आदमी गर बड़ा न होता,
हिंसा के मुहल्ले में खड़ा न होता !
माना कि ये बच्चे भी आपस में नफरत करते है,
लेकिन इनके अंतस में अंतर हम ही भरते है !
मासूम मन किसी का अहित करते नहीं,
भोग – विलास के साधन पर मरते नहीं !
आदमी जिंदगी भर यूँ ही बचपन के भाव सा होता,
तो न समाज बिखरता और न देश रोता !
आदमी पुनः लौट क्यों नहीं आता ?
जाति,मजहब,धर्म,असमानता,जेंडर के पैमाने से,
बच्चे अक्सर पूछते है कुछ सवाल जमाने से ?
उत्तर दो न……प्लीज !!
बाँदा से आरटीआई एक्टिविस्ट आशीष सागर की रिपोर्ट। फेसबुक पर ‘एकला चलो रे‘ के नारे के साथ आशीष अपने तरह की यायावरी रिपोर्टिंग कर रहे हैं। चित्रकूट ग्रामोदय यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र। आप आशीष से [email protected] पर संवाद कर सकते हैं।