जूली जयश्री
दोस्ती इस रिश्ते के मामले में मैं इतनी अमीर हूं कि समझ में नहीं आ रहा कहां से शुरू करूं। किस-किस का जिक्र करुं ! अब तक के सफर में अलग अलग पड़ाव पर कई दोस्त बने, कोई साथ है कोई दूर, लेकिन उन सबसे मिले प्रेम से मैं हर पल सराबोर रहती हूं। वक्त वेवक्त जब भी मौका मिलता है तो यादों के पिटारे से इस जमा पूंजी को निकालकर इठला लेती हूं। आज तो दोस्तों को याद करने का मौका भी है और दस्तूर भी।
मेरे मन में दोस्ती की नींव मेरी बहनों ने डाली। मै सात बहनों में एक हूं। हम सबके बीच काफी अच्छा दोस्ताना है। बहनों ने ही दोस्ती की ऐसी लत लगा दी कि, घर बाहर जहां भी कोई अपना सा मिलता है उसे बांधती चली जा रही हूं। मेरी खुश किस्मती रही कि अब तक के जीवन में अलग-अलग पड़ाव पर एक से बढकर एक अच्छे मित्र मिलते रहे।
मेरे बचपन की स्मृति पिटारे में जो भी यादें कायम हैं उसमें ज्यादातर दोस्ती से ही जुड़ी हैं। चार-पांच साल की उम्र, जिसमें बच्चों की दुनियां घर परिवार तक ही सीमित रहती है, उस उम्र में भी मुझे दोस्त ज्यादा आकर्षित करते थे। मैंने जैसे ही स्कूल जाना शुरू किया उसके साथ ही दोस्तों और दोस्ती का अध्याय भी शुरु हो गया। देखते ही देखते क्या सीनियर और क्या टीचर सबके साथ मेरी दोस्ती हो गई ,लेकिन उसमें विजय सबसे खास था।
विद्यालय के शुरुआती दिनों में मुझे हिंदी ठीक से बोलनी नहीं आती थी और न ही उससे पहले मैंने कुछ खास लिखना-पढ़ना सीखा था। विजय पढ़ने में होशियार था उसकी मदद से मैंने भी जल्द ही क्लास में अपनी जगह बना ली। कुछ ही दिनों में हम दोनों की दोस्ती पूरे विद्यालय में मशहूर हो गई। हम दोनों के बीच दोस्ती के साथ ही खेल और पढ़ाई में कड़ी टक्कर भी रहती थी। मुझे इमली ,जलेबी (एक प्रकार का फल)और अमरुद खिलाने के चक्कर में कई बार हेड मास्टर साहब से पिट जाता था वो।
विजय की संगत में कई ऐसी शरारत भी की, जो आज भी गुदगुदाती हैं तो कुछ शरारतों का अफसोस हमेशा रहेगा। हमारा स्कूल जिस चौक पर पड़ता था वहां एक लेटर बॉक्स भी लगा हुआ था। रोजाना उस लेटर बॉक्स को दो बार खाली किया जाता था, फिर भी वो चिट्टियों से भरा रहता था। लंच के टाईम में हमारी टोली उसमें बर्फ (उन दिनों की आइसक्रीम ) गिरा दिया करती थी। खैर इस तरह की कई शरारतें हमने साथ-साथ की। सातवीं क्लास तक हमने साथ में पढाई की पर अब सेक्शन अलग हो गया। उसके बाद लम्बा समय बीत गया। अब वो मेरे संपर्क में नहीं है लेकिन उसके साथ सीखा हुआ दोस्ती का पाठ आज भी मुझे याद है।
दस साल की थी जब हम नए कॉलोनी में रहने आ गए। इसी कॉलोनी में मेरी जान पहचान गुड़िया से हुई। हम दोनों के बीच काफी असामनताओं के बावजूद ,उससे मेरी दोस्ती हो गई। अल्हड़ सी दिखने वाली इस लङकी के अंदर रिश्तों को लेकर एक अजीब सा समर्पण था , शायद उसकी इसी खूबी ने मुझे अनजाने ही आकर्षित कर लिया। दोनों साथ खाने और खेलने के अलावा मौका मिलते ही एक दूसरे के घर ही सो जाया करते थे। हमारी जोड़ी की शरारतों ने मुहल्ले में कई कीर्तिमान स्थापित कर दिए। बारिश में भींगने के लिए स्कूल से भाग जाना , गुड्डे-गुड़िया की शादी में कॉलोनी के बड़े बुजुर्गों को भी आमंत्रित करने जैसे कई कारनामे कर डाले।
हमारी दोस्ती की राह इतनी आसान नहीं थी। मेरे और उसके घर में क्लास का बहुत बड़ा फर्क था। एक तरफ जहां उसके घर जाने के लिए मुझे अपने स्वाभिमान से संघर्ष करना पड़ता था, वहीं मेरे घर वालों को डर था कि मैं उसकी सोहबत में बिगड़ न जाऊं। मुझे उससे दूर रहने की सख्त हिदायत दी जाती थी। इन सबके बावजूद हमारी दोस्ती बरकरार रही और इसका सारा श्रेय गुड़िया को जाता है, क्योंकि वो बिना हिम्मत हारे अनवरत मेरे रंग में ढलने का प्रयास करती रही। गुड़िया ने कई बार साबित किया कि दोस्ती निभाने की कोई हद नहीं होती है।
बचपन के दोस्तों में सोनी मेरे सबसे करीब रही। छठी कक्षा में पढती थी, जब उससे मेरी दोस्ती हुई। उसने न सिर्फ मेरे मन पर कब्जा जमाया बल्कि मेरे घर में भी सबकी अजीज बन गई। वैसे तो हम दोनों के विचार व्यवहार में ज्यादातर समानता ही है पर, दोस्त बनाने के मामले में वो मुझसे कई कदम आगे है। दोस्तों के हित के लिए कुछ भी कर गुजरना उसकी बहुत बड़ी कमजोरी है।
चुन्नु और एकता वैसे तो मेरे कजन हैं ,लेकिन हमारे बीच गहरा दोस्ताना है। अलग अलग राज्य में रहने के बावजूद दूरी कभी भी हमारे रिश्ते में रोड़ा नहीं बनी। वो 90 का दशक था और हम सब किशोरावस्था में थे। उन दिनों फोन आम लोगों के वश की बात नहीं हुआ करती थी। ऐसे में संवाद का एकमात्र जरिया पत्र था। खत और कार्ड भेजकर हमलोग एक दूसरे की जिज्ञासा , जानकारी सपने , खुशी और गम सबमें साझेदारी निभाते रहे। हमारा पत्र अन्य लोगों के लिए कौतूहल का विषय बना रहता था कि, आखिर ये लोग एक दूसरे को क्या लिखते रहते हैं।
समय के साथ साथ दोस्ती के प्रति मेरा लालच और गहराता रहा और दोस्ती का कुनबा बढाने की कवायद जारी रही। अब बारी कॉलेज की थी। यहां शुभेन्दु शेखर बेहद करीबी दोस्त बने। मेथ सबजेक्ट लेकर पढने वाली मैं अपने बैच की अकेली छात्रा थी। कॉलेज और ट्यूशन दोनों ही जगह पर कई लड़कों के बीच मैं अकेली लड़की रहती थी। उस असहज माहौल में एडजस्ट करने के क्रम में शुभेन्दु का सहारा मिला। शुभेन्दु की तारीफ कुछ शब्दों में करना मेरे लिए मुश्किल है ,बस इतना कह सकती हूं कि उसके जैसा दोस्त किस्मत वालों को ही मिलता है।
माखनलाल से पत्रकारिता के दौरान भी दोस्तों का बेशुमार प्यार मिला। पूरे कॉलेज में कोई नाम याद नहीं आ रहा जिससे मेरी दोस्ती न हो। सहपाठी, सीनियर के साथ ही गुरुजनों और ऑफिसकर्मियों से भी गजब का लगाव था ।इत्तेफाक देखिए हमारे फेयरवेल के दिन एक कार्यक्रम के दौरान मुझे कुछ बोलने के लिए एक पर्ची थमाई गई , उस पर्ची पर लिखा था दोस्ती। कॉलेज के उस आखिरी दिन दोस्ती पर बोलते हुए अपने आंसू नहीं रोक पायी थी।
दोस्तों की लिस्ट में यदि विनित झा का नाम न शामिल करुं तो कहानी अधूरी रह जाएगी। विनित जी मेरे जीवन में ऐसे दोस्त बनकर आए जिनसे मिलने के बाद ही मैंने खुद को सही मायने में जाना। उनके नजरिए से जीवन बहुत रंगीन और रोमांचक नजर आने लगा। जीवनरुपी सफर पर निकलने के लिए मुझे जिस साथी की जरुरत थी ,वो विनित जी के रुप में मिला। हमने इस साथी को अपना हमसफर बना लिया। लोगों की नजर में हमारे रिश्ते का जो भी नाम हो , मेरे लिए वो एक सच्चे दोस्त पहले हैं।
सच कहें तो दोस्ती को लेकर मेरा तजुर्बा यही है कि, ये किसी विशेष रिश्ते का नाम नहीं, बल्कि ये हर रिश्ते की प्राणवायु है। कोई भी रिश्ता तब तक फीका है ,जब तक उसमें दोस्ती का नमक ना डाला जाए।
जूली जयश्री। मधुबनी की निवासी जूली इन दिनों ग़ाज़ियाबाद के वसुंधरा में रहती हैं। आपने ललित नारायण मिश्रा यूनिवर्सिटी से उच्च शिक्षा हासिल की है। पत्रकारिता का उच्च अध्ययन उन्होंने माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय से लिया है। कई मीडिया संस्थानों में नौकरी के बाद अब वो बतौर फ्रीलांसर काम कर रही हैं।
Beautiful .I loved the last line dosti kisi rishtye ka naam nahi balki har ristye ki pranvayu hai.
Awesome. Keep writing. Sorry for late reply.