नवनीत सीकेरा
के फेसबुक वॉल से
यूपी पुलिस के तेज तर्रार IPS नवनीत सीकेरा वैसे तो किसी न किसी रूप में अपने काम को लेकर चर्चा में बने रहते हैं, गाहे-बगाहे वो पुलिस की दुर्दशा का मुद्दा भी देश के सामने किसी न किसी माध्यम से रखते रहे हैं । पुलिस को लेकर हमारा और आपका नजरिया क्या है ये तो हम सभी जानते हैं लेकिन हमसभी के बारे में पुलिस क्या सोचती है ये शायद ही कभी सोचे होंगे । तो चलिए सोचिए और पढ़िए किसी ईमानदार पुलिसवाले का देश के नाम खुला पत्र । जिसे नवनीत सीकेरा ने अपने फेसबुक पर शेयर किया है, बदलाव उसका कुछ अंश आपके सामने रख रहा है ।
पुलिस की आंखों देखी पार्ट-2
मैं पुलिस हूँ ! आपका ठुल्ला , आपका मामू !
हाँ जी ! मैं पुलिस हूँ !
जब आप बिना हेलमेट और तीन सवारियां बैठाकर अपनी बहादुरी का परिचय देने सड़क पर आते हैं तो कहते हैं ठुल्ले से दस बीस में निपट लेंगे। पर जब आप सड़क पर गिर जाते हैं तो इसी ठुल्ले की ‘नाकामी’ को कोसते हुए पूरी व्यवस्था को गालियां देते हैं। आपके पिताश्री आपके इन मर्दोंवाली कारनामों पर गर्व करते हैं पर जब आप किसी गरीब को ठोकर मार देते हैं तो इसी ठुल्ले को वह ऊपर वाले से फ़ोन करा मामले को रफा दफा करने का दवाब बनाते हैं। कभी कभार आप अपने यार दोस्तों को अपनी नयी कार में बियर का जश्न मनाते नाकाबंदी में इसी मामू पर रौब झाड़ने लगते हैं। बियर से भी कम दाम पर इस मामू की कीमत बताने से आप नहीं शरमाते और चालान काटने पर मोबाइल घुमाने लगते हैं ।
जब कोई बदमाश आपकी इसी कार में बैठी गर्ल फ्रेंड को घूरने लगता है तब इसी मामू से उम्मीद करते हैं कि वह इन बदमाशों से लोहा ले और आपका मोबाइल भी शायद साइलेंट हो जाता है। कुछ देर मामू की औकात का मजाक उड़ाती आपकी दोस्त भइया प्लीज़ पर उत्तर आती है।आपका दोस्त मोटरसाइकिल पर बैठ लड़कियों के दुपट्टे भले खींचता रहे पर मेरी नासमझी पर आपको बड़ा क्रोध आता है …
जी हाँ , मैं वही आपका ठुल्ला, आपका मामू पुलिस वाला हूँ । मैं वही हूँ, जब आप टीवी स्क्रीन पर पॉपकॉर्न खाते हुए आतंकवादी हमले देख रहे थे , मैं कसाब की एके 47 की गोलियां अपने सीने पर ले रहा था।किसी ठेले के सामने कार रोक कर ट्रैफिक जाम करने के पहले सोचिये की कौन निकम्मा और असल में कौन देश का ठुल्ला है। आप तो सौ सौ की नोट निकाल लेते हो पर मैं तो एक पानी की बोतल भी नहीं खरीद सकता। भूख बेबस कर देती है खोमचेवाले से दो तीन दोना उठा लेने की क्योंकि १० घण्टे किसी अनजान जगह पर खड़े होने पर कोई टिफ़िन लेकर नहीं आता।
आप अपने मोहल्ले की टूटी सड़क के लिए ठेकेदार से नहीं लड़ पाते। राजनेताओं से उनके वादों के सवाल नहीं पूछ पाते। गली के माफिया से बच कर रहते हैं। सामने जा रही लड़की की छेड़खानी भी आपके लिए मनोरंजन लगती है। थिएटर हो या रेलवे , ब्लैक की जगह खुद खोजते हैं। पर एक पुलिस के सिपाही से उम्मीद करते हैं वह चौवीसों घंटे आपके साथ मौजूद रहे । बीच बाजार हो रहे अपराधो को नज़रअंदाज़ कर देते हैं और बाहुबलियों की जीप पर खड़े नारे लगाते हैं पर मेरी लाठी से चूक हो तो मोमबत्तियों का जुलस बड़ी संजीदगी और जिम्मेदारी से निकालते हैं। कोई भी जुलुस निकले, नेताओं के भाषण हो, आप सडकों पर आ जाते हैं और मुझे धूप सहते हुए आपकी सुरक्षा आपके ही लोगों से करनी है। आप अपने घरों में आराम से त्योहार मनाते हैं और बेचारे आपका यह मामू बिना छुट्टी किये आपकी खुशियों में कोई दखल ना पड़े उसके लिए सड़कों पर खड़े यातायात व सुरक्षा व्यवस्था में तैनात खड़ा रहता हूँ। जिसकी फाईलों में मैं कई अपराध दर्ज़ किये, जिसे मैं ढूंढता हूँ जान की बाजी लगा कर, उसे ही आप चुनाव जिता देते हैं और फिर मेरी ड्यूटी लगती है उसके साथ साये की तरह रहने की और सल्यूट मारने की।
देश के प्रधानमंत्री कहते है स्मार्ट बनो। कभी उन्होंने देखा है टेन्ट में सोते हमें। कभी झाँका है हमारी खण्डहर सी बैरकों में। जब आप लोग ऑफिसियल काम से जाते हैं तो होटलों में रहते हैं। हम जब अपराध की खोजबीन या दुर्दांत अपराधियों को भी लेने जाते हैं तो बस स्टैंड या रेल के प्लेटफॉर्म पर सोते हैं। क्या आप जानते हैं की हर साल 2730 से अधिक सिपाही सर्विस के दौरान प्राकृतिक मौत के शिकार होते हैं ? हमें तो सरकारी अस्पताल के लाईन में भी लगना होता है। आप चौंकिए नहीं यह जान कर की हर साल तनाव से 235 पुलिसवाले आत्महत्या कर लेते हैं ? सिर्फ महाराष्ट्र में एक साल में 40 पुलिसवालों ने ख़ुदकुशी की।आप ठुल्ला और मामू का मजाक करने के पहले यह भी जान लें की हर साल 740 से अधिक मामू और ठुल्ले आपकी जान बचाने के लिए अपने आप को शहीद कर देते हैं और 3750 से अधिक घायल हो जाते हैं। सिर्फ पिछले पांच साल में सरकार कितनी बदली वह तो नहीं जानते पर यह जान लें की 4000 पुलिस वाले अपनी जान पर खेल गए थे। पिछले पांच साल में 10000 सिपाही आपके पत्थरों, हिंसक भीड़ और जनांदोलन में घायल हुए और 80 से ज्यादा लोगों ने उग्र भीड़ के सामने अपनी जान गँवा दी।
आपको नागरिक जिम्मेदारी पता है या नहीं पर उम्मीद यही की जाती है पूरे संविधान के हर शब्द का पालन मैं कर सकूँ। इस चौराहे पर घंटो खड़ा होने के बाद मुझे यह भी ध्यान रखना है की हर एक चीज की विस्तृत विवरण लिखूं ताकि अदालतों में बड़े बड़े कालेजों में पढ़े बड़ी बड़ी पदवी वाले लोग उस पर बहस कर सकें। अगर उन्होंने थोड़ी भी गलती निकाल ली तो मेरी निंदा करने कई लोग इस चौराहे पर खड़े हो जायेंगे। आपके घर में ट्यूब वाली टीवी से कब एलईडी वाली पतली टीवी आ गयी पता नहीं चला पर मुझे तो अपनी वही लाठी लिए सौ साल पहले का कानून और हजार संसोधन को बखूबी याद रखना है।चलिए ! आपने मेरी इतनी सुनी इसके लिए शुक्रिया ! कहीं देर हो गयी तो निलंबित हो जाऊँगा !इस देश में देश की हर समस्या के लिए सिर्फ खाकी सस्पेंड होता है या ट्रांसफर।…यही मैं हूं, यही मेरी अंतिम सच्चाई हैं ।
नवनीत सिकेरा, IG, उत्तरप्रदेश वूमन पावर लाइन, लखनऊ। 1993 में रुड़की से IIT और 2011 में इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस से शिक्षा।
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