काले कपड़े पहनने का शौक़ । सादगी पसंद, बेबाक़ी से अपनी राय रखना उनकी आदत । अपनी फ़िल्मों से लेकर उनके डायलॉग तक हर जगह उनकी छाप दिखती है । साल 1948 में 20 सितंबर को मुंबई में जन्मे इस शख्स के विचारों और ख़्याल उनकी फ़िल्मों में भी नज़र आती है । पिता नानाभाई भट्ट गुजराती ब्राह्मण थे और उनकी मां शिरीं मोहम्मद शिया मुस्लिम थीं । लेकिन दोनों ने कभी शादी नहीं की थी । मुंबई में उनकी स्कूली पढ़ाई डॉन बोस्को हाई स्कूल, माटुंगा में हुई । स्कूल के दौरान ही उन्होंने पैसे कमाने के लिए समर जॉब शुरू कर दी थी । 1974 में आई थ्रिलर फ़िल्म ‘मंज़िलें और भी हैं’ से उन्होंने हिंदी सिनेमा में क़दम रखा । फ़िल्म 1972 में ही बनकर तैयार हो गई थी मगर सेंसर बोर्ड फ़िल्म के रिलीज़ के लिए राज़ी नहीं था। 70 के दशक में एक वैश्या से 2 लोग इश्क़ करते हों ऐसी कहानी पर सेंसर को सांसत होनी थी । लेकिन किसी तरह 1974 में रिलीज़ होने के बाद अपने बोल्ड थीम के बावजूद फ़िल्म फ़्लॉप साबित हुई । साल 1979 में अपनी चौथी फ़िल्म ‘लहू के दो रंग’ से सफलता का स्वाद चखा । फ़िल्म ने बॉक्स आफ़िस पर पैसों की खनक के साथ एंट्री की और एक हिट फ़िल्म का तमगा हासिल किया ।
आज हम बात कर रहे हैं महेश भट्ट की । 20 सितंबर को उनका जन्मदिन है। 1982 में आई फ़िल्म ‘अर्थ’ ने महेश भट्ट को वो पहचान दी जो वो हासिल करना चाहते थे। यह एक ऐसी महिला की कहानी थी जिसे उसका पति दूसरी औरत के लिए छोड़ देता है। यह एक नए दौर के औरत की संघर्ष की कहानी थी जिसे पति की बेवफ़ाई बिल्कुल भी गवारा नहीं थी । वह ख़ुद अपने पैरों पर खड़ी हो सकती थी, उसे जीने के लिए किसी सहारे की ज़रूरत नहीं थी । 1984 में आई फ़िल्म ‘सारांश” से महेश भट्ट ने साबित कर दिया कि अगर कहानी और अभिनय दमदार हो तो फ़िल्म को हिट होने से कोई नहीं रोक सकता। फ़िल्म की शानदार कहानी के लिए महेश भट्ट को फ़िल्म फ़ेयर अवॉर्ड से भी नवाज़ा गया । सारांश को आज भी महेश भट्ट की सबसे बेहतरीन फ़िल्म माना जाता है। 1991 में आई फ़िल्म ‘सड़क’ ने सफलता के सारे रिकॉर्ड ध्वस्त कर डाले थे। 1999 में आई फ़िल्म ज़ख़्म के लिए उन्हें एक बार फिर से फ़िल्म की बेहतरीन कहानी के लिए फ़िल्म फ़ेयर अवॉर्ड मिला, फ़िल्म में अपनी दमदार एक्टिंग के लिए अजय देवगन को बेस्ट एक्टर का नेशनल अवॉर्ड मिला।
महेश भट्ट ने हर तरह की फ़िल्म बनाई चाहे वो थ्रिलर हो कॉमेडी हो या रोमैंटिक फ़िल्म हो। आशिक़ी, दिल है कि मानता नहीं उनकी यादगार रोमैंटिक फ़िल्मों में से है । जिनमें आशिक़ी तो उस दौर के युवाओं के लिए माइलस्टोन फ़िल्म रही है और आज भी रोमैंटिंक फ़िल्मों में इस फ़िल्म का नाम हमेशा आता है। महेश भट्ट ने जानम, नाम, सर, ज़ख़्म, हम हैं राही प्यार के, डुप्लिकेट जैसी कई हिट फ़िल्में बनाकर बॉलीवुड में वो रुतबा हासिल किया जो कम ही फ़िल्म निर्देशकों को मिल पाया है ।
90 के दशक में जब घर-घर दूरदर्शन ने अपनी पैठ बनानी शुरू की तब महेश भट्ट ने भी टेलीविज़न का रुख़ किया और साल 1995 में स्वाभिमान सीरियल बनाया जो दूरदर्शन पर टेलेकास्ट हुआ । स्वाभिमान को लोगों ने काफ़ी पसंद किया था । इसके अलावा महेश भट्ट ने दूरदर्शन के लिए ए माउथफ़ुल ऑफ़ स्काई और स्टार प्लस के लिए कभी-कभी सीरियल भी बनाया। फ़िलहाल उनका निर्देशित सीरियल नामकरण टीवी पर प्रसारित किया जा रहा है जिसकी थीम भी मॉडर्न लाइफ़स्टाइल पर ही आधारित है.. महेश ने फ़िल्मों से जुड़े एक शो को भी होस्ट किया है ।
कॉन्ट्रोवर्सी किंग कहे जाने वाले महेश भट्ट अपनी फ़िल्मों की तरह ही हमेशा विवादों में रहे। फ़िल्म एक्ट्रेस से भी उनके नाम जोड़े गए। 20 साल के महेश भट्ट कॉलेज में पढ़ते थे जब उनका अफ़ेयर लोरिएन ब्राइट से शुरू हुआ था जो शादी के बाद किरण भट्ट बन गईं । किरण ही पूजा भट्ट और राहुल भट्ट की मां हैं। महेश भट्ट ने अपनी लव लाइफ को पर्दे पर उतारने की कोशिश भी की, उनकी फ़िल्म आशिकी किरण भट्ट के साथ उनके रिश्तों पर आधारित थी। लेकिन जब 1970 के दशक में महेश भट्ट का अफ़ेयर परवीन बॉबी से हुआ, तब उनकी पहली शादी में दरार आ गई। परवीन बॉबी से संबंध बिगड़ने के बाद उनकी जीवन में एंट्री हुई सोनी राज़दान की । महेश सोनी के साथ किरण को तलाक़ दिए बग़ैर ही रहने लगे थे । सोनी से महेश भट्ट के 2 बच्चे शाहीन भट्ट और आलिया भट्ट हैं। शायद अपने मां-बाप को शादी की पाठशाला में ना जाते देखने की वजह से शादी पर से महेश भट्ट का भरोसा कम ही था । पहली पत्नी के बेटे राहुल भट्ट से उनके रिश्ते खटास भरे हैं, राहुल कहते हैं कि जब उन्हें पिता का ज़रूरत थी तब महेश भट्ट उनके साथ नहीं थे। अपने बयानों से भी महेश भट्ट विवादों में रहे उन्होंने अपनी बेटी पूजा भट्ट के लिए एक बार ये तक कह दिया था कि अगर वो उनकी बेटी ना होतीं तो वे उनसे शादी कर लेते… पूजा को स्मूच करती उनकी तस्वीर 90 के दशक में उनके लिए परेशानी का सबब बनीं, मगर फिर भी उन्होंने अपना तरीक़ा नहीं बदला। महेश भट्ट अपने परिवार से कितना प्यार करते हैं ये इसी बात से जाना जा सकता है कि उन्होंने पत्नी सोनी राज़दान के एक बार कहने पर शराब पीनी छोड़ दी ताकि बच्चों पर इसका असर ना पड़े। महेश भट्ट और सोनी राज़दान ने ख़ुद एक इंटरव्यू में यह बात क़ुबूली थी । अपने एक इंटरव्यू में आलिया ने बताया था कि उन्हें टाइम्स ऑफ़ इंडिया के एक प्रोग्राम में अमिताभ बच्चन को हिंदी सिनेमा के 100 साल पूरे होने पर सम्मानित करना था .. अलिया ने पापा महेश से वहां कहने के लिए मदद मांगी थी तब महेश ने उनसे कहा था क्या आप समंदर के बिना जुहू के बारे में सोच सकते हैं, क्या आप हिंदी सिनेमा के 100 साल अमिताभ बच्चन के बिना सोच सकते हैं, क्या आप इंडिया टाइम्स ऑफ़ इंडिया के बिना सोच सकते हैं ये लाइनें कहकर आलिया ने ख़ूब वाहवाही बटोरी थीं।
बक़ौल भट्ट उनके कैंप ने अनुपम खेर, आमिर ख़ान, नसीरुद्दीन शाह, जैकी श्रॉफ़, संजय दत्त, अजय देवगन, राहुल रॉय, अतुल अग्निहोत्री, मनीशा कोइराला, जूही चावला, इरफ़ान ख़ान सरीखे कलाकारों को पहचान दी । तो वहीं नए कलाकारों जैसे बिपाशा बसु, जॉन इब्राहिम, उदिता गोस्वामी, डीनो मोरेया, इमरान हाशमी, मल्लिका शेरावत, जैक़लीन फ़र्नान्डिस को इंडस्ट्री में पैर जमाने में मदद की।
46 फ़िल्मों में निर्देशक की कुर्सी पर बैठ चुके महेश भट्ट की आख़िरी निर्देशित फ़िल्म थी साल 1999 में आई कारतूस … अब महेश भट्ट बतौर प्रोड्यूसर अपनी भूमिका निभाते हैं। विशेष फ़िल्म्स के नाम से उनका प्रॉडक्शन हाउस है जिससे उन्होंने कई कलाकारों को फ़िल्मी दुनिया के रंग मंच पर पेश किया है । साथ ही कई नए कलाकारों को भी मौक़ा दिया है। उनकी बेटी आलिया भट्ट इन दिनों हिंदी सिनेमा में सक्रीय हैं। आलिया ने हिंदी सिनेमा में अपनी पहचान भी बना चुकी हैं। लेकिन महेश और सोनी की दूसरी बेटी शाहीन भट्ट लाइमलाइट से दूर ही रहना पसंद करती हैं। उन्होंने ज़हर और जिस्म 2 फ़िल्म के कई सीन लिखे हैं। इसके अलावा वह राज़ 3 में बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर भी काम कर चुकी हैं। उम्र के 70वें पड़ाव में क़दम रख रहे महेश भट्ट आज भी अपने ख़्यालों से जवां हैं … और सोच से ज़िंदादिल…!
– विनय सिंह, टीवी पत्रकार