बदलाव प्रतिनिधि, मुजफ्फरपुर।
बंदरा प्रखंड के मतलुपुर एक मध्यमवर्गीय किसान परिवार में जन्म लेने वाले डॉ गोपालजी त्रिवेदी
का केवल बचपन ही गांव मे नहीं बीता बल्कि उनकी प्रारंभिक पढ़ाई भी गांव के ही स्कूल में हुआ। उसके बाद उनका नामांकन पूसा स्थित उच्च विद्यालय में हुआ। उन्होंने वहीं से अपनी मैट्रिक की पढ़ाई की। मैट्रिक की पढ़ाई पूरी करने के बाद उनका नामांकन इंटरमीडिएट के पढ़ाई के लिए वर्तमान के लंगट सिंह कॉलेज में हुआ। श्रीत्रिवेदी को मैथमेटिक्स में ज्यादा अभिरुचि थी इसलिए उन्होंने इंटरमीडिएट में साइंस स्ट्रीम लिये।एक कहावत है कि “होनहार बिरवान के होत चिकने पात”
जो श्रीत्रिवेदी पर सटीक बैठती है। क्योंकि उस समय में गोपालजी त्रिवेदी ने अपने श्रेणी में सबसे उच्चतम अंक प्राप्त किया था।जिसके बाद उनका नाम अखबार आदि में भी प्रकाशित हुआ था। इसके बाद वे आगे की पढ़ाई हेतु कॉलेज में बीएससी ऑनर्स में दाखिला लिया।यंहा भी उनका सब्जेक्ट मैथमेटिक्स ही रहा। इसी क्रम में उनके पिताजी का देहांत हो गया। उस समय गोपालजी त्रिवेदी का उम्र काफी कम था एवं परिवार में इकलौते पुत्र होने के कारण पढ़ाई बंद करनी पड़ी। इसके बाद गोपाल जी त्रिवेदी गांव में ही अपने घर पर रहने लगे थे।इस क्रम में उन्होंने खेती की। अपनी मां के बारे में चर्चा करते हुए अपने पूरे प्रगति एवं विकास का श्रेय अपनी मां को देते हैं। डॉ त्रिवेदी अपना जीवन गांव में गुजार रहे थे इस बीच बीच पूसा विद्यालय में 1 विज्ञान की शिक्षक की आवश्यकता पड़ी। उस समय साइंस के बहुत कम शिक्षक ही मिलते थे। तब इनकी मां से किसी ने कहा कि इनको शिक्षक हेतु भेजा जाए। तभी इस रत्न की पहचान एक जौहरी ने कर ली।जौहरि का नाम था पंडित यमुना कार्जी। इनके प्रतिभा को यमुना जी इतना पसंद कर लिए कि उन्होंने कहा कि इतनी तेज आदमी को किसी स्कूल के शिक्षक तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए।उन्होंने इन्हें कृषि विश्वविद्यालय जाने की बात कही।उसी दौरान कृषि विश्वविद्यालय में एडमिशन के लिये रिक्तियां
निकली थी। इसके लिए गोपालजी त्रिवेदी ने पोस्टकार्ड पर एप्लीकेशन लिख भेजा है एवं एडमिशन के दिन साक्षात वहां पहुंचे क्योंकि उस समय ऐडमिशन का आधार मार्क्स होता था और गोपालजी त्रिवेदी का नंबर पहले इतना ज्यादा था कि उन्हें तुरंत एडमिशन मिल गया और उन्होंने बैचलर एवं मास्टर डिग्री वहां से प्राप्त की। इसके बाद सरकार ने इन्हें पीएचडी के लिए भेजा। डॉ त्रिवेदी बाद में ढोली कॉलेज में प्रोफेसर और जॉइंट डायरेक्टर भी रहे । उसके बाद वह विश्वविद्यालय में निदेशक और फिर कुलपति तक का सफर पूरा किया। शुरुआत से अपना जीवन ग्रामीण परिवेश में गुजरने के कारण हमेशा से किसानों एवं ग्रामीण लोगों से जुड़ाव रहा।गोपालजी त्रिवेदी जब कुलपति थे तब या जब सेवानिवृत्त हो गए हैं उसके बाद भी लगातार ग्रामीण एवं किसानों को अपने से जोड़कर उनके फायदे के लिए प्रयासरत रहते हैं। वर्तमान में डॉ गोपालजी त्रिवेदी सेवानिवृत्त होने के बाद वह किसान से जुड़े हुए हैं।
डॉ गोपाल जी त्रिवेदी के तीन संतान है एक पुत्र तथा दो पुत्री ।
पुत्र डॉ रमन कुमार त्रिवेदी अभी फिशरीज के साइंटिस्ट है , एनिमल साइंस यूनिवर्सिटी पटना में डायरेक्टर है।
इनके एक दामाद प्रिंसिपल चीफ कंजरवेटर ऑफ फॉरेस्ट से रिटायर्ड है
दूसरे चीफ इंजीनियर फ्लाइट ऑपरेशन एयर इंडिया है।
राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री के द्वारा अवार्ड से सम्मानित किया गया।
डॉ त्रिवेदी कई राष्ट्रीय संस्था एवं समितियों के सदस्य भी बनाए गए।
एक बार जब जब मुशहरी में नक्सलियों के सामने प्रशासन ने घुटने टेक दिए थे तब जयप्रकाश बाबू खुद नक्सलियों एवं ग्रामीणों से बात करने के लिए आ गए इसके बाद उन्होंने यह पाया कि नक्सलियों के उत्पात का कारण किसान एवं कृषि है। तब जयप्रकाश बाबू ने समस्या के निवारण की जिम्मेवारी गोपालजी त्रिवेदी को दिया।गोपालजी त्रिवेदी के कर्तव्य निर्वहन के कार्यो से खुश होकर जयप्रकाश बाबू ने उन्हें अपने साथ जुड़ने के लिये आमंत्रित किया।
इन्होंने नाना जी देशमुख जैसे व्यक्तित्व के साथ चित्रकूट और गोंडा जैसी जगहों पर काम किया ।
वर्तमान में डॉ गोपालजी त्रिवेदी बिहार एक्वा कल्चर बेस्ड एग्रीकल्चर (बाबा) नामक संस्था की स्थापना की है जिसके अंतर्गत मछली पालन,बकरी पालन,मुर्गी पालन,खेती,बागान एवं अन्य कार्य होते है।