दयाशंकर जी के फेसबुक वॉल से साभार कभी-कभी गुस्से की छाया, निराशा, ठगे जाने के बोध के बीच हम स्वयं
Author: badalav
गांव की आर्थिक-सामाजिक बुनावट में कितना बदलाव
शिरीष खरे गांव क्या है? अवधारणाओं में जब भी इसे ढूंढ़ने-समझने की कोशिश की तो इससे जुड़ी व्याख्याओं में मुख्य
टीस भरा बचपन
वीरेन नन्दा बचपन की यादों में लौटना केवल वही चाहते खोना बचपन के दिन ममता में जिनके बीते समता में बीते
नेहरू का कद छोटा कर पटेल को बड़ा नहीं बना सकते
ब्रह्मानंद ठाकुर बंशी बाबा आज जब बहुत दिनों के बाद गांव आए तो मनकचोटन भाई, बटेसर, झिंगुरी सिंह, फुलकेसर , बदरुआ,
बाजारवाद की माया से दूर छठ पर्व की छटा
पुष्य मित्र वैसे तो छठ मुख्यतः बिहार-झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोगों द्वारा मनाया जाने वाला पर्व है, फिर
बिहार का स्लीपर सेल और छठ पर्व पर गरथैया
अनुशक्ति सिंह के फेसबुक वॉल से साभार कभी किसी को कहते सुना था, जहाँ न जाये रवि वहाँ जाये बिहारी.
शहरों की भूल-भुलैया और गांवों का बिगड़ता ताना-बाना
शिरीश खरे शहर का नाम आते ही हमारे सामने गांव की जो भी छवि बने लेकिन इतना तय है कि
फाउंटेन पेन का लालच और चवन्नी की चोरी
ब्रह्मानंद ठाकुर घोंचू भाई आज खूब प्रसन्न मुद्रा में थे। मनकचोटन भाई के दलान में तिनटंगा चउकी पर ज्योंही
सुकराती पर्व की सोन्ही यादें और बैलों की घंटी का संगीत
ब्रह्मानंद ठाकुर इस दुनिया मे चिरंतन ,शाश्वत और अपरिवर्तनशील कुछ भी नहीं है। वस्तुजगत का कण – कण परिवर्तनशील है।
फिल्म से पहले पिता ने क्यों किया पीहू का स्टिंग ऑपरेशन
विनोद कापड़ी पीहू के माता-पिता रोहित विश्वकर्मा और प्रेरणा शर्मा की सहमति मिलने के बाद मैंने तय किया कि अब