्वीर सामने थी । विश्वास नहीं हो रहा था कि उस वक्त के कैमरे इतनी शानदार तस्वीर निकालने में सक्षम होंगे। एक से एक तस्वीर। जहां राजाओं की तस्वीर थी वहीं आदिवासी और भारतीय समाज के गरीब तबकों की भी तस्वीर मौजूद थी । ये तस्वीरें जिस कैमरे से ली गई थीं, वो आकार में काफी बड़ा है। जरा सोचिए भारी भरकम इस कैमरे से लाला दीनदयाल को फोटोग्राफी के शौक को पूरा करने के लिए कितनी तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा होगा। फोटो खींचने के लिए इस कैमरे में आगे लेंस लगा होता था । जरूरत के हिसाब से लैंस लगाए जाते थे और फोकस संतुलन के लिए नीचे बने हैंडल (चित्र देखें) को आगे पीछे घुमाया जाता था । राजा लाला दीनदयाल ने दर्जनों राजाओं की तस्वीर इसी कैमरे से ली थी। राजा दीनदयाल के सबसे बड़े फैन छठे निजाम महबूब अली थे । उनके बारे में उन्होंने कमाल का शेर भी लिखा था-
अजब ये करते हैं कमाल कमाल ।
उस्तादों के उस्ताद हैं राजा दीनदयाल ।।
ये उस वक्त की बात है जब देश के राजा फोटो खिंचवाने के लिए अपनी बारी का इंतजार किया करते थे। 1870 से 20वीं सदी के शुरुआत तक उनका कैमरा राजाओं के लिए आकर्षण का केंद्र था। उनकी ली गई तस्वीरों की तारीफ चारों ओर होती थी और आज भी आप देखेंगे तो हैरान रह जाएंगे। चाहे पोट्रेट हो या शिकार की तस्वीर या ऐतिहासिक स्मारक, किला, प्रकृति की तस्वीर उन्होंने इतनी बारीकी से अपने कैमरे में कैद किया है जिसे देखेंगे तो आप भी लाला दीनदयाल के मुरीद हो जाएंगे। ऐतिहासिक इमारतें सौ साल बाद भी उनकी तस्वीरों में जिंदा हैं। राजाओं को देखेंगे तो लगेगा कि अभी अभी उनकी फोटो ली गई है। उस वक्त कांच की प्लेट के निगेटिव होते थे ।
राजा लाला दीनदयाल हिंदुस्तान के पहले फोटोग्राफर थे । उनके द्वारा ली गई तस्वीर बताती है कि तकनीकी के अभाव में भी फोटो कैसे खींची जाए कि वो बोल उठे। फोटोग्राफी के हर मानकों का यहां ध्यान रखा गया । भारी भरकम कैमरे के साथ उनकी आंखों ने ऐसी दोस्ती कर ली कि जो वो देखते थे वैसे ही तस्वीर आ जाती थी। सच्चिदानंद जोशी ने बताया कि उत्तर प्रदेश के सरधना के रहने वाले महान फोटोग्राफर थे लाला दीनदयाल । रुड़की से सिविल इंजीनियरिंग करने के बाद उन्होंने कैमरे को अपना दोस्त बना लिया और जब दुनिया के सामने कमाल की तस्वीरें लाने लगे तो इन्हें फोटोग्राफी का राजा कहा जाने लगा और इसी वजह से हैदराबाद के निजाम ने इनके नाम के आगे राजा जोड़कर राजा लाला दीनदयाल रख दिया ।
1844 में जन्मे राजा लाला दीनदयाल का निधन 5 जुलाई 105 को मुंबई में हो गया । आज से 100 साल पहले 61 साल की उम्र में उन्होंने इस दुनिया से विदा ले ली । 1866 में इन्होंने इंदौर में सरकारी नौकरी के साथ बतौर ड्राफ्टसमैन अपने करियर की शुरुआत की । इंदौर स्टेट के महाराज तुकाजी द्वितीय के संरक्षण में इन्होंने अपना काम शुरू किया । तुकाजी ने उस वक्त के गवर्नर जनरल के एजेंट सर हेनरी डेली से परिचय कराया । दोनों ने लाला दीनदयाल को इंदौर में फोटो स्टूडियो बनाने के लिए प्रेरित किया । 1868 में लाला दीनदयाल ने अपना स्टूडियो बना लिया और उसका नाम रखा लाला दीनदयाल एंड संस । इसके बाद उन्होने राजाओं, मंदिर, ऐतिहासिक भवनों की शानदार फोटोग्राफी शुरू कर दी । 1870 तक लाला दीनदयाल ने इंदौर, मुंबई, सिकंदराबाद में भी अपना स्टूडियो खोल लिया ।
1875-76 तक प्रिंस और प्रिंसेस ऑफ वेल्स के लिए काम किया ।1880 में सर लेपल ग्रिफिन के साथ बुंदेलखंड का दौरा किया । ग्रिफिन ने उन्हें ऑर्कोलॉजिकल फोटोग्राफ के लिए नियुक्त किया । उस वक्त 86 फोटो का पोर्टफोलियो बनाया गया । जिसे आप “Famous Monuments of Central India” के नाम से जानते हैं । सन 1881 में लाला दीनदयाल रिटायर्ड हो गए । 1885 में हैदराबाद के छठे निजाम के यहां कोर्ट फोटोग्राफर के तौर पर काम करने लगे। थोड़े दिन बाद वो हैदराबाद से इंदौर लौट आए और उसी साल इंडिया के वायसराय के यहां फोटोग्राफर के तौर पर नियुक्त कर लिए गए । इसी दौर में हैदराबाद के निजाम ने उन्हें राजा की उपाधि दी । 1887 में वे महारानी विक्टोरिया के फोटोग्राफर नियुक्त किए गए ।
1905 में प्रिंस एंड प्रिंसेस ऑफ वेल्स की फोटोग्राफी कर रहे थे और उसी दौरान राजा लाला दीनदयाल का निधन हो गया । उनके निधन के बाद उनकी फैमली सातवें निजाम के लिए फोटोग्राफी करने लगी । लेकिन वो मुकाम हासिल नहीं कर पाई जो लाला राजा दीनदयाल को मिली थी । 100 साल बाद भी उनकी तस्वीरें बोलती हैं । एक महान फोटोग्राफर से रूबरू होना हो तो आप भी राजा दीनदयाल के नाम पर हाल ही में शुरू की गई इस गैलरी का रूख कर सकते हैं।
सत्येंद्र कुमार यादव, एक दशक से पत्रकारिता में सक्रिय । माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र । सोशल मीडिया पर सक्रिय । मोबाइल नंबर- 9560206805 पर संपर्क किया जा सकता है।