लेखकों का ‘आपातकाल’ और ‘फासीवाद’ बस हौव्वा है ?

संजय द्विवेदी देश में बढ़ती तथाकथित सांप्रदायिकता से संतप्त बुद्धिजीवियों और लेखकों द्वारा साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने का सिलसिला वास्तव

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क़लम से ही क़ातिलों के सर क़लम करें लेखक

कुमार सर्वेश तेंदुआ गुर्राता है, तुम मशाल जलाओ। क्योंकि तेंदुआ गुर्रा सकता है, मशाल नहीं जला सकता। सर्वेश्वर दयाल सक्सेना

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काए गुड़िया नईं चिन्हो का?

कीर्ति दीक्षित काफी सोच विचार के बाद शहर के शोरगुल से दूर अपनी कलम को आवाज देने के लिए मैंने अपने

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पहले शौचालय या देवालय… एक बार ‘जनार्दन’ से पूछिए

पुष्यमित्र जहानाबाद शहर से सिर्फ चार किमी दूर है बरबट्टा गांव। मुख्य सड़क के किनारे बसा यह गांव मखदूमपुर विधानसभा के

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