मित्र
करता हूं मैं
कई बार तुम्हारी आलोचना
वह आलोचना
जितनी तुम्हारी होती है
उतनी ही मेरी भी
ऐसा लगता है मुझकोक्योंकि ये शब्द
हमेशा गूंजते रहते हैं
मेरे भीतर
करते हैं कई-कई प्रश्न
जिनका कोई उत्तर नहीं होता मेरे पास।ऐसे कई अवसरों पर
झुक जाती हैं मेरी नज़रें
पर, फिर भी नहीं छूटता है
आलोचना का सिलसिला
तुम फिर भी रहते हो
मेरी ही परिधि में
और फिर कई-कई बार
होती है आलोचना
मथता है मेरा मन
जिससे और निखर उठता है
मेरी नज़रों में
मेरा मित्र।
पशुपति शर्मा ।बिहार के पूर्णिया जिले के निवासी हैं। नवोदय विद्यालय से स्कूली शिक्षा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय से संचार की पढ़ाई। जेएनयू दिल्ली से हिंदी में एमए और एमफिल। पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। उनसे 8826972867 पर संपर्क किया जा सकता है।