अनिल तिवारी करीब 1962 के दौरान पिता जी का तबादला ग्वालियर हो गया और मेरा दाखिला उस समय के सर्वश्रेष्ठ
Category: चौपाल
रंगकर्मी की संवेदना और गृहस्थी में कैद मां
अनिल तिवारी वरिष्ठ रंगकर्मी अनिल तिवारी जी ने अपनी रंग यात्रा को फेसबुक पर एक सीरीज में साझा किया है।
पद्मावत- जाति के ठेकेदारों ने बवाल क्यों काटा?
अनुशक्ति सिंह मैं पैदाइश से राजपूत हूँ. मेरे नाम के पीछे लगा ‘सिंह’ सरनेम मेरे पिता की थाती है जो
मनमोहन-मोदी का फर्क, जवाब में नहीं मीडिया के सवाल में ढूंढिए
राकेश कायस्थ यह समय भारतीय समाज के स्मृति लोप का है। याद्दाश्त गजनी की तरह आती-जाती रहती है। जो लोग
‘कानून’ आया आपके द्वार: ‘समझबूझ’ कर लड़ो लड़ाई
प्रियंका यादव राजधानी दिल्ली में एसडीएम ऑफिस में अपनी तरह का पहला फ्री लीगल क्लिनिक सेवा की शुरुआत की गई
कोरेगांव की लड़ाई- सैनिकों की कोई जाति नहीं होती
अमरेश मिश्र कोरेगांव की लड़ाई का जश्न मैं कभी पचा नहीं पाया। फिर भी, आधुनिक भारत की जटिल जातीय राजनीति
दांडी बंगला और डाक बंगले का फ़र्क मिटने को है!
धीरेंद्र पुंडीर “नाम क्या है इसका।” एक वीरान से पड़े बंगले के अंदर खड़े होकर मैंने बंगले में बैठे उस
किसके डर की अभिव्यक्ति है भीमा-कोरेगांव की घटना
ब्रह्मानंद ठाकुर जहां तर्क और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को सिरे से नकारते हुए अंधविश्वास, कूपमंडूकता और अतार्किक मानसिकता को बढावा देकर
‘सुशासन बाबू का फ़ैसला गांधीद्रोह से कम नहीं’
ब्रह्मानंद ठाकुर बिहार सरकार के एक फैसले को लेकर पिछले दिनों अखबारों में ‘बुनियादी विद्यालयों को खत्म करने पर तुली
गांधी के 3 बंदर गायब हो गए… और उनके मंत्र?
धीरेंद्र पुंडीर ये तो गांधी जी की सत्याग्रह की जगह है जहां से गांधी जी ने सत्याग्रह किया है। वहां