रुपेश कुमार
बंधन शब्द सुनकर ऐसा लगता है कि हमें बांध दिया गया हो, लेकिन जैसे ही रक्षा से जुड़ जाता है इसमें पवित्रता और विश्वास जुड़ जाता है । बंधन आज़ादी का, बंधन भरोसे का, ऐसा बंधन जो जाति और धर्म की सीमाएं बांध नहीं सकीं, पुराणों से लेकर मुगलकाल तक जिसकी पवित्रता की अनगिनत गाथाएं सुनने को मिलती हैं । भाई-बहन की पवित्रता आज भी इस रिश्ते को नायाब बना जाती है। रक्षा बंधन के पर्व पर रुपेश कुमार के फेसबुक वॉल से चंद लाइनें ख़ास आपके लिए।
दुनिया में सूचना और संवाद की बमबारी हो रही है, हाथ में स्मार्ट फोन थामे युवा दुनिया भर की सूचनाओं को अपनी मुट्ठी में कैद किये हुए हैं, लेकिन तकनीक की इस खूबसूरत देन के बेजा इस्तेमाल ने हमारे दिमाग को अस्त-व्यस्त कर दिया है । इन सूचनाओं को संभालने के चक्कर में रिश्तों की डोर छूटती जा रही है । व्यक्तिगत स्वतंत्रताएं सीमाओं को तोड़ रही है, जो एक स्वस्थ समाज के लिए बेहद घातक है । हमारी संस्कृति में संचार से ज्यादा समाज और संबंध को तवज्जो दी जाती रही है, विदेशी भी जब इस धरती पर आए तो यहां की परंपराओं को आत्मसात कर लिया । इतिहास पर नज़र घुमाएं तो बार-बार भाई और बहन के इस त्योहार की व्यापकता, पवित्रता सिद्ध हुई है। न धर्म, न समुदाय, न क्षेत्र , न देश … सारी सीमाओं से परे… …कर्णावती ने जब हुमायूं को राखी भेज रक्षा की गुहार लगायी तो हुमायूं ने इस रक्षा सूत्र की पवित्रता की लाज रखी। यह सर्वोत्तम उदाहरण है कि रक्षा बंधन का यह त्योहार केवल पारिवारिक त्योहार नहीं।
भारत वर्ष में रक्षा बंधन का करीब 2300 वर्ष पुराना इतिहास हैं। इतिहासकार डॉ राम भजन यादव बताते है कि यूनान के सम्राट सिकंदर की पत्नी ने जब पुरू की वीरता के बारे में सुना तो विचलित हो गयी। सम्राट सिकंदर की पत्नी ने पुरू को राखी भेज कर सिकंदर की रक्षा का वचन प्राप्त कर लिया। धर्मवीर पुरू ने अपना वचन निभाते हुए सिकंदर के प्राण की रक्षा की। पौराणिक कथा के अनुसार लक्ष्मी जी ने राजा बलि की कलाई पर राखी बांध कर उपहार स्वरूप अपने पति भगवान विष्णु को वापस लौटा देने का वचन प्राप्त किया था।
राखी के पवित्र त्योहार पर बना यह माहौल उम्मीद जगाता है कि सब खत्म नहीं हुआ है। अभी भी बहुत गुंजाइश बाकी है कि हम बिखरते और टूटते रिश्तों का विश्वास फिर से कायम कर सकें। बहने खुल कर इस आंगन में विचर सकें। बहनों का मन विश्वास से भरा हो। आओ बहनों ! दृढ़ विश्वास के साथ आओ… ! आओ आँगन तुम्हारा है।
मधेपुरा के सिंहेश्वर के निवासी रुपेश कुमार की रिपोर्टिंग का गांवों से गहरा ताल्लुक रहा है। माखनलाल चतुर्वेदी से पत्रकारिता की पढ़ाई के बाद शुरुआती दौर में दिल्ली-मेरठ तक की दौड़ को विराम अपने गांव आकर मिला। उनसे आप 9631818888 पर संपर्क कर सकते हैं।