शंभु झा जब जिंदगी दिल्ली नहीं थी, तब की बात है । तब रामलीला देखने का बड़ा उत्साह रहता था।
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अपना ‘रोशन’ क्या किसी ‘बाज बहादुर’ से कम है ?
सच्चिदानंद जोशी कुछ दिन पहले मांडू जाना हुआ। यात्रा के अंतिम पड़ाव में हम प्रसिद्द दिल्ली दरवाजे पर रुके, क्योंकि
मियां साहब, आपने देहाती औरत कहा था !
सितम्बर 2013 में यूएन जनरल असेम्बली के समय पाकिस्तान के वज़ीरे आज़म ने पत्रकारों के साथ नाश्ते के दौरान कहा
कैसे हैवानियत में बदल गई रुमानियत ?
हमारे चेहरे पर अगर दाग हो जाए तो आइने में उसे बार-बार देखते हैं । उसे हटाने के लिए
युद्ध के विरुद्ध
सचिन कुमार जैन युद्ध ऐसी भूख है जो जिन्दा को खाती है इंसान हो, जानवर हो नदी हो, या बर्फ
फ्लॉप फिल्म में जिंदगी का हिट फंडा
मुझे बहुत कुछ करना है, बहुत आगे जाना है। रिश्ते-नाते और करियर के बीच कहीं जिंदगी खत्म तो नहीं हो
इंटरनेट के दौर में दो पीढ़ियों के दो अलग-अलग युग
संगम पांडेय जो दर्शक वही-वही नाटक देख-देख कर ऊब चुके हों उन्हें निर्देशक सुरेश भारद्वाज की प्रस्तुति ‘वेलकम जिंदगी’ देखनी
दाना मांझी ने अपनी अनग की आख़िरी ख्वाहिश पूरी कर दी
धीरेंद्र पुंडीर दाना मांझी उड़िया के अलावा दूसरी कोई भाषा नहीं बोल पाता है। अनग देई तो अब कोई भी
दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल का हाल-ए-बयां
विनोद कापड़ी एक बिस्तर पर चार-चार मरीज़। ICU के गलियारे में सॉंसो की आख़िरी आस। अस्पताल के ठीक अंदर मरीज़
अंधे बिल में फंस गया हूं…
पेरुमल मोरुगन की अंग्रेजी में पढ़ी एक कविता का हिन्दी अनुवाद देविंदर कौर उप्पल ने किया है। यह कविता अपने