सुरों के पवित्र पाश में कस लेती हैं लता

सुरों के पवित्र पाश में कस लेती हैं लता

देवांशु झा

के एल सहगल

सिनेमा के गायन में पहला बड़ा नाम कुंदन लाल सहगल का है। उनके समकालीन और परवर्ती गायकों पर सहगल का गहरा प्रभाव है। लता खुद कहती हैं कि बचपन में वे या तो अपने विद्वान पिता दीनानाथ मंगेशकर को गाते हुए सुनती थीं या फिर सहगल को। सहगल की विराटता का अनुभव उन्हें फॉलो करने वाले गायकों की ऊंचाई से होता है। मुकेश पर सहगल का जबरदस्त प्रभाव था और किशोर दा ताउम्र सहगल के दीवाने रहे। अपने घर में उन्होंने सहगल की आदमकद तस्वीर लगा कर रखी थी। किशोर के दर्द में सहगल को सूक्ष्म रूप से अनुभव किया जा सकता है। जैसे सहगल उनकी आवाज की अस्थिमज्जा में घुले मिले हैं।

मन्ना डे

परवर्ती गायकों में मन्ना दा स्वतंत्र थे। उन पर अपने चाचा केसी डे का ही असर है। रफी दुर्रानी से प्रभावित थे। लेकिन हमें पड़ताल इस बात की करनी है कि मन्ना दा, लता, रफी, किशोर और मुकेश ने अपने समकालीन गायक श्रोताओं और परवर्तियों को कैसे प्रभावित किया। चूंकि मन्ना दा गायकी के सभी गुणों से विभूषित होते हुए भी तटस्थ रहे कभी धारस्थ नहीं हो सके इसलिए उनके चेलों की कतार नहीं है। दूसरी बात यह कि वे कभी सितारों के अधिष्ठाता गायक नहीं थे। अपवाद स्वरूप राजकपूर हैं।

अब देखिए, रफी के फ़ॉलोअर्स कौन हैं। यानी कि उनकी लीगेसी कैसी है । बड़ी विचित्र बात है कि रफी के जीतेजी ही परकाया प्रवेश जैसी स्थिति हो गई थी, बल्कि परकंठ प्रवेश कहना ज्यादा उचित है। अनवर उनके उत्तराधिकारी थे। अच्छा गाते थे। पर अपनी अकड़ में गुम हो गए या उनमें रफी से अलग कुछ था ही नहीं इसलिए जनता ने स्वीकार नहीं किया। रफी के सर्वोत्तम उत्पाद सोनू निगम हैं। जबकि किशोर कुमार ने कुमार सानू दिया, अभिजीत, बाबुल सुप्रियो। एक आध नाम और गिनाए जा सकते हैं। खुद उनके पुत्र अमित कुमार हैं। मुकेश की धारा के गायकों में शैलेन्द्र सिंह, मनहर उधास, स्वयं उनके बेटे नितिन मुकेश हैं।

लता मंगेशकर

अब देखिए लता की गायकी का दमकता हुआ लोक। लता के जीते जी जितनी भी गायिकाएं आईं, सब की सब उनके स्वर संसार में विचरण करने वालीं शिष्याओं की तरह थीं। अस्सी के दशक में उनके पदचिन्हों पर चल कर आने वाली पहली बड़ी और सुरीली गायिका थी अनुराधा पोडवाल। फिर अलका यागनिक, साधना सरगम, कविता कृष्णमूर्ति। जबकि साठ और सत्तर में ही लता के करीब पहुंच कर लता जैसा गाने की कोशिश करती कई गायिकाएं थीं। पहली सुमन कल्याणपुर और बाद में हेमलता। सुमन कल्याणपुर बहुत अच्छा गाती हैं, कई बार कुछ लोगों को उनके स्वर से लता का भ्रम होता है लेकिन उन्हें कतई नहीं होता जो यह जानते हैं कि लता जैसा विशुद्ध स्वर किसी और का नहीं है ! आवाज को जैसे दैवीय तानपुरे पर ट्यून कर कंठ में जगह दी गई हो।

श्रेया घोषाल

लता के पदचिह्नों पर चलने वाली ये सभी सुरीली गायिकाएं रही हैं और इन सबों ने सिनेमा गायन में अच्छा खासा योगदान दिया है। लता को देवी मानकर उनकी तरह गायन करने वालों की किसी भी पुरुष गायक के चेलों से कहीं ज्यादा और भऱी-पूरी समृद्धशाली परंपरा है। बाद में सुनिधि चौहान, श्रेया घोषाल, विभावरी आप्टे जोशी और न जाने कितनी ही प्रतिभाशालिनी गायिकाएं हैं। श्रेया तो साक्षात इसका प्रमाण है कि लता की छाया बनकर गाना भी तरुवर में बैठने जैसा है। निंदा और प्रतिस्पर्धा से निरापद होने जैसा। इन सभी गायिकाओं ने अपने जीवन में बार-बार लता को ही गाया है। लता से ही इनकी सारी युक्ति है लता से मुक्ति नहीं है। संगीत प्रतियोगिताओं में जो लड़कियां गाना गाती हैं उनमें से अस्सी फीसदी लता को चुनती हैं और अद्भुत तो यह कि लता को चुन कर गाने वाली ही शिखर पर पहुंचती हैं। अनुराधा से लेकर श्रेया तक साक्षात प्रमाण हैं ।

लता एक विशाल वटवृक्ष हैं जिनके आस-पास किसी दूसरे बरगद का पनपना संभव ही नहीं था। उनकी आत्मा में झांक कर किसी ने नहीं देखा है। कहानियां गढ़ देने से कोई बुरा इंसान नहीं होता और कोई देवता नहीं बन जाता। लेकिन लता का जो गायन है वह अनगिनत क्षणों में विस्मयकारी है। हिन्दुस्तान में आदमी किसी और गायक या गायिका को उस तरह से स्तंभित होकर या ठहर कर नहीं सुनता, जिस तरह से उन्हें सुनने को बाध्य हो जाता है। लता सुरों के पवित्र पाश में कस लेती हैं। सहज, स्वच्छंद, स्वर की स्वामिनी। जिसे सुन कर रसिक हृदय मुक्त नभ में निस्तरंग उड़ जाता है। वहां जीवन ही जीवन है और जीवन का ही राग है।

संगीत की हर विधा में वे अपने समकालीन और परवर्तियों से बहुत आगे हैं। यह साक्षात ईश्वरीय कृपा है। रक्त धमनियों में बहता हुआ अनहद ! दीनानाथ मंगेशकर जैसे धुरंधर का वरदहस्त है उनके कंठ पर। अपने दौर के सभी गायक गायिकाओं से बहुत महान हैं लता।


devanshu jhaदेवांशु झा। झारखंड के देवघर के निवासी। इन दिनों दिल्ली में प्रवास। पिछल दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। कलम के धनी देवांशु झा ने इलेक्ट्रानिक मीडिया में भाषा का अपना ही मुहावरा गढ़ने और उसे प्रयोग में लाने की सतत कोशिश की है। आप उनसे 9818442690 पर संपर्क कर सकते हैं।