अजय राणा
आज की दौड़ती भागती जिंदगी में बच्चों के मन की बात उनके मन में दब के रह जा रही है। हम आधुनिक दौर में आगे बढने की होड़ में उनके लिए ही समय नहीं निकाल पा रहे हैं, जिनका जीवन हम संवारना और सजाना चाहते हैं। बच्चों के जीवन को कैसे संवारा जाए और उनकी बात कैसे सुनी जाए इसी मुद्दे पर बदलाव और ढ़ाई आखर फाउंडेशन ने एक परिचर्चा का आयोजन किया, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों के कई एक्सपर्ट्स ने भाग लिया। दिल्ली और एनसीआर में डेरा समर्थकों को लेकर तनाव के बावजूद लोगों की उपस्थिति काफी उत्साह बढ़ाने वाली थी। मीडिया, शिक्षा, हेल्थ और मनोविज्ञान के क्षेत्र से आए विशिष्ठ लोगों ने आंखें खोल देने वाले बिंदुओं पर हम सबका ध्यान आकर्षित कराया।
परिचर्चा की शुरुआत में ही दिल्ली विश्वविद्यालय के कालिंदी कॉलेज में इंग्लिश में ग्रेजुएशन कर रही तमन्ना राय ने सबों के मन को छू लेने वाली बात कही। उन्होंने बताया कि बच्चों को उनके दादा-दादी नाना-नानी से जुड़ने का मौका दिया जाए। तमन्ना ने कहा कि वो अब बड़ी हो रही हैं लेकिन अपना बचपन हमेशा याद रखना चाहती हैं, उसे कभी नहीं भूल पातीं।
बच्चों और मां बाप के बीच मौजूदा दौर में चल रहे खींचतान को सभी वक्ताओं ने पूरी शिद्दत से उठाया। डॉक्टर उमेश वर्मा (आरोग्य अस्पताल) ने साफ तौर पर कहा कि जिन बच्चों के लिए हम दिन रात भागमभाग कर रहे हैं, हम उन्हीं को समय नहीं दे पा रहे हैं। बच्चों को एंग्जाइटी निरोशिस की समस्या हो रही है। उन्होंने अभिभावकों से निवेदन किया कि वो बच्चों को डांटें नहीं बल्कि उनकी सुनें। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि हम बच्चों को उत्साहित करें कि वो अपनी सभी बातें हमसे शेयर कर सकें। अगर ऐसा हम नहीं करते हैं तो उसके कितने गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं इसकी ओर गाजियाबाद सीटी एसपी श्री आकाश तोमर ने प्रकाश डाला। उन्होंने जानकारी दी कि कैसे हाल के दिनों में बच्चों का घर छोड़ कर चले जाने की घटनाएं लगातार बढ़ी हैं। वसुंधरा, वैशाली और आस-पास के इलाकों से ही करीब चार से अधिक मामले सामने आए हैं।
आकाश तोमर ने बताया कि आजकल परिवार और बच्चे आपस में उतने टच में नहीं रहते। पहले बच्चे प्रोटेक्टेड रहते थे लेकिन आजकल सोशल मीडिया के जमाने में उनके तरह-तरह से INFLUENCE होने की गुंजाइश ज्यादा रहती है। बच्चे नए तरह की समस्याएं फेस कर रहे हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि हमें बच्चों को दोस्त की तरह ट्रीट करना चाहिए, उनकी समस्या को सुनना चाहिए। उन्होंने बताया कि 1098- चाइल्ड लाइन बच्चों को रिकवर करने का एक कारगर और सहायक नंबर है। उन्होंने माता-पिता को सर्तक किया कि आप अपने बच्चों से एक रिश्ता कायम करें ताकि वो ना तो किसी अपराध का शिकार हों और ना ही किसी अपराध में लिप्त हो सकें।
कुमार मंगलम बिरला स्कूल की काउंसलर, साइक्लॉजी की अध्येता रीमा पाल ने तो सीधा सवाल किया कि क्या हम बच्चों के मन की बात सुनना चाहते हैं? क्यों बच्चे अपने दोस्तों से ही खुल कर बाते करते हैं और अभिभावकों से नहीं। दरअसल, बच्चों को उनके दोस्तों से सुझाव मिलते हैं डांट नहीं। आज की हकीकत ये है कि दूसरी क्लास का बच्चा भी मां बाप की फीलिंग को समझता है लेकिन शायद हम पेरेंट्स उन्हें समझ नहीं पाते।
आरोग्य अस्पताल की सीनियर डाक्टर, डा अंजली चौधरी ने अभिभावकों से आग्रह किया कि पीटीएम की भड़ास बच्चों पर ना निकालें। उन्होंने तो ये सवाल भी किया कि क्या हम खुद सचिन तेंदुलकर, नरेंद्र मोदी, मुकेश अंबानी जैसी शख्सियत बन पाने में सक्षम हैं और अगर ऐसा नहीं है तो फिर हम कैसे अपने बच्चों पर कामयाब होने का दबाव डाल सकते हैं। मां को अगर मां से प्रतियोगिता है तो करें लेकिन उसमें बच्चों को ना झोंकें। उन्होंने बच्चों को गले लगाने और अपने करीब रखने के महत्व को काफी विस्तार से बताया।
खेतान पब्लिक स्कूल में शिक्षिका मंजूला श्रीवास्तव ने समाज के उपभोक्तावादी सोच को काफी हद तक आज के माहौल के लिए दोषी बताया। वर्किंग पेरेंट्स हैं और दोनों घर में कोई कमी नहीं रह जाए इसके लिए दिन रात व्यस्त रहते हैं। बच्चा घर पर खुद ही सब कुछ मैनेज करने की कोशश कर रहा है। अब घर में संभालने वाले नहीं रहे। एक समय था जब दादा से शिकायत हुई तो दादी से बात कर ली। बुआ से शिकायत हुई तो चाचा को बता दिया। मम्मी से डांट पड़ी तो चाची ने बचा लिया लेकिन आज हमारे आस-पास ऐसा कोई नहीं है। माता पिता अपनी नौकरी में व्यस्त हैं और घर पर बच्चे अकेले हैं।
ज़ी डिज़िटल मीडिया से जुड़े दयाशंकर मिश्र ने कहा कि बच्चों के मन की बात करना आज की तारीख में कोई रॉकेट साइंस जैसा हो गया है। हम भी कभी बच्चे थे लेकिन हम कल और आज को जोड़ने में असफल हो रहे हैं। इसी डिसकनेक्ट के कारण बच्चों में डिप्रेशन आ रहा है। पोकमैन, फेसबुक, व्हाटस-एप में घर से सभी लोग बिखरे पड़े हैं लेकिन किसी को इस बात का अहसास नहीं कि इससे क्या नुकसान समाज और परिवार का हो रहा है। आइंस्टिन का उदाहरण देते हुए वो कहते हैं कि हमें बच्चों पर दबाव डालने की बजाय आइंस्टीन की मां से सीख लेनी चाहिए और बच्चों का मनोबल बढ़ाना चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि बच्चे हमारी प्रोपर्टी नहीं है। वो हमारी धरोहर हैं।
परिचर्चा के आखिर में मनोचिकित्सक, डॉ नीलम सक्सेना ने रिश्तों में प्रीचिंग की बजाय फ्रेंडशिप पर जोर दिया। उन्होंने अभिभावकों से कहा कि अपने चीजों को मैनेज करना सीखिए, अपने बच्चों को सुनिए और अपने पास रखिए। उन्होंने ये भी कहा कि बच्चों के सामने मां बाप को लड़ने से परहेज करना चाहिए इसका उन पर बुरा असर पड़ता है।साहित्यकार दीपक यादव ने बताया कि हम ऑफिस के फ्रस्टेशन को बच्चों पर निकालते हैं, जो कतई ठीक नहीं। सभी वक्ताओं को आपस में जोड़े रखने और मंच का संचालन करने में वुमनिया डॉट कॉम की संपादक प्रतिभा ज्योति ने बड़ी भूमिका निभाई। उन्होंने भी पेरेंटस को बच्चों के साथ समय बिताने पर जोर दिया। कार्यक्रम में वुमनिया, आरडब्ल्यूए, मिलिंद अकादमी स्कूल का सहयोग रहा।
अजय राणा। दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र। मीडिया और मीडिया प्लानिंग के क्षेत्र में लंबा अनुभव। समाज में सकारात्मक बदलाव के लिए हमेशा तत्पर रहने वाले युवा साथी।
‘बदलाव’ ने बेहद ज्वलंत मुद्दे पर इस कार्यक्रम का आयोजन किया था। सबसे बड़ी बात ये रही कि आयोजक विशिष्ट वक्ताओं को परिचर्चा में शामिल करने में सफल रहे ऐसे प्रोग्राम की जरूरत हर वर्ग और हर समाज को है।
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