ब्रह्मानन्द ठाकुर
ई भदवारी में बइठारी होने के कारण घोंचू भाई गाय-गोरू की सेवा के बाद जे समय बचता है, ऊ गांव के चौक चौराहे पर ही बीता लेते हैं।भदवारी है ,इस कारण न खेत खलिहान का कोई काम और न नाते -रिश्तेदारों के यहां कोई पाठ-पूजा या सुंदर कांड -उत्तर कांड। सो घर के काम से फुर्सत पाते ही,गाव के चौक पर फुलेसरा के बरी -कचडी की दुकान में जूम जाते हैं। फुलेसरा पिछला पंचायत चुनाव में अपने पचायत के वार्ड से वार्ड सदस्य का चुनाव हारने के बाद चौक पर एगो मड़ैया बना कर बरी -कचडी,समोसा -लिट्टी का दूकान खोल लिया है।यहां चाय नहीं मिलती है। लोगों ने इसे’ नेताजी की दुकान ‘ नाम दे रखा है। क्यों न ? फुलेसरा भी तो आखिर छोटपइका नेता ही तो है ! खैर,फुलेसरा के बरी -कचडी की दुकान में दो-तीन बजे दिन के बाद से ही ग्राहकों का जुटान होने लगता है।इसमें छोटपइका नेता- नुमा लोगों की संख्या ज्यादा होती है।कभी- कभार घोंचू भाई भी यहां पहुंच जाते हैं।
आज जब घोंचू भाई दुकान में पहुंचे तो वहां पहले से ही बिहार के शिक्षा विभाग के अपर सचिव के के पाठक द्वारा सरकारी स्कूलों में शिक्षा में सुधार के लिए चलाए जा रहे अभियान की चर्चा हो रही थी। मनफेरन ,भविच्छन,
गुलाटी और बालकिशन मे इस मुद्दे पर बहस हो रही थी कि इससे सरकारी स्कूलों की शिक्षा-व्यवस्था में कितना सुधार होने वाला है ? जाहिर है कि इस बहस के केन्द्र में शिक्षक ही थे जिन पर अक्सर बच्चों की पढ़ाई में कोताही का आरोप लगाया जाता रहा है।बालकिशन ने बहस में भाग लेते हुए कहा, ‘आखिर शिक्षक पढाएं तो कब ? सरकार उनको अन्य कार्यों से फुर्सत दे तब न ?कभी जनगणना ,कभी मतदान ,कभी पशु गणना ,कभी जातीय गणना, उसपर भी बीएलओ का परमानेंट दायित्व।शिक्षकों से तो अनेक कार्य कराए जा रहे हैं। न्यायालय भी कई बार शिक्षकों को ऐसे कार्य से अलग रखने की बात कह चुकी है।फिर भी सब कुछ पहले जैसा ही चल रहा है।’ बालकिशन अपनी बात पूरा भी नहीं कर पाया था कि घोंचू भाई भादो की धूप से बचने के लिए माथे पर गमछा रखें फुलेसरा की दुकान पर हाजिर। वहां पहले से बांस के फट्ठे से बने बेंच पर बैठे चारों लोगों ने घोंचू भाई को बैठने के लिए जगह बनाई। घोंचू भाई मनफेरन के बगल में बैठ गये।’उफ्फ ! भादो में इतनी तीखी धूप! बदन झुलस रहा है ‘कहते हुए माथे से गमछा उतार ,अपने चेहरे का पसीना पोंछ,उसी गमछा से घोंचू भाई हवा करने लगे। गर्मी से जब थोड़ी राहत मिली तो घोंचू भाई ने बालकिशन से मुखातिब होते हुए पूछा , ‘ किस विषय पर चर्चा हो रही है?’ मनफेरन ने चर्चा के विषय को स्पष्ट करते हुए कहना शुरु किया ‘अभी इस भदवारी में दूसरा कोई काम-काज तो है नहीं ,इसी कारण सरकारी स्कूलों में सरकार द्वारा चलाए जा रहे शिक्षा सुधार अभियान पर हमलोग चर्चा कर रहे हैं। लगता है,शिक्षा विभाग के बड़का हाकिम के के पाठक ने शिक्षा व्यवस्था में सुधार का जो काम शुरु किया है ,उसे वे पूरा करके ही छोड़ेंगे।अब देखिए न , जिन स्कूलों में ब्लौक वाले शिक्षा विभाग के हाकिम कभी झांकने तक नहीं आते थे,अब वहां बड़े बड़े हाकिमों का निरीक्षण हो रहा है।एक दिन में एक बार नहीं ,दो-दो बार ,तीन -तीन बार इंसपेक्सन होने लगा है। टीचर और हेडमास्टर जवाब देते -देते बेदम हो रहे हैं। छात्रों की 75 प्रतिशत उपस्थिति अनिवार्य।कम हुआ तो नाम काटिए। और स्कूलों में शिक्षक हैं नहीं। स्कूल आवर में प्राइवेट कोचिंग चलाने पर रोक लगा दिया गया है। छात्पर और अभिभावक भी हकलाना हो रहे हैं। जहां बच्चे स्कूल में नाम लिखाने के बाद कोचिंग संस्थानों में पढ़ कर अपना सिलेवस पूरा कर लेते थे और सिर्फ रजिस्ट्रेशन कराने और फार्म भरने के लिए ही स्कूल आते थे ,वे अब रोज स्कूल आने लगे हैं।आने ही नहीं लगे हैं ,बल्कि पूरे दिन स्कूल में ठहरते भी हैं। यह है बड़का हाकिम का करिश्मा! अब सरकारी स्कूलों की शिक्षाव्यवस्था फिर पटरी पर लौट रही है। मनफेरन की बात को घोंचू भाई ने खूब गंभीरता से सुना।दाएं हाथ की तर्जनी से सिर खुजलाया, अंगड़ाई ली और गमछे से फिर एकबार अपना चेहरा पोंछ कर गमछा दाहिने कंधे पर रखते हुए कहना शुरू किया , ‘देखो भाई ,मैं तो सच्ची- सच्ची और खड़ी -खडी ही कहूंगा।किसी को भला लगे या बुरा।दूध के लिए बिलखते बच्चे को चुचकार कर चुप कराने की कला कोई इस पूंजीवादी व्यवस्था की सरकारों से सीखे। इसके संचालक मर्ज की जड़ों तक तो पहुंचते ही नहीं या उनको पहुंचने ही नहीं दिया जाता।बस ऊपर ही ऊपर मर्ज का इलाज करते रहते हैं। इससे कुछ समय के लिए यह भ्रम पैदा होता है कि मर्ज ठीक हो रहा है लेकिन कुछ समय बाद वह मर्ज और भी अधिक विकृत रूप लेने लगता है।यही हाल अपने राज्य की ही नहीं ,पूरे देश की शिक्षा व्यवस्था का है। पता है ,सरकारी स्कूलों में कक्षा 1 से 8 तक के लिए पास -फेल प्रणाली किसने खत्म की थी।यह शिक्षा के ताबूत में आखिरी कील साबित हुआ।बच्चे 1ली कक्षा में नामांकित हुए। न कोर्स पूरा किया और न परीक्षा देनी पड़ी।बस पहुंच गये दूसरी ,फिर तीसरी कक्षा होते हुए 8वीं कक्षा में।इससे शिक्षा का स्तर गिरेगा या उठेगा?यह व्यवस्था नई शिक्षा नीति 1986 में लागू हूई थी जिसे शिक्षानीति 2020 में भी यथावत रखा गया है। अब दूसरी बात बताता हूं। बिहार की नीतीश कुमार की सरकार ने हर पंचायत में एक हाईस्कूल खोल दिया।फिर उसे प्लस टू तक अपग्रेड भी कर दिया।कइयों के लाखों की लागत पर आलीशान मकान भी बने, मगर पढ़ाने वाले शिक्षक नदारद।’
मनफेरन,भविच्छन ,गुलाटी और बालकिशुन समेत दुकान में बैठे अन्य लोग भी घोंचू भाई की बात में रुचि लेने लगे थे।घोंचू भाई ने पल भर दम मारने के बाद कहना शुरू किया ,’इसी इलाके में एक गांव है मुकुंदपुर। वहां एक मिड्ल स्कूल है। आज से करीब 5 साल पहले इसको अपग्रेड कर हाईस्कूल और फिर प्लस टू कर दिया गया। वहां नौवीं,दशवीं और प्लस टू कक्षाओं में करीब 250 छात्र -छात्राएं नामांकित हैं।लेकिन उनको पढ़ाने के लिए एक भी शिक्षक नहीं हैं। यही हाल सभी उत्क्रमित और प्लस टू स्कूलों का है। तुम्हें यह जानकर भी ताज्जुब होगा कि ऐसी कामचलाऊ शिक्षा-व्यवस्था के तहत कामचलाऊ स्कूलों में हेडमास्टर भी कामचलाऊ ही हैं।मतलब किसी सीनियर टीचर को हेडमास्टर का प्रभार दिया हुआ है।सरकार ने घोषणा की थी कि सभी हाई और प्लस टू स्कूलों में बीपीएससी से हेडमास्टर की स्थाई नियुक्ति की जाएगी। साल भर पहले बीपीएससी ने इसके लिए परीक्षा आयोजित की ,रिजल्ट भी निकला मगर बहाली कितनों की हुई ,यह भी पता लगाना चाहिए। अब शिक्षा विभाग के बड़े अधिकारी ने स्कूल आवर में निजी कोचिंग चलाने पर पाबंदी लगा दी है।पहले तो बिना शिक्षक वाले विद्यालयों में नामांकित छात्र इन्ही प्राइवेट कोचिंग में पढ़कर अपना सिलेबस बहुत हद तक पूरा करते थे।अब वे कैसे पढ़ाई करेंगे?तुमलोग इसका जवाब नहीं ढूंढोगे ?
घोंचू भाई से शिक्षा जैसे गूढ़ विषय पर गूढ़ बात सुन सभी बकर-बकर उनका मुंह ताकने लगे। ‘ अब चलते हैं,बथान में गाय को चारा लेने का वक्त हो गया ‘कहते हुए घोंचू भाई चलते बने।लेकिन वे शिक्षा से सम्बंधित एक बड़ा सवाल तो छोड़ ही गये हैं जिसका जवाब लोगों को मिलजुल कर तलाशना होगा।