पशुपति शर्मा
अभिनेता, नाटकों के बाद हमेशा आत्ममुग्ध हो जाया करते हैं। कभी-कभी मैं भी इसका शिकार हो जाता हूं। लेकिन मुझे इसका बखूबी एहसास है कि रंगमंच एक सामूहिक कला है और इसे मुमकिन करने में कई लोगों का हाथ हुआ करता है। एक समूह के प्रयास से कोई प्रस्तुति मुमकिन होती है। दस्तक की हालिया प्रस्तुति एक दिन का मेहमान को आप सभी साथियों, दर्शकों का स्नेह हासिल हुआ है। बधाईयों का सिलसिला चल रहा है। ऐसे में उन सभी साथियों का जिक्र करना जरूरी है, जिनकी बदौलत ये नाटक मुमकिन हो पाया।
सर्वप्रथम राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के स्नातक और वरिष्ठ रंगकर्मी सदानंद पाटिल का आभार, जिन्होंने संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार से प्रोडक्शन ग्रांट मिलने पर दस्तक जैसी छोटी संस्था को प्रस्तुति के लिए चुना। अपेक्षाकृत कम सधे कलाकारों के साथ साधना की और प्रस्तुति को एक मुकाम तक पहुंचाया। साथी कलाकारों में माधवी शर्मा, गौरिका शर्मा, कुंदन शशिराज और वेदाक्षी को आपने मंच पर देखा ही है।
बैक स्टेज में मोहन जोशी का जिक्र अलग से बनता है। नाटक की रिहर्सल से लेकर प्रस्तुति तक हर पल वो पूरी टीम के साथ डटे रहे। अपनी निष्ठा और सुझावों से प्रस्तुति को समृद्ध किया। आप ने नाटक के संगीत संयोजन की भूमिका निभाई। नाटक में म्यूजिक एक किरदार की तरह था और इस रूप में कलाकारों के लिए ईश्वरीय वरदान की तरह मोहन जोशी मंच पर ही मौजूद थे-अदृश्य। प्रकाश संयोजन- फिर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के साथी शिवप्रसाद गौड़ का था, जो कम वक्त में प्रभाव उत्पन्न करने का हुनर जानते हैं। नाटक की उद्घोषणा और स्वागत का स्वर दस्तक की पुरानी साथी शेफाली चतुर्वेदी का था।
व्यवस्थागत इंतजामों में संदीप शर्मा, लतिका शर्मा, जूली जयश्री, सुप्रिया, विजय यादव, प्रभात, हिमांशु शर्मा, शाबुद्दीन मलिक, शुभाशिष डे, अरुण प्रकाश, सत्येंद्र यादव ने जो कष्ट उठाया, उसकी भरपाई महज शुक्रिया कह देने से पूरी नहीं हो सकती। मेरी पत्नी सर्बानी शर्मा की गैर-मौजूदगी में मैंने घर को रिहर्सल स्पेस की तरह इस्तेमाल किया। प्रस्तुति के दिन उनका सारा साजो-सामान घर से मंच पर शिफ्ट कर दिया। और बेटी रिद्धिमा की तस्वीर मंच पर टंगी रही। मां और बेटी के साथ मंच पर रहने की ये साध भी मैं अनकहे ही पूरी कर गया।
आखिरी दो दिनों की रिहर्सल के लिए मिलिंद अकादमी स्कूल ने हमें स्पेस मुहैया कराया, इस सहयोग के लिए सैक्टर-6 के आरडब्ल्यूए अध्यक्ष सुंदरलाल चमोली को साधुवाद। विद्या बाल भवन पब्लिक स्कूल ने शुरुआत में हमें प्रस्तुति के लिए स्पेस मुहैया करा दिया था। हम निशांत शर्माजी के आभारी हैं, जो ऐसे मौके पर ये तक कहने से गुरेज नहीं करते कि स्कूल तो आप लोगों का है, जैसे चाहें रचनात्मक इस्तेमाल करें।
दर्शकों की तादाद और तकनीकी पक्ष को देखते हुए हमें बड़े ऑडिटोरियम की तलाश थी। इंद्रप्रस्थ इंजीनियरिंग कॉलेज में हमें ये ऑडिटोरियम हासिल हुआ। हम इंद्रप्रस्थ इंजीनियरिंग कॉलेज के मैनेजमेंट और तकनीकी स्टाफ के आभारी हैं। हम ललित जायसवाल और संदीप अग्रवाल के भी विशेष शुक्रगुजार हैं, जिन्होंने पूरी प्रक्रिया के दौरान कलाकारों की संवेदनाओं का खयाल रखा और गर्मजोशी दिखाई।
और अंत में उन सभी दर्शकों का भी शुक्रिया जिन्होंने रविवार की शाम का बेहद प्यारा वक्त रंगमंच और खास कर दस्तक जैसी कम जानी पहचानी संस्था की प्रस्तुति के लिए निकालने का जोखिम उठाया। 50 मिनट की प्रस्तुति के लिए कई दर्शकों का 2 से 3 घंटे तक का वक्त सफ़र में गुजर गया। ऐसे सुधी दर्शकों को प्रणाम।
रंगमंच पर मेहमान भले ही एक दिन के लिए आया, लेकिन उसकी मेहमाननवाजी में कई लोग शरीक रहे। पता नहीं इतने लफ़्जों के बावजूद कई नाम अब भी छूटे रह गए हों। उन सभी से माफ़ी के साथ, अगली प्रस्तुति में आपका फिर इंतज़ार रहेगा। इस बार मंच पर मौजूद कलाकारों के साथ उसके पीछे के शिल्पकारों की मेहनत भी याद रखिएगा दोस्तों। हम कलाकार तो बस एक कठपुतली हैं, जिनकी डोर कई लोगों के हाथ में हुआ करती है, वो जैसे नचाते हैं, हम वैसे ही नाचते हैं। प्रणाम।
पशुपति शर्मा ।बिहार के पूर्णिया जिले के निवासी। नवोदय विद्यालय से स्कूली शिक्षा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय से संचार की पढ़ाई। जेएनयू दिल्ली से हिंदी में एमए और एमफिल। डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। उनसे 8826972867 पर संपर्क किया जा सकता है।