दुष्यंत कुमार…एक कालजई कवि

दुष्यंत कुमार…एक कालजई कवि

बदलाव प्रतिनिधि, मुजफ्फरपुर

दुष्यन्त कुमार समकालीन हिन्दी कविता के एक ऐसे सशक्त हस्ताक्षर हैं,जिन्होंने हिन्दी गज़ल को नया आयाम दिया। उर्दू गज़लों को नया परिवेश व नयी पहचान देते हुए उसे आम आदमी की संवेदना से जोड़ा। उनकी हर गज़ल आम आदमी की गज़ल बन गयी है, जिसमें आम आदमी का संघर्ष, आम आदमी का जीवनादर्श,राजनैतिक विडम्बनाएं व विसंगतियां चित्रित हैं। राजनीतिक क्षेत्र का जो भ्रष्टाचार है,प्रशासन तन्त्र की जो संवेदनहीनता है,वही इसका स्वर है। साहित्य भवन कांटी में आयोजित कवि दुष्यंत के जयंती समारोह में अध्यक्षीय उद्बोधन में चंद्रभूषण सिंह चंद्र ने यह बातें कही।

नूतन साहित्यकार परिषद की ओर से आयोजित कार्यक्रम में चंद्र ने कहा कि दुष्यन्त कुमार ने गज़ल को रूमानी तबियत से निकालकर देश के आम आदमी से जोड़ने का कार्य सफलतापूर्वक किया है। संघर्ष व बदलाव की कोशिश दुष्यंत की रचनाओं का मूल स्वर है। वे परिवर्तन की कामना रखने वाले क्रांतिद्रष्टा कवि थे। मेरे सीने में नही तो तेरे सीने में सही,हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए..,। यह कहकर वे राजनीतिक,सामाजिक विद्रूपताओं व शोषण के खिलाफ आवाज उठाने की अपील करते हैं तो हो गई है पीर सी पिघलनी चाहिए,इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए…कहकर वे दुर्व्यवस्था व विषमताओं को लेकर परिवर्तन की ऊर्जा का प्रवाह करते हैं।


               परशुराम सिंह ने कहा कि देश व समाज की हर समस्या पर दुष्यंत की कलम मुखर दिखती है। उन्होंने प्रेम, देशभक्ति,असमानता, भ्रष्टाचार व आम आदमी के संघर्ष जैसे विषयों पर विचार किया।


            राकेश कुमार राय ने कहा कि दुष्यंत की गजल व कविताएं दिल को छूने वाली हैं। इनकी कविता व गज़ल के स्वर आज तक संसद से सड़क तक गुंजते है। वे आम आदमी के विषमतापूर्ण जिंदगी में परिवर्तन की बात करते हैं।


  पिनाकी झा ने कहा कि दुष्यंत अन्याय संकट झेल रहे समाज को संघर्ष का संदेश देते हैं। कार्यक्रम में विद्वतजनों ने उनकी तस्वीर पर माल्यार्पण कर श्रद्धासुमन अर्पित किए। इसमें मनोज मिश्र, पिनाकी झा,महेश कुमार,वसंत शांडिल्य, दिलजीत गुप्ता,प्रकाश कुमार आदि शामिल थे।