रूचा जोशी
सुदूर संवेदन (रिमोट सेंसिंग ) तकनीक भूमि उपयोग में आ रहे बदलाव का आकलन करने के लिए एक कारगर तरीका है। इस तकनीक के अंतर्गत उपग्रह द्वारा भेजी गई तस्वीरों का अध्ययन किया जाता है। इस तकनीक का इस्तेमाल कर यह पता लगाया जा सकता है कि किसी निश्चित वर्ष की तुलना में भूमि उपयोग में कितना बदलाव आया है। साथ ही इस तकनीक के द्वारा डिजिटल उन्नयन मानचित्र तैयार करके बाढ़ की स्थिति के अनुसार नदियों के स्वरुप और विस्तार का भी अनुमान लगाया जा सकता है।
उदाहरण के लिए, इसी तकनीक का इस्तेमाल कर इंटरनेशनल जर्नल ऑफ़ रिमोट सेंसिंग में छपे एक लेख में हमने दिल्ली से बहने वाली यमुना नदी के पात्र का अध्ययन किया। वर्ष 1901 में दिल्ली एक छोटा सा शहर था, जिसकी कुल आबादी केवल 4 लाख थी। 2011 की जनगणना पर गौर करें तो दिल्ली की कुल आबादी 1.68 करोड़ हो गई है। जाहिर है, तेजी से बढ़ती जनसंख्या का दिल्ली के पर्यावरण पर भी प्रभाव पड़ा होगा। विश्लेषण से पता चला कि वर्ष 2009 की तुलना में वर्ष 1977 में नदी-ताल में पानी की उलब्धता अधिक थी। इसी अवधि के दौरान नदी पात्र के क्षेत्रफल में 5.3 फीसदी की कमी हुई है।
दिल्ली के यमुना नदी पात्र में घने वनस्पति का क्षेत्रफल भी 23.1 फीसदी से घटकर 15.8 फ़ीसदी हो गया है। साथ ही यमुना नदी पात्र में निर्माण क्षेत्र 7 फीसदी से बढ़ गया है। नदी पात्र में निर्माण कार्य बढ़ने की वजह भूमि की उपलब्धता में कमी, शहरीकरण का प्रभाव और अतिक्रमण रहे हैं। यह दर्शाता है कि आज के समय में यदि यमुना का प्रवाह अपने पात्र तक भी सीमित रहे तो कई घर जलमग्न हो जायेंगे और इसे बाढ़ की संज्ञा दे दी जाएगी।
यह नितांत आवश्यक है कि नगर प्रबंधन, जलजमाव और बाढ़ के बढ़ते खतरे से निपटने के लिए आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल करें। नदियों के किनारे बसे गांव में स्थिति तो और भी भयावह होती है। 18 अगस्त 2008 में कोसी नदी में आये बाढ़ की विभीषिका को याद करके आज भी दिल दहल जाता है। साल 2008 के कोसी आपदा ने हमें सबक दिया है कि हमें अपने आपदा प्रबंधन को चुस्त-दुरुस्त करने की कितनी आवश्यकता है। पटना उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश राजेश बलिया के नेतृत्व में बने कोसी न्यायिक जांच आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कई प्रशासनिक लापरवाही का उल्लेख किया है। यदि समय रहते कार्रवाई प्रारंभ हो गई होती तो शायद बाढ़ का स्वरूप इतना विकराल न हुआ होता।
रूचा जोशी। महाराष्ट्र के सांगली जिले की निवासी। MSc (environmental science), MTech ( Remote sensing and GIS)। बिरला इंस्टीच्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी, मेसरा से पीएचडी कर रही हैं। आपको भेड़चाल पसंद नहीं है, जिंदगी को अपने तरीके से जीने में यकीन रखती हैं।