पुष्यमित्र
इस तसवीर को पिछले कुछ घंटों में कई बार देख चुका हूं। जब भी देखता हूं, दिल खुश हो जाता है. क्योंकि तसवीर में बच्ची को संभाले जो पुलिस अधिकारी खड़ा है, वह अपना बचपन का दोस्त है. यह अखिलेश है, किशनगंज का नया एसडीपीओ. अभी हाल ही में उसकी वहां तैनाती हुई है. मुश्किल से एक हफ्ता भी नहीं गुजरा होगा. यह संभवतः उसकी पहली इंडिपेंडेंट पब्लिक पोस्टिंग है. इससे पहले वह सुपौल में प्रोबेशन के दौर में था और फिर सोनपुर रेलवे में लंबे समय तक रहा. उसे हाल ही में किशनगंज भेज दिया गया. 7 मई (संभवत) वह वहां अकेले पूरे जिले के चार्ज में था, क्योंकि वहां के एसपी कहीं गये हुए थे. और यह उसका पहला ऑपरेशन था जिसमें उसने पूर्णिया से दोपहर दो बजे अपहृत हुई इस बच्ची को महज छह घंटे में बरामद करने में सफलता हासिल कर ली.
ऐसे ही फेसबुक स्क्रॉल कर रहा था तो पूर्णिया के पूर्व सांसद उदय सिंह की पोस्ट दिखी कि गुलाबबाग के एक व्यवसायी की पुत्री का अपहरण हो गया है. हाल के दिनों में जिस तरह अपराध बढ़ा है, उससे अनिष्ट की आशंका मन में घर करने लगी. मगर शाम साढ़े आठ बजे यह तस्वीर दिखी, एक वाट्सएप ग्रुप पर. सुबह बातचीत हुई तो अखिलेश ने बताया कि जब अपहरण हुआ तो डीआईजी ने उसे भी अलर्ट किया था और शाम चार बजे यह सूचना भी दी गयी कि अपहर्ता संभवतः बच्ची को लेकर बंगाल की तरफ जाने वाले हैं और उसी के जिले से गुजरने वाले हैं.
ऑपरेशन मुश्किल था, मगर अखिलेश ने आनन-फानन में टीम बनायी और जुट गया. पूर्णिया- किशनगंज और किशनगंज-बंगाल-बांग्लादेश की सभी सीमाएं सील कर दी और सीमावर्ती थानाध्यक्षों के साथ वह अभियान में जुट गया. जब शाम के छह बज गये तो उसे उसके कनीय अधिकारियों ने सलाह दी कि अब तक शायद अपहर्ता बच्ची को लेकर निकल गये होंगे, इसलिए अब चौकसी हटा दी जाये. मगर अखिलेश ने तय किया कि वह कम से कम रात भर तो चौकसी और चेकिंग करेगा ही. इस चौकसी और चेकिंग का असर हुआ और किशनगंज सीमा से सात-आठ किलोमीटर पहले अपहर्ता एक दुकान पर बच्ची को छोड़ कर फरार हो गये.
संयोगवश अखिलेश उसी इलाके में पेट्रोलिंग कर रहा था और उसे बच्ची नजर आ गयी और आगे की कहानी सबको मालूम है. अखिलेश के साथ अपनी बचपन की दोस्ती रही है. हमलोग नवोदय पूर्णिया में न सिर्फ एक बैच में थे बल्कि कई काम साथ करने का मौका मिला. हमलोगों ने तो एक बार साथ मिलकर एक महीने स्कूल का मेस भी चलाया था, स्कूल प्रबंधन को यह बताने के लिए कि इतने कम पैसे में भी बच्चों को अच्छा खाना खिलाया जा सकता है.
मैं जानता हूं, वह बहुत इन्नोवेटिव और जुझारू है. पिछले साल बाढ़ के दौरान भी हमलोगों ने जो एक सामूहिक इनोवेटिव मुहिम शुरू की थी वह उसका अहम हिस्सा रहा. पुलिस विभाग में रहते हुए वह पुलिस रिफार्म और अच्छी ट्रेनिंग की बात करता है. वह 53-55 बैच का बीपीएससी पासआउट है. उसका व्यक्तिगत जीवन भी कम दिलचस्प और प्रेरणास्पद नहीं है. स्कूल में ही प्रेम हुआ, फिर विवाह भोपाल में, अभिभावकों की अनुमति के बिना. फिर संघर्ष का लंबा दौर, छोटी नौकरियां, ट्यूशन करके परिवार को संभालना, कोचिंग करके घर चलाना और फिर व्यवस्थित होने के बाद तय करना कि अब वह सिविल सेवा की तैयारी करेगा. तब तक यूपीएससी की उम्र निकल चुकी थी, बीपीएससी ट्राय किया और कामयाबी हासिल की.
लगता है कि बिहार पुलिस को ऐसे अधिकारियों की जरूरत थी. आइये, एक प्रोमिसिंग पुलिस अधिकारी का स्वागत करें…
पुष्यमित्र। पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। गांवों में बदलाव और उनसे जुड़े मुद्दों पर आपकी पैनी नज़र रहती है। जवाहर नवोदय विद्यालय से स्कूली शिक्षा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल से पत्रकारिता का अध्ययन। व्यावहारिक अनुभव कई पत्र-पत्रिकाओं के साथ जुड़ कर बटोरा। संप्रति- प्रभात खबर में वरिष्ठ संपादकीय सहयोगी। आप इनसे 09771927097 पर संपर्क कर सकते हैं।
अखिलेश जी का स्वागत है पुष्यमित्र जी। एक प्रोमिसिंग पुलिस अधिकारी से ज्यादा एक संवेदनशील इंसान के रूप में। पिछले साल एकाध घंटे के लिए मेरी उनसे मुलाकात मुजफ्फरपुर में हो चुकी है। भाई ऐसे पुलिस आफिसर की जरूरत मुजफ्फरपुर को है लेकिन मेरे चाहने भर से क्या होगा ?फिर फिर और बार बार ऐसे जांबाज अधिकारी को बधाई।