बाढ़ के पानी और बिहार के ‘हाहाकार’ की कहानी

पुष्यमित्र

सरहसा के सलखुआ अंचल की तस्वीर। फोटो- अजय कुमार कोसी बिहार।
सरहसा के सलखुआ अंचल की तस्वीर। फोटो- अजय कुमार कोसी बिहार।

इन दिनों वाल्मिकीनगर से लेकर किशनगंज के कोचाधामन तक उत्तर बिहार का हर इलाका बाढ़ के पानी में उब-डूब कर रहा है। गंडक के बैराज का फाटक टूट गया है। सुपौल के पास कोसी की सहायक नदी तिलयुगा ने एक सुरक्षा तटबंध को तोड़ दिया है, कोसी फनगो हॉल्ट के पास हमलावर होकर सहरसा-पटना रेलयात्रा को बाधित कर रही है और पूर्णिया-किशनगंज में महानंदा और उसकी सहायक नदियां ढेर सारा पानी लेकर आस-पास के गांवों में हिलकोर मार रही हैं।

उत्तर बिहार के बाढ़ की यह तसवीर नयी नहीं है। हर साल जुलाई-अगस्त महीने से इस तरह की खबरें अखबारों के पन्नों पर छाने लगती हैं और टीवी स्क्रीन पर बाढ़ का पानी हिलोरे लेता नजर आता है। और यह सालाना बाढ़ हर साल औसतन 200 इंसानों और 662 पशुओं की जान ले लेती है। पौने दो लाख घरों को नुकसान पहुंचाती है, छह लाख हेक्टेयर फसल को डुबाती है और बिहार को 30 अरब का चूना लगा जाती है। सच पूछिये तो यह सालाना बाढ़ ही है जो उत्तर बिहार के लोगों के ठठरी काया पर मांस चढ़ने नहीं देती। मर-मर कर जो कमाते हैं, वह बाढ़ में बह जाता है। हर साल डूबते हैं और हर बार बच कर फिर से जीना शुरू करते हैं।

बिहार में बाढ़ के प्रकोप की भयावहता को समझने के लिए यह आंकड़ा अपने आप में पर्याप्त है कि उत्तर बिहार के 76 फीसदी लोग बाढ़ के खतरों के बीच में जीते हैं। देश के बाढ़ पीड़ित इलाकों में से 16.5 फीसदी इलाके बिहार में पड़ते हैं। बाढ़ पीड़ित आबादी का 22.1 फीसदी हिस्सा बिहार में रहता है। राज्य के जमीन का 73.1 फीसदी हिस्सा बाढ़ प्रभावित है। बिहार के 28 जिले कमोबेस बाढ़ की विभीषिका झेलते हैं। 2013 की बाढ़ में राज्य के 20 जिले प्रभावित हुए थे। पिछले 33 सालों के आंकड़ों पर गौर किया जाये तो पता चलता है कि औसतन हर साल 18-19 जिलों में बाढ़ आती है और औसतन 59 सौ गांवों के 75 लाख लोग हर साल प्रभावित होते हैं। यह सालाना बाढ़ औसतन हर साल 200 लोगों की बलि लेती है।

बिहार की सालाना बाढ़- तबाही का गणित

फोटो- अजय कुमार कोसी बिहार
फोटो- अजय कुमार कोसी बिहार

-हर साल 200 इंसान, 662 पशुओं की जाती है जान, 30 अरब का होता है नुकसान
– औसतन 75 लाख लोग हर साल प्रभावित होते हैं, पौने दो लाख घरों की होती है क्षति
– छह लाख हेक्टेयर ज़मीन में खड़ी खरीफ की फसल डूब जाती है हर बार
– लगातार बाढ़ के खतरों के बीच जीती है उत्तर बिहार की 76 फ़ीसदी आबादी
– अमूमन हर बाढ़ प्रभावित परिवार झेलता है 20-30 हज़ार रुपये का नुकसान
– एक लाख लोगों को बनाना पड़ता है नया मकान, 80 हज़ार कराते हैं मरम्मत
– बिहार सरकार ने पिछले साल 3.60 अरब रुपये की राहत बांटी
– बढ़ नहीं रही बाढ़ प्रभावित जिलों के लोगों की प्रति व्यक्ति आय

बिहार सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग में साल 1979 से लेकर 2012 तक के हर साल आने वाले बाढ़ के प्रभाव का आकलन किया है। इस आकलन के हिसाब से बिहार में हर साल औसतन 10 लाख हेक्टेयर से अधिक खेतिहर जमीन पर बाढ़ का पानी फैलता है और इस दौरान छह लाख हेक्टेयर की खरीफ फसल बिल्कुल तबाह हो जाती है। अगर इस नुकसान का आकलन पैसों में करें तो हर साल बिहार के किसानों को औसतन 24 अरब 54 करोड़ रुपये का नुकसान बाढ़ की वजह से होता है। 17 लाख पशु बाढ़ से प्रभावित होते हैं और उनमें से औसतन 662 पशुओं की हर साल मौत हो जाती है।

फोटो- अजय कुमार कोसी बिहार
ये है कोसी की महिलाओं का जीवट। फोटो- अजय कुमार कोसी बिहार

बाढ़ का दूसरा बड़ा हमला लोगों के रहवास पर होता है। हर साल औसत पौने दो लाख मकान बाढ़ की वजह से क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। इनमें से 2671 पक्का मकान और 96 हजार कच्चे मकान तो पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। इस तरह देखा जाये तो लगभग एक लाख परिवारों को हर साल नया मकान बनवाना पड़ता है और शेष 70-80 हजार लोगों को अपने मकान का मरम्मत कराना पड़ता है। अगर लोग कच्चा मकान भी बनवायें तो आज की तारीख में खर्च 25 से 30 हजार रुपये चला जाता है। इस तरह देखें तो गरीब परिवारों की साल भर की बचत मकान बनवाने में ही खर्च हो जाती है। इनमें से कई परिवार ऐसे होते हैं, जिन्हें हर साल-दो साल या चार साल में अपना मकान बनाना या मरम्मत कराना पड़ता है। शिवहर जिले में इस संवाददाता को एक ऐसा व्यक्ति मिला था, जिसने पिछले 30-35 सालों में 18 बार अपना मकान बनवाया था। मकानों की क्षति की वजह से हर साल एक अरब का नुकसान होता है।

यह तो निजी मकानों का मामला है। बाढ़ की वजह से सरकारी संपत्तियों का भी कम नुकसान नहीं होता। सरकारी भवन, पुल-पुलिये, सड़क सब क्षतिग्रस्त होते हैं। सरकारी आकलन बताता है कि हर साल तकरीबन एक अरब रुपये की सरकारी संपत्ति भी बाढ़ की भेंट चढ़ जाती है। बाढ़ आती है तो सरकार को राहत का पिटारा खोलना पड़ता है। और यह पिटारा भी कम बड़ा नहीं है।

2015-16 के आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक पिछले साल राज्य में 3 अरब 60 करोड़ की राहत सामग्री बांटी गयी।  बाढ़ की वजह से हर साल 24.54 अरब की फसल बरबाद होती है। एक अरब का नुकसान घर क्षतिग्रस्त होने से होता है। एक अरब की सरकारी संपत्ति का नुकसान होता है और 3.60 अरब का राहत बंटता है। कुल मिलाकर हर साल 30.14 अरब का चूना राज्य को बाढ़ की वजह से लगता है। इस आंकड़े में एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टुकड़ियों के खर्चों को शामिल नहीं किया गया है, जिनकी तैनाती राज्य के नौ बाढ़ प्रभावित जिलों में लोगों को बचाने के लिए की गयी है और जल संसाधन विभाग जो खर्च तटबंधों को बचाने के लिए हर साल करती है, उसका हिसाब अलग है।

30 अरब से अधिक का सालाना खर्च बिहार जैसे गरीब प्रांत को किस तरह भारी पड़ता है, उसे इसे तथ्य से समझा जा सकता है कि पिछले साल राज्य सरकार को विभिन्न स्रोतों से कुल 1032 अरब की ही आय हुई है। अगर किसी राज्य को अपनी आय का तीन फीसदी पैसा सिर्फ बाढ़ के आपदा प्रबंधन में खर्च करना पड़े तो यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है। आप यह समझिये कि राज्य के हर बाढ़ पीड़ित व्यक्ति को साल में चार हजार से अधिक का नुकसान बाढ़ की वजह से होता है। और अगर पांच का परिवार हो तो यह नुकसान औसतन 20 हजार रुपये पहुंच जाता है। बिहार जैसे गरीब राज्य के लिए यह आंकड़ा कितना त्रासद है, इसका पता इसी बात से चलता है कि यहां लोगों की सालाना प्रति व्यक्ति आय महज 14,574 रुपये ही है और बाढ़ प्रभावित जिलों में तो यह नौ हजार के आसपास है।

यही वजह है कि बाढ़ग्रस्त जिलों का आर्थिक प्रदर्शन सबसे बुरा है। प्रति व्यक्ति आय के हिसाब से जो दस जिले सबसे कमजोर हैं, उनमें से सात बाढ़ वाले जिले हैं। आखिरी चार जिले तो बाढ़ग्रस्त ही हैं। आय में कमी, आपदा की वजह से आमदनी से अधिक खर्च होना आदि ऐसी वजहें हैं, जिससे इन इलाके के लोगों के बीच पलायन की दर सबसे अधिक है। बाढ़ की वजह से बच्चों की पढ़ाई लिखाई प्रभावित होती है, इसलिए इन जिलों में अशिक्षा और ड्रॉप आउट की दर भी सबसे अधिक है।

(साभार- प्रभात खबर)


पुष्यमित्र। पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। गांवों में बदलाव और उनसे जुड़े मुद्दों पर आपकी पैनी नज़र रहती है। जवाहर नवोदय विद्यालय से स्कूली शिक्षा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल से पत्रकारिता का अध्ययन। व्यावहारिक अनुभव कई पत्र-पत्रिकाओं के साथ जुड़ कर बटोरा। संप्रति- प्रभात खबर में वरिष्ठ संपादकीय सहयोगी। आप इनसे 09771927097 पर संपर्क कर सकते हैं।


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