पवन शर्मा भारत में ग्राम पंचायतें ही लोकतंत्र की प्रथम सीढ़ी होती हैं। देश की बहुसंख्यक जनता का अपने दैनिक जीवन में ग्राम
Category: मेरा गांव, मेरा देश
रोती-बिलखती मां भी बददुआ नहीं देती
अश्विनी शर्मा विख्यात कवि धूमिल के गांव खेवली की पन्ना माई बिलख रहीं हैं। अपने खून से ही दया की
बिहार के तीन तिलंगे-व्हाट एन इलेक्शऩ सर जी!
शंभु झा बिहार चुनाव को लेकर काफी कुछ कहा और सुना जा रहा है। अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव को लेकर
महंगाई का रावण हंस रहा है… हा हा हा
हां, बह रही है विकास की गंगा दालों में डबल सेंचुरी के साथ प्याज में मुनाफाखोरी के साथ सब्जियों में
रमन राज में नक्सलियों से आखिरी लड़ाई
दिवाकर मुक्तिबोध छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने हाल ही में नई दिल्ली में ये कहा था कि राज्य
धत तेरे कि… थार में न भात, जुबान पे छै जात !
पुष्यमित्र सरकारी आंकड़ों में बिहार में दस में से आठ बच्चे कुपोषित हैं। 26 फीसदी बच्चे अति कुपोषित हैं। 80
लेखकों का ‘आपातकाल’ और ‘फासीवाद’ बस हौव्वा है ?
संजय द्विवेदी देश में बढ़ती तथाकथित सांप्रदायिकता से संतप्त बुद्धिजीवियों और लेखकों द्वारा साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने का सिलसिला वास्तव
क़लम से ही क़ातिलों के सर क़लम करें लेखक
कुमार सर्वेश तेंदुआ गुर्राता है, तुम मशाल जलाओ। क्योंकि तेंदुआ गुर्रा सकता है, मशाल नहीं जला सकता। सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
काए गुड़िया नईं चिन्हो का?
कीर्ति दीक्षित काफी सोच विचार के बाद शहर के शोरगुल से दूर अपनी कलम को आवाज देने के लिए मैंने अपने
विदेशी धरती पर मजहबी मोहब्बत का संगम
भव्य श्रीवास्तव एक लौ जल गई। अमेरिका के साल्टलेक सिटी में पार्लियामेंट ऑफ रिलीजंस की शुरुआत इसी तरह हुई। कन्वेंशन