शिरीष खरे कुछ बनने की जल्दी में हुआ दृष्टि-दोष, फिर एक दिन अचानक एक घटना से कि जाना निकट की चीजें दूर या दूर
Category: मेरा गांव, मेरा देश
हर सांझ अकेले हैं मेरे बाबू जी !
विकास मिश्रा बाबूजी से मिलकर गांव से लौटा हूं। करीब सात महीने बाद मिला, 93 साल की उम्र हो चली
बजट से पहले किसानों के मन की बात सुनिए वित्त मंत्रीजी
ब्रह्मानंद ठाकुर हमारे देश में किसानों की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है, फिर भी सरकारी योजनाओं और बजट में
राजधानी दिल्ली में ‘अलग मुलक का बाशिंदा’
पशुपति शर्मा राजकमल नायक। रंगमंच का ऐसा साधक, जिसने मंच पर तो एक बड़ी दुनिया रची लेकिन सुर्खियों के ताम-झाम
‘कानून’ आया आपके द्वार: ‘समझबूझ’ कर लड़ो लड़ाई
प्रियंका यादव राजधानी दिल्ली में एसडीएम ऑफिस में अपनी तरह का पहला फ्री लीगल क्लिनिक सेवा की शुरुआत की गई
कोरेगांव की लड़ाई- सैनिकों की कोई जाति नहीं होती
अमरेश मिश्र कोरेगांव की लड़ाई का जश्न मैं कभी पचा नहीं पाया। फिर भी, आधुनिक भारत की जटिल जातीय राजनीति
पल्लवी ने बनाई बिहार की ‘पहली प्लास्टिक की सड़क’
आपके आस-पास फैला प्लास्टिक का कचरा आपके लिए कूड़े से ज्यादा कुछ नहीं होता, लेकिन क्या आप सोच सकते हैं
‘करोड़ों’ की जमीन का मालिक मजदूरी करने को मजबूर
शिरीष खरे अलेक्जेंड्राइट नाम के दुनिया के बेशकीमती पत्थर जिस खेत से निकले उस खेत का मालिक कैसा होना चाहिए
सुकून का कहीं कोई वाई फाई नेटवर्क नहीं!
सच्चिदानंद जोशी मैं जैसे ही उस रिसोर्ट में दाखिल हुआ अचंभित रह गया। शहर से इतने पास, लेकिन शहर के
दांडी बंगला और डाक बंगले का फ़र्क मिटने को है!
धीरेंद्र पुंडीर “नाम क्या है इसका।” एक वीरान से पड़े बंगले के अंदर खड़े होकर मैंने बंगले में बैठे उस