डा. सुधांशु कुमार इधर मी-टू ने पाँच-दस दिनों में जितना रायता फैला कर दस-बीस लोगों की साँस साँसत में डाल
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जनता बेहाल, कारोबारी मालामाल, वाह रे अच्छे दिन वाली सरकार !
शुरुआत से ही मोदी सरकार को विपक्षी पार्टियों ने सूट-बूट वाली सरकार का तमगा दिया तो ऐसा लग रहा था
तारीख़
तारीख दर तारीख वो मांग रहा था अपने हिस्से की धूप-छांव तारीख दर तारीख वो मांग रहा था अपने हिस्से का
विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस पर गाजियाबाद में स्नेहन भरी एक शाम
टीम बदलाव बुजुर्गों के अकेलेपन की त्रासदी कितनी गंभीर होती जा रही है? एक उम्र के बाद क्यों समाज अपने
‘दादी’ के दर्शन और दादी से बिछड़ने का डर
नीलू अग्रवाल उस लड़की ने हाथ पकड़ रखे हैं अपनी दादी के और मजबूती से पकड़ रखे हैं । मजबूती
समान शिक्षा ही समाज में समानता का बेहतर विकल्प
शिरीष खरे ‘स्कूल चले हम’ कहते वक्त अलग-अलग स्कूलों में पल रही गैरबराबरी पर हमारा ध्यान ही नहीं जाता। एक
समस्या आरक्षण नहीं, भयानक बेरोजगारी है
पीयूष बबेले नब्बे के दशक की शुरुआत में मंडल कमीशन लागू होने के बाद से यह पहला मौका था, जब
एम्स की भाग-दौड़ और अटलजी की यादें
ब्रजेन्द्र नाथ सिंह के फेसबुक वॉल से साभार लगभग 15 सालों के अपने पत्रकारिता जीवन में मैंने सैकड़ों रैलियां कवर
गांधी पर बात करने वर्धा में जुटे पत्रकार साथी
संदीप नाईक मध्यप्रदेश का एक पैरवी समूह जो विकास, कुपोषण , शिक्षा और स्वास्थ्य के मुद्दों पर गत 15 वर्षों
आधी आबादी को दुष्कर्मियों के ख़िलाफ़ एकजुट होना होगा
मृदुला शुक्ला वो जाने कौन सा साल बरस था तेज चटकती दुपहरी थी बस इतना याद है। कहाँ से लौटी