ब्रह्मानंद ठाकुर
हमारे घोंचू भाई उस पीढी से बिलांग करते हैं जिस पीढी के अधिकांश लोग खलास हो चुके हैं या बड़ी तेजी से इस नामुराद दुनिया से कूच करने की तैयारी में जुटे हुए हैं। क्या जमाना था घोंचू भाई का ! दस बीघा उपजाऊ खेत के मालिक, 12 कठ्ठा मे बिज्जु आम का बगीचा। हर साल बेसुमार फलने वाला लंगड़ा ,सिनुरिया, नकूबा, कठम्मा,लडूबा, पिठबा, कोदइया, बरबरिया – आम जब पेड़ पर पियराने लगता तब लड़कवन सब की ढेलवाही देखते बनती थी। 10 कठ्ठा खढौरी, ईंकरी, झलसी का जंगल। बनकठ, शीशम बांस की बंसवारी अलग से। बथान में बड़का सिंघइला जोड़ा बैल और गुजराती भंइसी।
घोंचू उवाच-4
भोर में बैल के गरदानी में बंधी घंटी जब टनटन-टनटन आवाज करती तो घोंचू भाई की नींद खुलती। खूंटा से बैल -भैंस को खोल नाद पर बांधते, ठठेरा चाहे झर्रा के कुट्टी में हरियरी मिला कर नाद में रखते और वह चभर-चभर खाने मे जुट जाता। भैंस को ज्योंही खूंटा से नाद पर बांधते कि उसका पड्डू बांय -बायं करने लगता, दूध पीने के लिए। घोंचू भाई अपने बच्चे की तरह चब उसकी पीठ पर हाथ रख पुचकारने लगते तब वह उनके गोलगला गंजी का कोना मुंह से खींच उसे चबाने लगता। जब उसके मुंह से गंजी निकालने की कोशिश करते तो वह उनकी उंगली अपने मुंह में रख चभर -चभर करने लगता था। घोंचू भाई को बड़ी गुदगुदी लगती मगर आनन्द भी खूब मिलता था पड्डु से उंगली चुसवाने में। तब कितना अच्छा लगता था घोंचू भाई को !
घोंचू भाई के बथान की यह गतिविधि टोले भर के लोगों को जगा देती और वे सब अपने माल- मवेशी को चारा खिलाने में जुट जाते। इस तरह घोंचू भाई टोला के ही नहीं गांव के भी अगुआ थे। टोले का कौन खेतिहर अपने किस खेत में कौन फसल लगाएगा यह भी घोंचू भाई के दलान की बैठकी में तय हो जाता था। अगर कोई अपने खिलवा वला खेत में रहरी बाओ करने की बात कहता तो उसका अरिया भी अपने खेत मे रहरिए बाओ करता। खेत का भी नाम था — खिलवा , गसेरी ,बर तर ,मिठुआ वला ,बालू पर वगैरह ,वगैरह। अब तो वह पहले वाला न समय रहा और न वे लोग रहे।
गांव पूरी तरह से बदल चुका है। न बैल, न भैंस और न वह देशी गाय। देशी गाय की जगह जर्सी और फ्रिजियन ने ले ली है। न कोठी न बखारी। माटी का हंरिया , कोही , कूरा , जब घर का सिफत खराब करने लगा तो उसे निकाल बाहर कर दिया गया , जेना घर के बूढे , खांसते बीमार को कोठरी में बलगम फेंकने के डर से कोठरी से निकाल कर ओसारे की ‘ हवादार ‘ जग्गह में रख दिया जाता है। अब तो मनसुखबा जिंस – टी सर्ट पेन्ह मोटर साइकिल पर सवार होकर बाजार से 25 किलो वाला चावल का पैकेट शान से खरीद लाता हय। छांटने – फटकने का भी काम नहीं।
और तो और अब त गांव में दाल, धनिया, हल्दी, मिरचाई ,लहसुन , भी सबेरे सबेरे आटो से ला कर माईक पर चिल्ला चिल्ला कर बेंचा जाने लगा है -–’ धनिया लीजिए धनिया 80 रुपये किलो। अरहर का दाल लीजिए 100 रुपये में डेढ किलो ,लहसुन लीजिए 20 रूपये किलो। गांव अब शहर हो गया है सुख सुविधा के मामले में नहीं ,अपसंस्कृति और बाजारवाद के मामले में। घोंचू भाई को इस उमिर में भी सब कुछ ओन्हाइते याद है ,मानो अभी कल की बात हो। कइसे कोठी मे से चाऊर भभका कर छांट फटक के भात बनता था , मिठगर ,गाढ मांड वाला। सिकहर पर माटी के कोही के दही का सवादे भूल गये घोंचू भाई।
आज सांझ में दिशा – मैदान के बाद घोंचू भाई ललका गमछा से पसेना पोंछते हुए आए और नित दिन की तरह मनकचोटन भाई के तिनटंगा चौकी पर देवाल मे पीठी सटा कर बइठ गये। मनकचोटन भाई दूरा के सामने सड़क पर पानी पटा रहे थे और मैं गाय के बथान मे खरहरा कर रहा था। घोंचू भाई ने छूटते ही कहा ‘ न गिनब चैत, न गिनब बैसाख / न गिनब बार तीन सौ साठ / गिनब एक मास आसाढ / नवमी शुक्ला बार बखान । तब तक मैं भी चापाकल पर हाथ – मुंह धोकर घोंचू भाई के पंजरा मे बैठ चुका था। भगेरन चच्चा , बटेसर भाई और परसन कक्का भी जूम गये और मनकचोटन भाई के बंसखटिया पर आसन जमा लिए। बिजली का लाईन कट गया सो मनकचोटन भाई सड़क पर गरदा मारने के लिए जो पानी पटा रहे थे , उसे बंद करके मनसुखबा को बोले कि थोडका बच गया है ,लाईन आएगा तो पटा लेना। ताले ई पाईप को समेट के रख दो।
मनसुखबा जब पाईप सहेजने लगा तब मनकचोटन भई भी हाथ -गोर कल पर धो कर हवाई चप्पल पहन गमछा से हाथ पोंछते हुए आई उसी तिनटंगा चौक पर बइठे। मैंने घोंचू भाई से उनके कवित्त के बारे में जब जिज्ञासा की तो वे कहने लगे ‘ यह मेरा नहीं ,घाघ का कवित्त है ‘ मैं भौंचक ! निराला , दिनकर , चतुर्वेदी , त्रिलोचन , शिवमंगल सिंह सुमन , नीरज आदि हिन्दी के दर्जनों कवियों को पढा हूं , मुदा ई घाघ कौन थे ? इनका नाम तो नहीं सुना कभी और न उनकी कोई किताब एम्मे उम्मे मे पढा है। कहीं घोंचू भाई भकुआएल न त हंय ? ई सब सोचिए रहा था कि घोंचू भाई मेरे चेहरे का भाव पढ लिए और शुरू हो गये ‘ देखो ई घाघ अइसन वइसन अदमी न थे। बड़का मौसम वैज्ञानिक थे। आजकल वाला मौसम वैज्ञानिक नहीं जो कहता है कि बर्षा खूब होगी तो सूखा पड़ जाता है। जो कहता है उसका उल्टा होता है। घाघ महान मौसम वैज्ञानिक थे। जो कहते थे वह पूरा सही उतरता था।
अब सुनो, उन्होंने इसके आगे कहा है – मंगल परै तो हर परै , बुध परै दुख काल / दैव बिछौहा होय तो, परे सनीचर वार / सोमे ,शुक्रे ,रवि , गुरु , भूमै अन्न कराय / छत्तर टूटै ,महि डिगै , जो फिर शनि परि जाय। ‘ मैने पूछा –‘एक्कर माने ? ‘ घोंचू भाई समझाने लगे — चैत ,वैशाख महीने या साल के तीन सौ साठ दिनों या वारों पर विचार न कर , विचार केवल आषाढ शुक्ल नवमी का करना चाहिए। आषाढ शुक्ल नवमी को यदि मंगलवार हुआ तो हल पड़ा रह जाएगा , खेती नहीं होगी । बुध पडा तो अकाल निश्चित हय। और यदि आषाढ शुक्ल नवमी शनिवार को पड़ा तब तो अकाल और देश पर संकट दोनों का आना निश्चित है। जानते हो , इस बार आषाढ शुक्ल नवमी शनिवार को पड़ा है। नतीजा सामने आने लगा है। बटेसर भाई को एकादशी ,भदबा ,सरबना ,रेवती ,और पवनी पूजा की तिथियों का थोड़ा ज्ञान हय सो उन्होंने लगले घोंचू भाई की बात का समर्थन करते हुए कह दिया कि हं बात त ठीके हय । एमरी अषाढ शुक्ल पक्ष का नवमी शनिवारे को पड़ा है। लक्षण ठीक नहीं लगता है। इस बीच मनसुखबा भीतर से चाय लेकर आ गया। चाय पीने के बाद परसन कक्का खइनी बढा दिए। घोंचू भाई खइनी ऐठ मे दबाए और चलते भये। बटूसर भाई ने कहा -‘ घोंचू भाई की बात में आखिर दम तो है ही।