अजीत अंजुम
जिस ताजमहल को मोहब्बत की निशानी मानकर न जाने कितने गीत-गजल और कहानियां लिखी गई। जिसे देखने न जाने कितने लोग हर रोज आगरा जाते हैं। जिसको आंखों में उतार लेने के लिए न जाने कितने देशों के राष्ट्राध्यक्ष अपनी पत्नियों के साथ आ चुके हैं। जिसे दुनिया का सातवां अजूबा माना गया। जिसके सामने खड़े होकर सैकड़ों साल पहले की एक प्रेम कहानी से रुहानी मुलाकात होती है। जिस ताजमहल की नकल की कोशिशें दशकों से दुनिया भर में हो रही है। उस ताजमहल से नफरतों के इजहार का सिलसिला सा शुरु हो गया है। ताजा शुरुआत तब हुई थी, जब यूपी की योगी सरकार ने सूबे के पर्यटन बुकलेट के फ्रंट पेज से ताजमहल को बाहर कर दिया था।
मोहब्बत की इस निशानी के प्रति इजहार -ए -नफरत करने वाला ताजा बयान अब यूपी बीजेपी के फायर ब्रांड नेता और सरधना के विधायक संगीत सोम ने दिया है। मुगल बादशाह शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज महल की याद में जो ताजमहल बनाया था उसे संगीम सोम ने गद्दारों की बनाई इमारत करार दिया है। सोम ने कहा है कि गद्दारों के बनाए ताजमहल को इतिहास में जगह नहीं मिलनी चाहिए। सोम ने ये भी कहा कि “ ताज महल बनाने वाले मुगल शासक ने उत्तर प्रदेश और हिंदुस्तान से सभी हिंदुओं का सर्वनाश किया था। ऐसे शासकों और उनकी इमारतों का नाम अगर इतिहास में है तो दुर्भाग्य की बात है और मैं गारंटी के साथ कहता हूं कि ऐसा इतिहास बदला जाएगा”। चार सौ साल के इतिहास में कायम ताजमहल को इतनी आसानी से गुमनामी में ढ़केलना तो किसी के बूते की बात नहीं। लेकिन ये सवाल जरुर उठता है कि क्या वाकई ताजमहल इस कदर नफरत का हकदार है? सिर्फ इसलिए कि उसे मुगल बादशाह या कहें तो मुसलमान बादशाह ने बनवाया था?
अगर सिर्फ इस पैमाने पर पुरानी इमारतें, किले या स्मारकों को इतिहास से बदखल करने की कवायद शुरु हो जाए तो दिल्ली के लालकिले से लेकर आगरा के लालकिले तक, फतेहपुर सीकरी से लेकर हुमायूं के मकबरे तक, दिल्ली के जामा मस्जिद से लेकर बुलंद दरवाजा तक और कुतुब मीनार से लेकर गोलकुंडा तक.. ऐसी सैकड़ों ऐतिहासिक इमारतों को क्या करेंगे? जिस लालकिले के प्राचीर से देश के प्रधानमंत्री आजादी के बाद से ही झंडा फहराते रहे हैं, उस प्राचीर का क्या होगा? नेहरू से लेकर मोदी तक सभी प्रधानमंत्रियों के वादों -इरादों और पदचिन्हों को अपने में समेटे लालकिला भी तो उन्हीं ‘मुगल गद्दारों’ की निशानी है। उसी शाहजहां ने दिल्ली का लालकिला भी बनवाया था, जिसने अपनी बेगम की याद में ताजमहल बनवाया था। लालकिले का क्या करेंगे? किसी विचार, व्यक्ति या कौम से नफरत का ये कौन सा अंजाम है कि सैकड़ों साल पहले बनी खूबसूरत इमारतें भी नफरतों के आइने में उतर जाती है।
बीते साल दिल्ली में औरंगजेब रोड का नाम बदलकर एपीजे कलाम के नाम पर रखा गया। इसमें कोई हर्ज भी नहीं। यकीनन औरंगजेब और कलाम में से एक को चुनना होगा तो हमें कलाम को ही चुनना चाहिए। किसी लुटेरे या बदनाम शासक के नाम से जानी जाने वाली सड़क या इमारत का नाम बदल देने में भी कोई हर्ज नहीं लेकिन ताजमहल जैसी इमारतों का इतिहास कैसे बदलेंगे ? उसे इतिहास से कैसे बेदखल करेंगे ? कितनी इमारतों को इतिहास से बेदखल करेंगे ?
अपने विवादास्पद बयानों के लिए हमेशा सुर्खियों में रहने वाले संगीत सोम के बयान के जवाब में हैदराबाद के सांसद और एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। ओवैसी ने ट्विटर पर लिखा – गद्दारों ने ही लालकिला बनवाया था तो क्या पीएम मोदी लालकिले पर तिरंगा फहराना बंद कर देंगे ? क्या पीएम मोदी और सीएम योगी देशी -विदेशी सैलानियों को कहेंगे कि ताजमहल घूमने -देखने न जाएं। ओवैसी ने एक कदम आगे बढ़कर ये भी लिखा कि दिल्ली का ऐतिहासिक हैदराबाद हाउस भी गद्दारों ने ही बनवाया था तो क्या मोदी वहां विदेशी मेहमानों की मेजबानी बंद कर देंगे? जाहिर है बीजेपी के लिए इन सवालों का जवाब देना आसान नहीं है।
इसमें कोई शक नहीं कि दसवीं सदी से लेकर अंग्रेजों के आने तक हमारा देश मुस्लिम शासकों और लुटेरों का ठिकाना बना रहा। पंद्रहवी सदी में मुगल लुटेरों की तरह हमारे देश में दाखिल हुए थे। तेरहवीं सदी में समरकंद से भारत को लूटने और रौंदने आया लंगड़ा और तुर्क फौजी तैमूरलंग भी यूं ही भारत में दाखिल हुआ था और दिल्ली का सुल्तान बन बैठा था। उसने बेरहमी से हिन्दुओं को मौत के घाट उतारा। मंदिरों को नेस्तानाबूत किया। मूर्ति पूजा से उसे बेइंतहा नफरत थी, लिहाजा मूर्ति पूजा करने वाले न जाने कितने लोग उसके सिपाहियों की तलवार से कलम हो गए। उसके बाद और उससे पहले भी गजनी, गोरी, ऐबक से लेकर अब्दाली और लोदी तक ने भारत पर राज किया, लूटा, मंदिरों को तोड़ा, हिन्दुओं पर जुल्म किए लेकिन उन्हें न्यौता हमारे भीतर बैठे जयचंदों ने ही दिया था।
मुगल भी लुटेरों की तरह आए और बादशाह की तरह जम गए। काबुल, लाहौर, आगरा, फतेहपुर सीकरी और दिल्ली से हुकूमत करते रहे, फैलते रहे। पहले मुगल बाबर से लेकर आखिरी मुगल बहादुर शाह जफर तक के काल की सैकड़ों इमारतें इस देश में मौजूद हैं। किन -किन को मिटाएंगे? किस कूड़ेदान में फेकेंगे?
मुगल के बाद अंग्रेज भारत आए। गद्दार और लुटेरों के पैमाने पर देखें तो अंग्रेज भी वही थे। तो क्या अंग्रेजी की बनाई इमारतों के साथ भी वही सलूक करेंगे? दिल्ली में रायसीना की पहाड़ी पर बना अंग्रेज शिल्पकार लुटियन के द्वारा बनाए गए राष्ट्रपति भवन का क्या करेंगे? लुटियन जोन की जिन इमारतों से सरकार चल रही है, उसका क्या करेंगे? शिमला से लेकर मुंबई तक, कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक… हर सूबे मे अंग्रेजी जो इमारतें छोड़ गए हैं और जहां हमारे नौकरशाह और नेता रहते हैं , उनका क्या करेंगे? ये सब भी तो गद्दारों ने ही बनवाए हैं. ये अलग बात है कि बनाने में खर्च भी हमारे देश की संपदा हुई . मेहनत भी हमारे मजदूरों ने किया. नेतृत्व और परिकल्पना तो गद्दारों ने की न?
हम जानते हैं कि इनका जिक्र आप नहीं करेंगे क्योंकि इसमें मुस्लिम एलिमेंट नहीं है. ताजमहल में मुस्लिम एलिमेंट है. तो कहिए न कि सवाल वोटबैंक का है. सवाल हिन्दुओं को उकसाने का और मुसलमानों को नीचा दिखाने का है. ये देखो.. तुम्हारी कौम के बादशाह की निशानियों और इमारतों के साथ हम क्या -क्या कर सकते हैं?
बीजेपी के कई नेता पहले भी ताजमहल के अतीत और उससे जुड़े किस्सों को नई शक्ल देने की कोशिश करते रहे है. यूपी बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी पहले कई बार कह चुके हैं कि ताजमहल प्राचीन शिव मंदिर तेजो महालय का हिस्सा है. उनका कहना है कि मुगल शासक शाहजहां ने राजा जय सिंह के मंदिर की कुछ जमीन को खरीदा था, जिस पर बाद में ताजमहल बनवाया गया. ऐसी स्थापनाओं के पक्ष में किताबें भी लिखी गई है लेकिन पिछले ही साल एक याचिका पर हुए बवाल के बाद केन्द्रीय संस्कृति मंत्री महेश शर्मा ने संसद में बयान देकर कहा था कि ताजमहल के हिन्दू मंदिर होने के कोई सबूत नहीं मिलते.
इसी ताजमहल की पृष्ठभूमि में कई फिल्में बनी हैं. ताजमहल की महिमा बखान करते हुए गाने लिखे गए हैं. शकील बदायुनी का दशकों पुराना ये गाना एक जमाने में बहुत चर्चित हुए था
“एक शहन्शाह ने बनवा के हसीं ताजमहल
सारी दुनिया को मुहब्बत की निशानी दी है
इसके साये मे सदा प्यार के चर्चे होंगे
खत्म जो हो ना सकेगी वो कहानी दी है
एक शहन्शाह ने बनवाके…”
ताजमहल को देखने और उसकी तामीर के मकसद को समझने का अलग नजरिया हर दौर में रहा है. शकील बदायुनी का नजरिया अलग है. साहिर लुधियानवी का नजरिया अलग था. उन्होंने ताजमहल को कुछ यूं देखा था – “एक शहंशाह ने दौलत का सहारा लेकर हम गरीबों की मोहब्बत का उड़ाया है मजाक….”
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने बहुत कम उम्र में जब कविता लिखनी शुरु की थी तो अपनी जिंदगी की पहली कविता ताजमहल पर ही लिखी थी. अपनी कविताओं के संग्रह की भूमिका में वाजपेयी ने खुद लिखा है. हालांकि वाजपेयी ने साहिर की तरह ताज को देखा है, शकील बदायुनी की तरह नहीं. उन्होंने लिखा है –
“ताजमहल ये ताजमहल
कैसा सुंदर, अतिसुंदर”
उसी कविता की अगली लाइन है –
“जब रोया हिन्दुस्तान सकल
तब बन पाया ये ताजमहल“
तो जो ताजमहल इतना कुछ समेटे हुए है, उस ताजमहल को मोहब्बत की निशानी ही रहने दो ……वोटों की भेंट न चढ़ाओ …..
अजीत अंजुम। बिहार के बेगुसराय जिले के निवासी। पत्रकारिता जगत में अपने अल्हड़, फक्कड़ मिजाजी के साथ बड़े मीडिया हाउसेज के महारथी। बीएजी फिल्म के साथ लंबा नाता। स्टार न्यूज़ के लिए सनसनी और पोलखोल जैसे कार्यक्रमों के सूत्रधार। आज तक में छोटी सी पारी के बाद न्यूज़ 24 लॉन्च करने का श्रेय। इंडिया टीवी के पूर्व मैनेजिंग एडिटर।